प्रिय जनों ,
बारात आने में केवल १५ दिन बाकी है| शेरा मुस्करा रहा है , ठेकेदार हँस रहे है ,आयोजन समिति के लोग ठहाका लगा रहे है, मंत्री जी कहते है की हमने तो पहले ही कहा था की बारात को आने दो सब ठीक हो जायेगा |हम हिन्दुस्तानी राएता समेटने में निपुड है लेकिन इसको सिद्ध करने के लिए पहले फैलाना पड़ेगा | विरोधी पार्टी वाले तो यू ही आरोप लगाते रहते है ,अरे बाद में बैठा लेना आयोग | पहले इतने आयोग बैठाये तो क्या कुछ हो गया ,जो आगे हो जायेगा |एक बार काम खतम और पैसा हजम हो तो फिर कौन पूछता है |
देखो खेल गाँव कितना सुन्दर बना है ,यमुना के किनारे |हम है गाँधी के सिधान्तो को मानने वाले , वो सारी जिन्दगी गाँव को सुन्दर बनाने में लगे रहे और हमने सुन्दर सा गाँव दिल्ली में ही बना दिया | देखो गे तो देखते रह जाओगे , गाँव इतना सुन्दर की शहर वाले भी रस्क करे| क्या नहीं है गाँव में ,आलिशान वातानुकूलित कमरे रहने के लिए ,खेलने के लिए जिम ,जीमने के लिए १५० तरह के देसी-विदेसी व्यंजन |वाह क्या बात है १२ मिनट में ९ की .मी. पहुचने के लिए नाले पर सड़क |
"न्यूयार्क जैसी दिल्ली हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था ,
पर आज ये बिलकुल वैसी है जैसा मैंने सोचा था" |
बारात आने में केवल १५ दिन बाकी है| शेरा मुस्करा रहा है , ठेकेदार हँस रहे है ,आयोजन समिति के लोग ठहाका लगा रहे है, मंत्री जी कहते है की हमने तो पहले ही कहा था की बारात को आने दो सब ठीक हो जायेगा |हम हिन्दुस्तानी राएता समेटने में निपुड है लेकिन इसको सिद्ध करने के लिए पहले फैलाना पड़ेगा | विरोधी पार्टी वाले तो यू ही आरोप लगाते रहते है ,अरे बाद में बैठा लेना आयोग | पहले इतने आयोग बैठाये तो क्या कुछ हो गया ,जो आगे हो जायेगा |एक बार काम खतम और पैसा हजम हो तो फिर कौन पूछता है |
देखो खेल गाँव कितना सुन्दर बना है ,यमुना के किनारे |हम है गाँधी के सिधान्तो को मानने वाले , वो सारी जिन्दगी गाँव को सुन्दर बनाने में लगे रहे और हमने सुन्दर सा गाँव दिल्ली में ही बना दिया | देखो गे तो देखते रह जाओगे , गाँव इतना सुन्दर की शहर वाले भी रस्क करे| क्या नहीं है गाँव में ,आलिशान वातानुकूलित कमरे रहने के लिए ,खेलने के लिए जिम ,जीमने के लिए १५० तरह के देसी-विदेसी व्यंजन |वाह क्या बात है १२ मिनट में ९ की .मी. पहुचने के लिए नाले पर सड़क |
"न्यूयार्क जैसी दिल्ली हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था ,
पर आज ये बिलकुल वैसी है जैसा मैंने सोचा था" |
डेंगू फैलाते मच्छर , सडको में गड्ढे , टूटे फूटे फूटपाथ अब सब बाते जल्दी ही पुरानी हो जाएँगी , और दिल्ली होगी मेरी जान ,मेरी शान |
मैंने तो सुना है की पुराने ज़माने में तो जब लड़की के घर लड़के वाले आते थे तो पडोसी का सोफा घर में लगा कर अपनी शान बढ़ा लेते थे |अब तो जमाना इतना बदल गया है की गमी हो जाये तो प्रोफेशनल रोने वाले भी मिलते है तो भई विदेशी मेहमानों के आने के पहले पुरानी फर्श पर ईरानी कालीन डाल कर सुन्दर बना लेने में क्या हर्ज है अब कोई कालीन उठा कर तो देखेगा नहीं | इसलिये चारो ओर अफरा तफरी मची है जल्दी-जल्दी काम खतम करो बारात आने वाली है | वैसे भी हम हिन्दुस्तानी गड्ढे खोदने और उसको भरने में इतने माहिर है की बाद में तो ये पता चलाना भी मुश्किल है की पहले कोई गड्ढा खुदा भी था | बस ,कामन वेल्थ खेलो में लगे गाइड को समझा देना की मेहमानों को दिल्ली कहाँ तक की दिखानी है ,कहाँ तक की बतानी है , उसके आगे पीछे गए तो कंडीशन अप्लाई हो जाएगी और हमारी जिम्मेदारी ख़तम ,बाद में ना कहना की बताया नहीं था |
