Sunday, September 19, 2010

अब द्वारे खड़ी बारात

प्रिय जनों ,


बारात आने में केवल १५ दिन बाकी है| शेरा मुस्करा रहा है , ठेकेदार  हँस रहे  है ,आयोजन समिति के लोग ठहाका लगा रहे है, मंत्री जी कहते है की हमने तो पहले ही कहा था की बारात को आने दो सब ठीक हो जायेगा |हम हिन्दुस्तानी राएता समेटने में निपुड है लेकिन इसको सिद्ध करने के लिए पहले फैलाना पड़ेगा | विरोधी पार्टी वाले तो यू ही आरोप लगाते रहते है ,अरे बाद में बैठा लेना आयोग | पहले इतने आयोग बैठाये तो क्या कुछ हो गया ,जो आगे हो जायेगा |एक बार काम खतम  और पैसा हजम हो तो फिर कौन पूछता है |


देखो खेल गाँव कितना सुन्दर बना है ,यमुना के किनारे |हम है गाँधी के सिधान्तो को मानने वाले , वो सारी जिन्दगी गाँव को सुन्दर बनाने में लगे रहे और हमने सुन्दर सा गाँव दिल्ली में ही बना दिया | देखो गे तो देखते रह जाओगे , गाँव इतना सुन्दर की शहर वाले भी रस्क करे| क्या नहीं है गाँव में ,आलिशान वातानुकूलित कमरे रहने के लिए  ,खेलने  के लिए जिम ,जीमने के लिए १५० तरह के देसी-विदेसी  व्यंजन |वाह क्या बात है १२ मिनट  में ९ की .मी.   पहुचने के लिए नाले पर सड़क |


"न्यूयार्क जैसी दिल्ली हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था ,
                                        पर आज ये बिलकुल वैसी है जैसा मैंने सोचा था" | 
                                                                             

डेंगू फैलाते  मच्छर , सडको में गड्ढे , टूटे फूटे फूटपाथ अब सब बाते जल्दी ही पुरानी  हो जाएँगी , और दिल्ली होगी मेरी जान ,मेरी शान |


मैंने तो सुना है की पुराने ज़माने में तो जब लड़की के घर लड़के वाले आते थे तो पडोसी का सोफा घर में लगा कर अपनी  शान बढ़ा लेते थे |अब तो जमाना इतना बदल गया है की गमी हो जाये तो प्रोफेशनल   रोने वाले भी मिलते है तो भई विदेशी मेहमानों के आने के पहले पुरानी फर्श पर ईरानी कालीन डाल कर सुन्दर बना लेने में क्या हर्ज है अब कोई कालीन उठा कर तो देखेगा नहीं | इसलिये चारो ओर अफरा तफरी मची है जल्दी-जल्दी काम खतम करो बारात आने वाली है | वैसे भी हम  हिन्दुस्तानी गड्ढे खोदने और उसको भरने में इतने माहिर है की बाद में तो ये पता चलाना भी  मुश्किल है की पहले कोई गड्ढा खुदा भी था | बस ,कामन वेल्थ खेलो में लगे गाइड को समझा देना की मेहमानों को दिल्ली कहाँ  तक की दिखानी है ,कहाँ  तक की बतानी है , उसके आगे पीछे गए तो कंडीशन अप्लाई हो जाएगी और हमारी  जिम्मेदारी ख़तम ,बाद में ना कहना की बताया नहीं था |


और दिल्ली वालो तुम लोग भी ध्यान से सुन लो ,इधर -उधर थूकने का नहीं ,लाल बत्ती तोड़ने का नहीं ,रेस्ट केवल रेस्टरूम में, बस वाले भैया जरा गति संभाल के नियम कायदे से चल लो केवल १५ दिन की ही तो बात है | हमेशा दिल्ली की पब्लिक के साथ रहने वाले पुलिस  वालो अब नाक आपके हाथ में ही है सो भई दो हफ्ते बिना मेवा ही सेवा करदो ताकि नाक बची रहे ,फिर तो सारी जिन्दगी पड़ी है कमाने  खाने को | हालाकि नाक केवल तुम्हारे हाथ में ही नहीं है और भी कई विभाग है सरकार के किसी को डेंगू रोकना है और किसी को सीवर नाला ,कहीं इन्द्र भगवान ने कृपा की तो फिर सब कुछ पानी -पानी |


