मित्रो,
क्या आपको याद है की देश में आर्थिक सुधारो की शुरुवात १९९१ में नरसिम्हा राव की सरकार में आज के प्रधान मत्री और उस समय के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के द्वारा की गई थी. पिछले ८ सालो से यु पि ऐ सरकार के मुखिया प्रधान मंत्री के दौर में ही देश में आर्थिक हालत फिर वैसे ही हो गए है जैसे १९९१ में थे.विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से गिर रहा है रुपये का फिर तेजी से अवमूल्यन डालर के मुकाबले में हो गया है,रिजर्व बैंक के आकंडे बताते है की भारत का भुगतान संतुलन पिछले तीन सालो में पहली बार घाटे में आ गया है यानि की देश के विदेशी मुद्रा के खजाने में पैसा कम है और देनदारिया ज्यादा . कुल मिला कर देश में आर्थिक हालत बहुत अच्छे नहीं है इस बात की तस्दीक सरकार के आर्थिक सलाहकार डॉ. कौशिक बासू ने अपनी अमरीका यात्रा के दौरान भी कर दिया है, और आगाह भी, की अब २०१४ के पहले इसकी उम्मीद भी न करे. अर्थात जिस सरकार के सलाहकार वोह है उससे उन्हें भी कोई उम्मीद नहीं दिखती है,२०१४ का एक मतलब यह भी निकाला जा रहा है की लोकसभा चुनाव के बाद जब सरकार बदल जाये तो ही सुधारो के कामो में गति आ सकती है. कुल मिला कर देश को दवा और दर्द दोनों की आशा डाक्टर मनमोहन की मन मोहनी टीम से ही है जो अब कुछ कर सकने की स्थिति में है ऐसा विश्वास किसी को नहीं है यानि सरकार के अन्दर और बाहर दोनों जगह निराशा ही निराशा है.
लेकिन ऐसा भी नहीं की सभी कांग्रेसी इतने ही निष्क्रिय है, पार्टी के प्रवक्ता और स्टैंडिंग कमेटी के चेअरमैन डाक्टर अभिषेक मनु सिंघवी साहेब इतने सक्रिय है की लोगो को जज बना देते है रातोरात और जब बात जनता के बीच गयी और समाचार बन गया तो कोर्ट से उसको रुकवाने का आर्डर ले आये हाथो हाथ. है न कमाल अब आप ढूंढते रहिये आपको समाचार कही नहीं मिलेगा सब अख़बार और टी.वी.चैनल सिघवी साहब का साथ पूरी सिद्दत के साथ दे रहे है. आखिर यह कोई आम आदमी का मामला तो है नहीं की आपके घर में लुटेरे घुस जाये और मार पीट कर सामान भी लूट ले जाये और किसी टी.वी. चैनल का रिपोर्टर आ कर घर के मुखिया से पूछे की आप को कैसा लग रहा है?
किसी भी आदमी का नाम उसके माता पिता जब रखते है तो वह नाम आदमी की केवल पहचान न होकर परिवार की उस व्यक्ति से उम्मीदों को भी दर्शाता है . इतना ही नहीं ऐसा माना जाता है की नाम के अनुरूप व्यक्ति का व्यक्तित्व भी बनता है. लेकिन यह बात पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बारे में सत्य नहीं है . पिछले दो तीन महीनो में किये गए काम तो कम से कम यही बताते है. रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी को जिस तरह चलता किया गया और लोकतान्त्रिक देश में जहाँ ऍम अफ हुसैन द्वारा हिन्दू देवी देवताओं के निर्वस्त्र चित्र बनाने पर भी सरकार निष्क्रिय रहती है और विरोध करने वालो को सम्प्रादाइक करार देती है वही ममता नाम की नेता प्रोफ. अम्बिकेश महापात्र को कार्टून बनाने पर जेल भेज रही है.इतना ही नहीं अब जनता अख़बार कौन सा पढेगी और टी.वी. चैनल कौन सा देखेगी भी ममता और उनकी सरकार में बैठे लोग तय करेंगे. ठीक कह रही है बंगाल की जनता अगर यह ममता है तो निर्ममता क्या है?
और अंत में
उम्र भर ग़ालिब यही भूल करता रहा........
धूल चेहरे पर थी और आइना साफ़ करता रहा l
अजय सिंह "एकल "