और दिल्ली वालो तुम लोग भी ध्यान से सुन लो ,इधर -उधर थूकने का नहीं ,लाल बत्ती तोड़ने का नहीं ,रेस्ट केवल रेस्टरूम में, बस वाले भैया जरा गति संभाल के नियम कायदे से चल लो केवल १५ दिन की ही तो बात है | हमेशा दिल्ली की पब्लिक के साथ रहने वाले पुलिस वालो अब नाक आपके हाथ में ही है सो भई दो हफ्ते बिना मेवा ही सेवा करदो ताकि नाक बची रहे ,फिर तो सारी जिन्दगी पड़ी है कमाने खाने को | हालाकि नाक केवल तुम्हारे हाथ में ही नहीं है और भी कई विभाग है सरकार के किसी को डेंगू रोकना है और किसी को सीवर नाला ,कहीं इन्द्र भगवान ने कृपा की तो फिर सब कुछ पानी -पानी |
लेकिन बारात आने का इन्तजार तो उन्हें ही होता है जिनके घर आती है ,हमारे जैसे लोगो को तो बारात जाने का इन्तजार है , ताकि हम फिर सड़क की दोनों लेन में आराम से चल सके और वह सबकुछ कर सके जो अंग्रेजो के ज़माने से करते आए है|हमको हमारी जरुरत की दूध और सब्जी ठीक भाव पर मिलसके ,बच्चे फिर स्कूल जा सके ,और पांच साल बाद हम फिर बारात के खुशी -खुशी बिदा होने की खुशिया मना सके और जी सके जिन्दगी अपने हिसाब से |
मैंने तो सुना है की पुराने ज़माने में तो जब लड़की के घर लड़के वाले आते थे तो पडोसी का सोफा घर में लगा कर अपनी शान बढ़ा लेते थे |अब तो जमाना इतना बदल गया है की गमी हो जाये तो प्रोफेशनल रोने वाले भी मिलते है तो भई विदेशी मेहमानों के आने के पहले पुरानी फर्श पर ईरानी कालीन डाल कर सुन्दर बना लेने में क्या हर्ज है अब कोई कालीन उठा कर तो देखेगा नहीं | इसलिये चारो ओर अफरा तफरी मची है जल्दी-जल्दी काम खतम करो बारात आने वाली है | वैसे भी हम हिन्दुस्तानी गड्ढे खोदने और उसको भरने में इतने माहिर है की बाद में तो ये पता चलाना भी मुश्किल है की पहले कोई गड्ढा खुदा भी था | बस ,कामन वेल्थ खेलो में लगे गाइड को समझा देना की मेहमानों को दिल्ली कहाँ तक की दिखानी है ,कहाँ तक की बतानी है , उसके आगे पीछे गए तो कंडीशन अप्लाई हो जाएगी और हमारी जिम्मेदारी ख़तम ,बाद में ना कहना की बताया नहीं था |
और दिल्ली वालो तुम लोग भी ध्यान से सुन लो ,इधर -उधर थूकने का नहीं ,लाल बत्ती तोड़ने का नहीं ,रेस्ट केवल रेस्टरूम में, बस वाले भैया जरा गति संभाल के नियम कायदे से चल लो केवल १५ दिन की ही तो बात है | हमेशा दिल्ली की पब्लिक के साथ रहने वाले पुलिस वालो अब नाक आपके हाथ में ही है सो भई दो हफ्ते बिना मेवा ही सेवा करदो ताकि नाक बची रहे ,फिर तो सारी जिन्दगी पड़ी है कमाने खाने को | हालाकि नाक केवल तुम्हारे हाथ में ही नहीं है और भी कई विभाग है सरकार के किसी को डेंगू रोकना है और किसी को सीवर नाला ,कहीं इन्द्र भगवान ने कृपा की तो फिर सब कुछ पानी -पानी |
लेकिन बारात आने का इन्तजार तो उन्हें ही होता है जिनके घर आती है ,हमारे जैसे लोगो को तो बारात जाने का इन्तजार है , ताकि हम फिर सड़क की दोनों लेन में आराम से चल सके और वह सबकुछ कर सके जो अंग्रेजो के ज़माने से करते आए है|हमको हमारी जरुरत की दूध और सब्जी ठीक भाव पर मिलसके ,बच्चे फिर स्कूल जा सके ,और पांच साल बाद हम फिर बारात के खुशी -खुशी बिदा होने की खुशिया मना सके और जी सके जिन्दगी अपने हिसाब से |
अजय सिंह "एकल"