लेकिन बारात आने का  इन्तजार तो उन्हें ही होता है जिनके घर आती है ,हमारे जैसे लोगो को  तो बारात जाने का इन्तजार है , ताकि हम फिर सड़क की  दोनों लेन में आराम से चल सके और वह सबकुछ कर सके जो अंग्रेजो के ज़माने से करते आए है|हमको हमारी जरुरत की दूध और सब्जी  ठीक भाव पर मिलसके  ,बच्चे फिर स्कूल जा सके ,और पांच साल बाद हम फिर बारात के खुशी -खुशी बिदा होने की खुशिया मना  सके और  जी सके जिन्दगी अपने हिसाब से |


अजय सिंह "एकल" 













Friday, September 10, 2010

Gujarat As I saw it



Hi,
Last month I went Gujarat ,after along time may be after  20 long years I got this opportunity . Past many years I used to listen "Vibrant Gujarat", I had all the reason to believe that it is just a slogan like many other slogans which are  popularized in support of the respective Governments regime like  "Shining India" of NDA Government or "Bharat Nirman" of UPA.

I was surprised, when I saw two girls driving  a scooty at around 12.30 night on a road near  bank of a jheel in city  and a  crowed of 15-20 people enjoying "Chat " on the stall  in Ahmadabad where my flight landed at 12.10 in mid night and  I was passing from there  while going from Airport to my hotel .Next Day I visited the secretariat and met many IAS officers found them positive and cooperative. Also had an opportunity of see MR. Ashok C Bhatt the Hon'able Speaker of State  Assembly who was very cordial and extend unexpected  help.

Next day I went to see the nearby villages  I saw the  prosperity of the area was visible and people were cooperative. In a middle school of the village I found a computer  lab and to best of my surprise it was working also. The principal informed that they are teaching computer from class 4. Same day I had an opportunity to meet Director Bhaskaracharya Institute For Space Applications and Geo-Informatics where students of class 6 -7 were being taught in three different studios and the same program in the rural school of Gujarat was being live  telecast-ed to teach the rural students. I was also informed that Mr. Narendra Modi  and cabinet colleagues are using this facility to address the villagers of the state on all important issue to establish direct communication with the public in the state.It is just not ceremonial  which is done as part of national functions like 15th August and 26th January , some important festivals or waiting for emergency like 26/11 etc. when it becomes mandatory for the leadership to use it for morel boosting of the public.It was pleasant and memorable experience of feeling the "Vibrant Gujarat" .

I am associated with an NGO  "EKAL MOVEMENT " which is empowering rural people all over India having 34000 villages in net work .Past 10 years there were many villages in Gujarat too where we  were working , this April we have winded from there because could not find an opportunity to work on the project we work on, that is already achieved.

An honest assessment of the state made me believe that "Vibrant Gujarat" is just not a slogan. My salute to the  leadership and the people of Gujarat with out whose cooperation this would have not been possible to make Gujarat a role model for other states of India.

