दिल खुश है आज, मस्जिद को वीरा देख कर ,
मेरी तरह खुदा का भी, खाना ख़राब है
मेरी तरह खुदा का भी, खाना ख़राब है
बात के पुरानी हो जाने से उसकी महत्ता कम नहीं होती ,न कहानी कि सीख बदलती है |
वर्ष २००७ में विदर्भ के किसानो को आत्महत्या करते देख हमारे प्रधान मंत्री जी का दिल भर आया और उन्होंने प्रधानमंत्री राहत कोष ( जो कि जनता के द्वारा दिए हुए दान के पैसे से बनता है) से पैसे उनकी हालत ठीक करने के लिए दिए ,टीवी ,अखबारों में खबर छपी ,खूब वाह वाही हुई | और फिर जब चेक बैंक में गई कैश होने तो पता लगा कि अकाउंट में पैसे नही है | जिस अधिकारी ने चेक साइन कि उसकी पदोन्नति हो गई और वह कृषि सचिव बन गए | और हो भी क्यों न आखिर उन्होंने किसानो को राहत जो दिलवा दी ,सरकार का नाम भी करवा दिया अखबारों में छपी खबरे गवाह है वो भी बिना पैसे खर्च किये हुए | अब वो कोई आम आदमी तो है नहीं कि चेक बोउंस का मुकदमा चले सेक्सन १३८ में ,आम आदमी न रहे इसी लिए तो भर्ती हुए थे सरकारी महकमे में |
अब सरकार चलाना कोई बच्चो का खेल तो नहीं है ,बहुत तरह के खेल खेलें पड़ते है ,दिन को रात और रात को दिन बनाना पड़ता है ,केवल बनाना ही नहीं सिद्ध भी करना पड़ता है | दुनिया के पांचवे सबसे बड़े नए हवाई टर्मिनल टी ३ का दिल्ली में उदघाटन प्रधान मंत्री जी ने ३ जुलाई को कर दिया ,हवाई मंत्री प्रफुल पटेल खुद गाड़ी चला कर ले गये और बताया गया कि १४ जुलाई २०१० को पहला जहाज लैंड करेगा | एक दिन बाद पता चला कि अभी केवल जहाज आयेगा और जायेगा, बाकी सुविधाए थोड़े दिन बाद मिलेंगी | फिर खबर आई कि अभी और टाइम लगेगा अभी जहाज लैंड करने कि भी पूरी तेयारी नहीं है|
सोचा कि कोई कारण होगा जल्दी उदघाटन करने का , आखिर बिना कारण तो हो नहीं सकता कि देश का प्रधान मंत्री झूठ बोले और देश को बिन वजह गुमराह करे ,तो पता चला कि कम्पनी कि टेंडर शर्तो में एक थी समय पर काम पूरा करने कि ,तो कंपनी ने शर्त के मुताबिक टर्मिनल हैण्ड ओवर टाइम से कर दिया बाकी सरकार जाने | आखिर सरकार का काम करने और सरकारी लोगो से दोस्ती का यही फायदा है वर्ना बाकी तो सब नुकसान ही है | होली, दिवाली पहुचाओ ,जायज न जायज मांगे मानो,मुफ्त में खाना खिलायो ,देश विदेश घुमाओ इन के बदले अगर थोडा बहुत फायदा न उठाओ तो फिर ये सब करने कि क्या जर्रूरत है , और फिर मंत्री जी को भी तो एहसान उतारने का मौका मिलना चाहिए ,अब इतनी एहसान फरामोसी भी तो ठीक नहीं कि जो सालो से सेवा कर रहा है उसके लिए छोटा सा झूठ भी न बोल सके|सरकार चलाना कोई बच्चो का खेल नहीं बहुत तरह के खेल खेलने पड़ते है |
लोग कहते है कि नाम में क्या रखा है ,मै सोचता हूँ कि नाम का बड़ा प्रभाव है | द्वापर में भी एक अर्जुन थे कुरुक्षेत्र में पहुच कर शंका में पड़ गए ,युद्ध करू कि ना करू ,श्रीकृष्ण जी ने समाधान में पूरी गीता सुना डाली और कहा तू कुछ नहीं करता है, करता तो मै हूँ ,बात पुरानी है लेकिन है पते कि |
कलयुग में एक बार फिर अर्जुन शंका में पड़ गया कि वारेन अन्डरसन को जाने दू कि न जाने दू ,अर्रेस्ट भी कर लिया तभी श्रीकृष्ण कि गीता याद आ गई तो लगा कि मै भी कहा कुछ कर रहा हू,मै तो केवल केंद्र के निर्देश का पालन कर रहा हू, मगर अर्जुन भूल गया कि कलयुग के कृष्ण बहुरूपीऐ है और ये बाद मै सब कुछ तुम्हारे ऊपर ही लाद देंगे | मगर गलती केंद्र के बहुरुपेओं से भी हो गई है ,अब अर्जुन ने कहा है कि मै अपनी गीता खुद लिखूंगा आत्म कथा के रूप में| इससे दोहरा फायदा होगा आत्म कथा के पैसे मिलेंगे बाकी जिन्दगी (अगर आत्म कथा में राजीव गाँधी का नाम खोलने के बाद बची तो) चैन से गुजारने के लिए और नहीं बची तो कम से कम दूसरा अर्जुन तो नहीं फसेंगा श्री कृष्ण के चक्कर में | अतः जब सब कुछ बताना ही है तो पैसे तो कमाने का जुगाड़ कर लो ,ये थोड़ी कि तुम तो टी आर पी बढाओ मुझे बदनाम कर के ,वो सरकार बचाए मुझे फंसा कर के और मै द्वापर से कलयुग तक बेचारा बना रहू | मै ये नहीं होने दूंगा किसी दूसरे अर्जुन को नही फसने दूंगा , आखिर नाम को तो बदनाम होने से बचाना ही है |
अजय सिंह "एकल"