प्रिय मित्रो ,
पता नहीं कहाँ आ गए है हम पिछले साठ सालो में .कोई परिपक्वता नहीं, दशा मे कुछ खास सुधार नहीं, हालात बद से बदतर . बस हमारे लोकतंत्र के भी साठ साल पूरे होने से इसके बाल भी उम्र के साथ -साथ सफेद हो गए है इसलिए सिनिअर सिटीजन की तरह कुछ रियायतों और सम्मान का अधिकारी हो गया है . वरना तो बस गोल माल ही गोल माल है सब जगह. अनगिनत घोटाले, बेमिसाल महंगाई, गरीब जनता का मजाक उड़ाया जा रहा है तरह -तरह के तर्क और सांख्यकी देकर और गरीब के नाम पर सरकार के पाले में बैठे लोग सुविधाओ का बेशर्मी के साथ उपभोग कर रहे है और यह ही इस देश की नियत बन गयी है. फर्क बस इतना है की पहले गौरी और गजनवी थे, फिर गोरे अंग्रेज आए और अब काले अंग्रेज है देश को लूटने के लिए . स्थिति यह है की एक बार किसी भी तरह राजनीत में पैर जम जाये तो फिर बस मजे ही मजे है . और कही पार्टी आला कमान भी सेट हो गए तो फिर क्या पूछने. सात पीढियो को तारने की ताकत आ जाती है ,जो चाहो कहो जो चाहो करो . भगवान जाने कहाँ आगये हम .
जरा याद कीजये राजेंद्र बाबू को जिन्होंने संसद में अपने उद्घाटन भाषण में कहा था "यह प्रथम अवसर है की जब समस्त देश का शासन एक प्रजातंत्रीय शासन प्रणाली के अंतर्गत आया है . देश के इतिहास में यह समय अभूत पूर्व है . इस गणराज्य और संसद की स्थापना स्वतंत्रता के बाद ही हो सकती थी, अतः इस स्वतंत्रता की रक्षा करना प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है . हमारे गण राज्य की नीव हमारे संविधान में निहित है . आपके ही एक साथी और स्वतंत्रता के संघर्ष में आपके कंधे से कन्धा मिला कर चलने वाले व्यक्ति की हैसियत से मैं आपको आश्वासन देता हूँ की साधारण व्यक्तियो की उन्नति ही मेरा सर्वप्रथम कर्तव्य होगा .मैं अपने समस्त देशवासियो से प्रार्थना करता हूँ की वे मुझे अपने में से ही एक समझे और मुझे शक्ति भर सेवा कर सकने के लिए उत्साहित करते रहे . ईश्वर मुझे सर्वसाधारण की सेवा की शक्ति दे". लेकिन अब देश में नेता बनना एक व्यवसाय है और जैसे किसी कंपनी का मालिक केवल पुत्र एवं पुत्रियों को ही अपना स्थान देता है वैसे ही नेता भी क़ाबलियत या सेवा करने के अपने जज्बे की वजह से न होकर खानदान की वजह से पद और प्रतिष्ठा प्राप्त कर रहे है. फिर चाहे वह गाँधी परिवार हो या यादव परिवार या फिर पंवार हो अथवा देश मुख परिवार कहाँ तक गिनवाये लम्बी फेहरिश्त है . ये तो अच्छा है कुछ नेता कुंवारें रह इसलिए वह इस परंपरा के अपवाद हो गए है। यह देखना वाकई दिलचस्प है की हम कहाँ से कहा आ गए है।
कभी भद्र जनों का खेल जाना जाने वाला खेल क्रिकेट अब पूरी दुनिया में फसादों की जड़ बन गया है . फिर चाहे पाकिस्तान की बीना मालिक हो या इंग्लैंड के मजहर माजिद . और जब मैच दिलचस्प हो और पैसे के साथ शोहरत मिलने की भी संभावना तो हिन्दुस्तानियों से मुकाबला मुश्किल है . आइ पी एल के नाम पर जब चार साल पहले क्रिकेट का नया तमाशा शुरू किया गया तब से ही यह विवादों का नया रिकार्ड बना रहा है . ललित मोदी से ले कर शरद पवार और राजीव शुक्ला सब एक से बढ़ कर एक विवादों और भ्रष्ट्राचार का रिकार्ड खिलाड़ियो से भी ज्यादा बना रहे है। इसी कड़ी में एक नया विवाद हाल में दिल्ली में हुए मैच में सिद्धार्थ मल्लया और अमरीका से खास तौर पर विवाद खड़ा करने के लिए बुलवाई गयी मोहतरमा जोहल हामिद के द्वारा किया गया और कई दिनों सुर्खियों में रहा .बात यहाँ तक पहुच गयी की आइ पी एल मतलब इंडियन फसाद लीग समझा जाने लगा , जिसमे "डी " कंपनी "पी " कंपनी और न जाने कितनी "ए टू जी" कंपनिया पैसे लगा रही है और कमा रही है . और मजे की बात यह की सरकार इन्हें हजारो करोड के टैक्स छूट भी दे रही है साथ ही गरीबो और मध्यम वर्ग़ की सुविधाएँ कैसे कम की जाये पर अविरल काम कर रही है . अब चिंता यह नहीं है की कहा आ गए हम बल्कि यह है की कहाँ तक जायेंगे हम .
इतना ही नहीं,जया बच्चन पिछले 10 सालो से मुलायम सिंह की कृपा से राज्य सभा की शोभा बढ़ा रही है, उसी राज्य सभा में जब उनकी पुरानी प्रतिद्वन्दी रेखा ने सोनिया गाँधी की कृपा पा कर 20 मिनट के लिए माननीय मेम्बर्सो को दर्शन दिए तो पुराने पारिवारिक मित्रो एवं प्रतिद्वंदियों में सदभावना नमस्कार भी नहीं हुआ. यानि पेशे की प्रतिद्वंदिता व्यक्तिगत रिश्तो पर भारी पड़ गयी . "यानि ये कहाँ आ गए हम यूँ ही साथ साथ चलते" .
और अंत में
भूख गरीबी दीनता, होते जिनके पास
सीमेंट पाइप उनके, बन जाते आवास
फिर बचपन देश का ,भोग रहा बनवास .
'राज कुमार सचान'
आज नगर में हो रहा चारो ओर विकास
बच्चो को भी मिल गया पाइप में आवास .
' डॉ. कमलेश दिवेदी'
अजय सिंह "एकल"