Tuesday, April 24, 2012

तुम्ही ने दर्द दिया है तुम्ही ...

मित्रो,

क्या आपको याद है की  देश में आर्थिक सुधारो की शुरुवात १९९१ में  नरसिम्हा  राव की सरकार में आज के प्रधान मत्री और उस समय के वित्त मंत्री मनमोहन  सिंह के द्वारा की गई थी. पिछले ८ सालो से  यु पि ऐ सरकार के मुखिया प्रधान मंत्री के दौर में ही देश में आर्थिक  हालत फिर  वैसे  ही  हो गए है जैसे १९९१ में थे.विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से गिर रहा है रुपये का फिर तेजी से  अवमूल्यन  डालर के मुकाबले में हो गया  है,रिजर्व बैंक के आकंडे बताते है की भारत  का भुगतान संतुलन पिछले तीन सालो   में पहली बार घाटे में आ गया है यानि की देश के विदेशी मुद्रा के खजाने में पैसा कम है और देनदारिया ज्यादा . कुल मिला कर देश में आर्थिक हालत बहुत अच्छे नहीं है इस बात की तस्दीक सरकार के आर्थिक सलाहकार डॉ. कौशिक बासू ने अपनी अमरीका यात्रा के दौरान भी कर  दिया है, और आगाह भी, की  अब २०१४ के पहले इसकी उम्मीद भी न करे. अर्थात  जिस सरकार के सलाहकार वोह है उससे उन्हें भी कोई उम्मीद नहीं दिखती है,२०१४ का एक मतलब यह भी निकाला जा रहा है की लोकसभा चुनाव के बाद जब सरकार बदल जाये तो ही सुधारो के कामो में गति आ सकती है. कुल मिला कर देश को  दवा और दर्द दोनों की आशा डाक्टर मनमोहन की मन मोहनी टीम से ही है जो अब कुछ कर सकने की स्थिति में है ऐसा विश्वास किसी को नहीं है यानि सरकार के अन्दर और बाहर दोनों जगह  निराशा ही निराशा है.

लेकिन  ऐसा भी नहीं की सभी कांग्रेसी इतने ही निष्क्रिय है, पार्टी के प्रवक्ता और स्टैंडिंग  कमेटी के चेअरमैन डाक्टर अभिषेक मनु सिंघवी साहेब इतने सक्रिय है की लोगो को जज बना देते है रातोरात और जब बात जनता के बीच गयी और समाचार बन गया तो कोर्ट से उसको रुकवाने का आर्डर ले आये हाथो हाथ. है न कमाल अब आप ढूंढते रहिये आपको समाचार कही नहीं मिलेगा सब अख़बार और टी.वी.चैनल सिघवी साहब का साथ पूरी सिद्दत के साथ दे रहे है. आखिर यह कोई आम आदमी का मामला तो है नहीं की आपके घर में लुटेरे घुस जाये और मार पीट कर सामान भी लूट ले जाये और किसी टी.वी. चैनल का रिपोर्टर आ कर घर के मुखिया से पूछे की आप को कैसा लग रहा है?
  

किसी भी आदमी का  नाम उसके माता पिता जब रखते है तो वह  नाम आदमी की केवल पहचान  न होकर परिवार की उस व्यक्ति से उम्मीदों   को भी दर्शाता है . इतना ही नहीं ऐसा माना जाता है की   नाम के अनुरूप व्यक्ति का व्यक्तित्व भी बनता है. लेकिन यह बात पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बारे में सत्य नहीं है . पिछले दो तीन महीनो में किये गए काम तो कम  से कम यही बताते है. रेल मंत्री  दिनेश त्रिवेदी को जिस तरह चलता किया गया और लोकतान्त्रिक देश में  जहाँ  ऍम अफ  हुसैन द्वारा हिन्दू  देवी देवताओं के निर्वस्त्र चित्र बनाने पर भी सरकार निष्क्रिय रहती है और विरोध   करने वालो को सम्प्रादाइक  करार देती है वही ममता नाम की नेता प्रोफ. अम्बिकेश महापात्र  को कार्टून  बनाने पर जेल  भेज रही है.इतना ही नहीं अब जनता अख़बार कौन सा पढेगी और टी.वी. चैनल कौन सा देखेगी भी ममता और उनकी सरकार में बैठे लोग तय  करेंगे. ठीक  कह रही है बंगाल की जनता अगर यह ममता है तो निर्ममता क्या है?


