Friday, May 17, 2013

उम्र न पूछों नेता की

मित्रो,
यह तो आपने सुना ही होगा   कि औरतों  की उम्र और मर्द की कमाई नहीं पूछनी चाहिए। पर जनाब समय ऐसा बदल गया है कि  अब नेता और अफसरों चाहे वह मर्द हो या औरत की उम्र और कमाई आप कुछ भी  न पूंछे तो ही ठीक है।बात दरअसल यह है की पहले जब आप उम्र और कमाई पूछते थे तो वह व्यक्ति केवल उस समय का फैक्ट और फीगर बता देता था अर्थात  सूचना टू डाईमेंसनल हुआ करती थी। समय बदला लोग बदले और बदल गए सदाचार के नियम और फिर हम उन्नति भी तो कर गए है । इसलिये अब इसमें एक डाईमेंसन और जुड़ गई है अर्थात अब किसको बता रहे है उसके हिसाब से उम्र और आय बतानी पड़ती। जैसे मनमोहन सिंह ने पिछले चुनाव जो सन 2007 में हुए थे अपने को 74 का बताया था वही मनमोहन    सन 2013 में चुनाव आयोग के सामने हलफ नामा दे रहे  है की उनकी  उम्र 80 के बजाये 82 साल  हो गयी है। अर्थात उम्र अंकगणित के हिसाब से नहीं बढ़ी  बल्कि महंगाई की तरह बे काबू है, अब कर लो जो करना है। और नेता ही क्यों आर्मी के पूर्व प्रमुख जनरल वी के सिंह भी देश की 32 साल सेवा करने के बाद भी मन नहीं  भरा  एक  और साल देश सेवा करने का मन किया तो बस घटा दी उम्र एक साल।

कमाई तो आप नेता और अफसर की पूछने की गलती न ही करे तो ही ठीक है वर्ना पता चलेगा की जिन्दगी  भर में कुल तनखा मिली २ करोड़ और नौकरी से रिटयारमेंट के बाद सौ करोड़ के मालिक है। अभी दो साल पहले ही मध्य प्रदेश के एक आइ ए एस दम्पति के पास तीनसो करोड़ से भी ज्यादा की सम्पत्ति की मल्कियत का पता चला। और ये ही क्यों रोड ट्रांसपोर्ट और मैनुस्पल्टी के  बाबू से लगा कर इंजिनिअर तक सब करोड़पती  है इस देश में ।

 यदि आप नेताओ  की कमाई का हाल जानने की कोशिश करेंगे  तब  तो  फिर बस भगवान  ही मालिक।उत्तर प्रदेश में बहन जी के राज्य में बने एक पूर्व परिवहन  मन्त्री की हैसियत  पाँच साल में एक करोड़ से एक हजार  करोड़ हो गयी।लेकिन इसमें आश्चर्य की कोई  बात नहीं है।  जब उनकी आका मायावती  पाँच साल में पाँच  हजार करोड़ से ज्यादा कमा सकती है तो उनके मातहत का इतना हक़ तो बनता ही  है। लेकिन यह  हाल तो  है छुट भईया नेताओ का। अब अगर नेता केंद्र में हो और जरा जमा हुआ भी हो फिर तो इतने पैसे तो एक साल में ही हो जाते है। देखिये न एक -एक ट्रान्सफर और  पोस्टिंग का खर्चा और लगाईये कमाई का हिसाब।अरे नेता तो छोड़िये साहब साले, भांजे और जीजा तक की कमाई हजारो करोड़ है। अब जनता भूखी मरे तो मरती रहे नेताओ ने क्या ठेका लिया है  जनता का ? पाँच साल में एक बार वोट ही तो दिया था।उसके बदले दे तो दिया मनरेगा की स्कीम और गैस की सब्सिडी।और उतार दिया जनता का एहसान।
 डेमोक्रटिक देश के ईमानदार प्रधान मंत्री  का हाल देखिये कहते है कि उनके  पास अपनी  पन्द्रह साल पुरानी मारुती कार है बस। बहुत खूब मनमोहन सिंह जी। आपके योजना आयोग के उपाध्यक्ष कहते है  29रुपये रोज से ज्यादा कमाने वाला गरीबी रेखा के ऊपर और आपके पास  पन्द्रह साल  पुरानी कार। कही इसी वजह से तो देश का प्रोडक्शन नहीं घट रहा और मंदी आ गयी  है। लेकिन  जनता को आपके पास बड़ी कार न होने का कारण समझ में आ गया है। आखिर जब  बड़ी-बड़ी कारे  सरकार के खर्चे पर ड्राईवर और ईंधन के साथ सब्जी लाने   से लेकर बच्चो को स्कूल पहुचाने के लिए उपलब्ध  है तो क्या जरुरत है अपने पैसे खर्च करने की। जब सब कुछ मुफ्त में  सरकारी खर्चे पर मिलता है तो फिर  क्यों पड़े झंझट में। अब आप  कोई आम आदमी तो है नहीं जो नोन तेल लकड़ी का हिसाब लगाते घूमे।