Ajay Singh "EKAL"




Thursday, September 2, 2010

काठ की हांड़ी



प्रिय राहुल,

तुम्हारा उड़ीसा के दलित किसानो का सैनिक बनना इतना अच्छा लगा की हिंदुस्तान के सारे मोगेम्बो  खुश  हो गए| किसी ने आपकी  एक बात के लिए तरफ की ,किसीने दूसरे के लिए |कई तो इसलिये खुश  है की आप के दर्शन हो गए और बाकी इसलिये खुश  है की इसी बहाने  उड़न खटोले के दर्शन हुए वर्ना कौन पूछता है   | 
पिछले कई  सप्ताह से आप की   सक्रियता काफी बढ़ी है अच्छी बात है |किसानो को साथ देने उनके गाँव गए  तो प्रधान मंत्री जी ने भी  आप के कहने पर जमीन अधिग्रहण नियम नए सिरे से बनाने की बात सोचनी शुरू की  और अपना कर्तव्य निभाया  | मुझे लगता है प्रधान मंत्री पद के लिए जो दौड़ शुरू करनी थी उसका टैक्सी इंजन रन वे पर दौड़ना  शुरू हो हो चुका है |

मगर यह सबकुछ इतना आसान नही है ,क्या आप को याद है करीब दो साल पहले आप ने एक कलावती नामक महिला के घर खाना खा के उसकी मदद की थी, उसको सरकार ने और कई अन्य संस्थानों ने पैसे भी दिए थे ,एक बार तो ऐसा लगा भी राम ने शबरी के बेर खा कर उसके  जैसे लोगो का उद्धार कर दिया है ,मगर मुझे पता नहीं की आप जिन लोगो से घिरे हो उन्होंने आप को बताया कि नहीं,कि   बाकी की  आबादी अभी भी कलावती की  तरह ही है परेशान है .और वह अभी भी  मुश्किल से  ही दो जून का खाना जुटा पा रही  है जैसे पहले करती थी , लेकिन अब देश की अधिकांश जनता आप की ओर आशा भरी  निगाहों से देख रही है की शायद कोई चमत्कार हो जाये और उनकी स्थिति मै कुछ सुधार हो जाये .हो सकता है की शायद  कांग्रेस का हाथ गरीब जनता के काम आजाये. 

मै तो सोचता था कि राजकुमार को जब  प्रजा की  खराब हालत का पता चल गया है   तो कुछ ऐसी नीति  बनेगी की उसके  जैसे हालत में रहने वाले बहुत सारे लोगो का कल्याण हो जायेगा पर ऐसा कुछ नहीं हुआ ,हाँ आप की यह उपलब्धता जरुर मानी जा सकती है की आप को कुछ और पब्लिसिटी एवं  समर्थक मिलगये ,और  वोट बैंक में बढ़ोतरी हो गई .

ऐसे  ही  बुंदेलखंड  की ख़राब हालत पर तरस खा कर वहां भी आप गए थे कुछ योजनाओ की घोषणा भी हुई, बुंदेलखंड डेवलपमेंट  कारपोरेशन  बनाने  की बात शुरू हुई ,क्या आप को पता है की बात कहाँ  तक  पहुंची,  क्या अगला सूखा  पड़ने के पहले वहां  के हालत सुधरने की व्यवस्था पक्की हो गई है .हो सकता है की आप यह कह दे कि मायावती की सरकार की वजह से आप कुछ नहीं कर सके पर यह तो आम आदमी वाली लाचारी है और आप आम आदमी  थोड़े ही हो यह आप को भी पता है और सरकार को भी .