और  अंत में

उम्र भर ग़ालिब यही  भूल करता रहा........ 
धूल चेहरे पर थी और आइना साफ़ करता रहा l
अजय  सिंह  "एकल "  

Tuesday, April 10, 2012

मूर्ख मकान बनाते है और अकलमन्द उसमे ......

मित्रो ,

मुझे पता नहीं यह कहावत कब कही गई और क्यों कही गई पर इतनी जिन्दगी जी लेने के बाद यह समझ आ गया है कहने वाले ने ठीक ही कहा है. तीन कमरे के मकान का किराया ४ लाख सालाना और कीमत डेढ़ -दो करोड़ .यानि निवेश पर ब्याज भी न निकले .तो अर्थशात्र के हिसाब से तो यह निरी मुर्खता ही है,  समाज शास्त्र के हिसाब से भी अकलमंदी नहीं . यानि आपका पडोसी अगर ठीक न हो और पसंद न आये  तो  जिन्दगी भर साथ रहने की मज़बूरी नहीं घर बदल दो और चुन लो मन का पडोसी.

केवल इतना ही नहीं मूर्ख और भी कई काम करते है मसलन इंजिनिअर या डाक्टरी की पढाई करने में जिन्दगी के कीमती साल और पैसे ख़राब करते है, और फिर किसी अनपढ़ (बेवकूफ या गंवार नहीं) की नौकरी करके   अपनी शान बढ़ाते है, आज के इकनोमिक टाइम्स में छपी खबर पढ़ी मनोज भार्गव  (समाचार पढने के लिए नाम पर क्लिक करे)     के बारे में .प्रिन्सटन विश्वविद्यालय, अमरीका में पढाई छोड़ कर एनेर्जी ड्रिंक बेचते है और साल में बिलियन  डालर की बिक्री करके अमरीका में सबसे अमीर भारतीय होने का गौरव प्राप्त किया है.और पिछले कई सालो से इस सिंहासन पर विराजमान आइ आइ टी दिल्ली से पढ़े और अमरीका में बढे वेंचर कैप्तालिस्ट विनोद खोसला को पीछे छोड़ दिया.


पढ़े लिखे अकलमंद और भी कई काम करते है जैसे पैसे को कमाने और बढ़ाने के साथ ही उसको ऐसे पकड़ कर रखते है जैसे वोह इस दुनिया में कमाई हुई जागीर के माली न होकर मालिक है और वह सदा ही उनके पास रहने वाली है . तभी तो मनोज भार्गव जैसे अनपढ़ लोगो ने पिछले  दस सालो में ५ हजार करोड़ की सम्पति समाज के काम के लिए दान की है . ऐसा ही  कुछ हाल और दूसरे  अमीरों   जैसे नरायण मूर्ति और अजीम प्रेम जी तथा बिल गेट जैसे स्कूल ड्रॉप आउट्स लोगो का भी है जिन्होंने अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा समाज के काम के लिए दान कर दिया है.

 एक अनपढ़ संत कबीर दास ने  लिखा है -


पानी बाढ़े   नाव में ,जेब में बाढ़े दाम ,
दोउ हाथ उलीचिये ,यही सज्जन को काम l

और   इन अनपढ़ लोगो ने  कबीर  का कहना मान कर अपनी जीवन रूपी नाव को डूबने से बचा लिया वरना पढ़ा लिखा अकलमंद आदमी तो हर काम में लाजिक  खोजता है, और अनपढ़ जनता  है, दुनिया में चीजे लाजिक  से नहीं बुद्धि से चलती है जैसे मनोज भार्गव जी कहते है बड़े-बड़े कालिजो के पढ़े हुए लोग अव्याहरिक ज्ञान से युक्त होते  है जबकि सफलता के लिए  पढ़े होने के बजाये कढ़े होने की जरुरत है .

अजय सिंह  "एकल "


और अंत मैं  

किसने कहा, और मत भेधो हृदय वहिव्य के शर  से
भरो कुसुम का अंग कसुम  से ,कुमकुम से केसर से
कुमकुम किसे लगाऊ  ?सुनाऊं किसको कोमल गान ?
तड़प रहा आँखों के आगे भूखा हिंदुस्तान I 
                                     "राम धारी सिंह दिनकर"