और अंत में  
सरकार हमारी अपनी है,  और ये बस तो सरकारी है 
हम क्यों टिकट ख़रीदे, अपनी तो  बस कंडक्टर से यारी है। 

अजय सिंह "एकल"

Sunday, May 5, 2013

घोर कलयुग आ गया है

 दोस्तों,
वैसे तो कलयुग आये कई सौ साल हो चुके है और इस समय के समर्थन में कई लोगो ने जैसी भविष्यवांणियाँ   की थी वह  सच भी हो रही है जैसे कहा गया कि  "हंस चुनेगा दाना कौवा मोती खायेगा" तो आप आजकल  देश में कौओ को मोती खाते आसानी से देख सकते है। पर पिछले दिनों तो बस कमाल ही हो गया,आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्या हो गया की घोर कलयुग दिखने लगा है।तो आप को याद  दिला  दे की  द्वापर यानि कलयुग  से पहले वाले युग में आपने कंस मामा को अपने भांजे कृष्ण और शकुनी  मामा को भांजे दुर्योधन का  बेड़ा गर्क करते सुना होगा।अब  भांजे विजय सिंगला ने मामा और देश के रेल मंत्री पवन बंसल का बेड़ा गर्क किया है यानि अब मामा ने भांजे का नहीं बल्कि भांजे ने मामा को पलिता लगा कर  घोर कलयुग के आने  की घोषणा की  है ।

लेकिन इसी कलयुग में  सतयुग में हुई एक  घटना की पुनरावृत्ति भी हो रही है। यानी विभीषण ने एक बार फिर
रावण की लंका ढहाने का काम घर के भेदिया होने के कारण कर दिया है। आपने  ठीक समझा पिछले पाँच सालों में कर्नाटक की सत्ता पर काबिज भा .जा .पा .के पूर्व मुख्यमंत्रियो विशेष रूप से यद्दुराप्पा जी ने अपनी पार्टी बना कर कर्नाटक में कांग्रेस का रास्ता आसान  कर दिया है।और अपनी पूर्व पार्टी को धूल चटा कर "न खायंगे और न खाने देंगे" की कहावत को चरितार्थ किया है। वैसे यदुरप्पा और विभीषण में कई और समानताये भी है, मसलन दोनों ब्राह्मण है और दोनों दक्षिण भारत से आते है।

कांग्रेस ब्यूरो आफ इन्वेस्टीगेशन यानी सी. बी .आइ. के प्रमुख को बुला कर कोल घोटाले की रिपोर्ट को मन मुताबिक बदलवाने का महत्वपूर्ण काम करवा कर अश्वनी कुमार यानि देश के कानून मन्त्री ने कोल घोटाले में   फँसे अपने साथियो और पार्टी के प्रति वफ़ादारी का जो प्रदर्शन किया है उससे मोगेम्बो यानी  मनमोहन सिंह  और टीम तो जरुर खुश हुए है और इसीलिए सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पड़ी के बावजूद पूरी कांग्रेस पार्टी मजबूती से अश्वनी के पक्ष में खड़ी है और घोषणा कर दी है की जाँच पूरी होने तक इस्तीफे का  तो सवाल  ही नहीं और कांग्रेस के शासन में रहते जाँच पूरी हो जाये इसका भी कोई सवाल नहीं। यानी  यदि अगले चुनावो में यू . पी . ऐ . हार जाये तो ही इन घोटालो की जाँच हो सकती है नहीं  तो देश लुटेरों के हाथ लुटता ही रहेगा और फिर भगवान  ही मालिक है इस  देश का।

और अंत में  
आंधियों के बीच जो जलता हुआ मिल जायेगा 
उस दिए से पूछना मेरा पता मिल जायेगा।

अजय सिंह "एकल "