तो भाई आप तो जहाँ मौका देखते हो सिपाही बन जाते हो ,कंही  भाई बन जाते हो, मतलब ये की मंजे हुए नेता की तरह जैसी जरुरत हुई वैसा रोल कर लिया ,शो खतम होने के बाद कहाँ गंगू तेली और कहाँ राजा भोज  .पर ये सब तो लोग बहुत पहले से ही कर रहे है तभी तो देश की ये हालत है की आम आदमी की जिन्दगी दो जून की रोटी जुगाड़ने  में निकली जा रही है और वह अपनी किस्मत और  कर्मो पर रो रहा है. एक तरफ तो हजारो करोड़ खर्च करके सरकार खेल करवा रही है और सरकारी लोग खेल कर रहे है मगर आप भी मूक  दर्शक हो और हम तो खैर कर ही क्या सकते है  ,इतना ही नहीं तो गोदाम मै गेंहू सड़ रहा है और मंत्री जी कहते है की बांटेगे नहीं अरे राहुल भैया आप की तो बात सब सुनते है तो आप कुछ करते क्यों नहीं ?  आप की सरकार के एक और मंत्री जी है जो  बाकी जनता को तो  ये समझाते है की महंगाई घट  रही है ,महंगाई उन्नति का लक्षण है इसलिए  और थोडा  इन्तजार कर लो लेकिन  अपनी  और आप के जैसे सांसदों की पगार एक ही सत्र में  दो बार में पांच गुना बढ़ा दिया ताकि बढ़ी महंगाई का असर आप जैसो  पर ना पड़े .क्या आप बता सकेंगे की इससे देश को क्या फायदा हुआ  और क्या सांसद अब काम  ज्यादा जिम्मेदारी से करेंगे ,जो काम पगार की वजह से नहीं कर पा रहे थे .ये तो सब जनता  को पता है की जो लोग रु ५ से २५  करोड़   खर्च कर संसद पहुंचे है उनके लिए साल के ५० लाख तो इन्वेस्टमेंट पर  ब्याज वसूलने जैसा है असली कमाई तो कहीं और से है,  लेकिन इतना जरुर हुआ है की इससे सांसद गरीब जनता को मुहं    चिढाते हुए  लग रहे  है और कांग्रेस का हाथ जनता के साथ ना दिख कर मुहं पर चाटा जैसा दिखने लगा है.

माननीय राहुल जी क्या आप को पता है, कि महात्मा गाँधी जिनके नाम पर कांग्रेस पार्टी इस देश में राज कर रही है  उन्होंने ज़ब देखा की गरीब के पास धोती नहीं है तो उन्होंने तो  कपड़ा पहेनना छोड़ एक धोती में रहने का व्रत लिया और आधी धोती ओढ़ ली आधी पहन ली और कहने लगे  "जब अर्ध नग्न है देश मुझे तन ढकने का अधिकार नहीं " फिर सारी जिन्दगी इस व्रत को ईमानदारी से निभाया और  आप भी उन्ही के पद चिन्हों पर चलते दिखना तो  चाह  रहे हो, लेकिन  मजा लूट रहे हो सरकारी खर्चे पर , दुनिया की सारी सुख  सुविधाए आप के आगे पीछे उपलब्ध है,   बड़ी बड़ी कारे, प्राइवेट हवाई जहाज, लन्दन में छुट्टी मनाने कि आदत   लोग सोंचते है  कि  वाह क्या नाम का  गाँधी है . अरे  भाई  ऐसा उदाहरन    रखो  की लगे की आप दूसरो से अलग हो, लोग आप को रोल मॉडल समझे ,वरना मुझे तो आप दूसरे नेताओ से केवल   इतना  ही  फर्क  लगते हो की आप  प्रधान मंत्री पद के खानदानी दावेदार हो और अपने पूर्वज प्रधान मंत्रियो कि तरह ही चारो ओर एक से बढ़ कर एक चाटुकारों से घिरे हो ,वो लोग  भी  इस आशा में लगे है  की ज़ब कभी आप का नंबर आएगा तो वो भी कुछ बन जायेंगे जिस दिन यह आशा ख़तम हुई ये ढूंढे नहीं मिलेंगे .

इसलिए भैया अभी टाइम है ये नाटक नौटंकी छोड़  "चाल वो चल की पसेमर्ग तुझे याद करे ,काम वो कर की  ज़माने में तेरा नाम रहे " नहीं तो याद रखना की काठ की हांड़ी बार बार नहीं चढ़ती है .लोग केवल अपने काम से पूजे जाते है, खानदान  कि वजह से तो पूजा थोड़े ही दिन हो सकती है .आपकी दादी और पिता श्री उदाहरण है कि एक सीमा के बाद उनको भी  जनता ने उखाड़ कर फ़ेक दिया था .
जय श्री कृष्ण                             "Ajay Singh"