ओबामा 4 साल के लिए अमरीका के राष्ट्रपति और पूरी दुनिया के लिए चाचा चौधरी(Uncle Sam)फिर बन गये है ।फोर मोर इअर्स के नारे ने कमाल का करिश्मा कर दिया, प्रचार के दौरान एक बार तो लगा की शायद इसबार मिट रोमनी मिटा देंगे डेमोक्रट ओबामा को ।वोटों कि गिनती होते समय कई राज्यों में उन्होंने ओबामा को हराया भी लेकिन अंत में ओबामा अपना परचम लहराने में सफल रहे।पूरी दुनिया में अधिकतर देशो ने बधाई भी दी , कुछ ने दिल से तो कुछ ने केवल शिष्टाचार वस ।हिंदुस्तान के उद्योगपतियों तथा राजनेताओ ने भी बधाई दी, हालाकि बहुत से लोगो के मन में आउट सोर्सिंग की स्थिति तथा परमाणु विद्युत् के समझौतों को लेकर मन में संदेह भी है। लेकिन अब कोई उपाय तो है नहीं इसलिए चलो हम भी बधाई दे देते है आखिरहाथी के पावँ में ही सबका पावँ होता है।और इस धरती पर अमरीका से बड़ा हाथी कौन है?
भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पर आरोप लगे तो कांग्रेस की बाछे खिल गई।उन्हें लगा की देश को केवल वही बेमानी कर के नहीं लूट रहे है बल्कि विरोधी पार्टी जो चाल , चरित्र और चेहरा अलग बताती उसका चरित्र और चेहरा कमोबेस उसके जैसे ही है और इसलिए पहला मौका मिलते ही कांग्रेस के रण नीत कारो ने आरोपों की तोप का मुह वाड्रा और कोल घोटाले की बजाय गडकरी की और घुमा दिया और सरकार के मंत्रियो ने भी स्वामिभक्ति का परिचय देते हुये इन्कम टैक्स से ले कर मीडिया तक को सच्चाई पता लगाने में लगा दिया और सबने मिल कर ऐसा माहोल बना दिया की बी जे पी से लेकर संघ तक में गडकरी को बचाने और इस्तीफा मागने वालो का अन्तर्द्वंद जनता के बीच में आ गया और जो फजीहत होनी शुरू हुयी वोह अब बिना इस्तीफे के खत्म होगी ऐसा लगता नहीं है। पार्टी से ले कर गडकरी तक को भी यह लग रहा है कि जाना तो है ही लेकिन बे आबरू होकर न जाना पड़े तो अच्छा है।बस बी जे पी के रण नीत कारो से यहीं समय की चूक हो गयी।आखिर गडकरी कोई हीरा तो है नहीं जो सदा के लिए होता है।अगर आरोप लगने के तुरन्त बाद इस्तीफा दे देते तो गडकरी की इज्जत बच जाती पार्टी की इमेज बनती सो अलग। और फिर कांग्रेस के ऊपर पूरी ताकत से आक्रमण करने का मौका बी जे पी को मिलता इससे देश का भी और पार्टी का भी भला होता । खैर अब तो सिर्फ डैमेज कंट्रोल हो सकता है लेकिन अभी भी डैमेज कंट्रोल उपायों के बजाये कभी गुरुमूर्ति का और कभी कुछ और तरह -तरह के ड्रामे हों रहे हालाकि उपाय सिर्फ इस्तीफा ही है,राजी खुशी दे-दे तो ठीक नहीं तो बेआबरू होकर जायेंगे।
जिस तरह डेविड पेट्रास जो एफ बी आइ के डाइरेक्टर जैसे महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत थे एक महिला कर्मी के साथ सेक्स रिश्तो का आरोप लगते ही इस्तीफा दे दिया है यह अपने आप में एक मिसाल है।लग भग ऐसे ही आरोप जब कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी पर लगे थे तो वह तुरन्त 5-7 महीनो के लिए छिप गए और अब फिर जब यह भरोसा हो गया की जनता इतने दिनों में भूल गई होगी तो पार्टी को फिर सेवा देने और नए शिकार करने को हाजिर हो गए है। बस यही फर्क है अमरीका और भारत में।
ऐसा लगता है कांग्रेस के राजकुमार राहुल गाँधी अब देश के साथ कांग्रेस पार्टी के लिए भी असेट के बजाये लाएबिल्टी बनते जा रहे है।कांग्रेस के लोग बहुत दिनों से उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दे कर अपनी क़ाबलियत सिद्ध करने की मांग कर रहे है लेकिन एक के बाद एक असफलताओ के कारण ऐसा करने की उनकी हिम्मत पड़ नहीं रही है और वह बाकी लोगो की प्रगति में बाधा बन रहे है। लेकिन आज लोगो ने उन्हें चुनाव की समिति का प्रधान बना दिया है।पद सजावटी है इसलिए क़ाबलियत की जरुरत नहीं है।इस तरह साँप बिना लाठी तोड़े ही मर गया।वैसे भी कहते है की बेटर टू यूज दैन रस्ट आउट अर्थात जंग लगा कर बेकार करने से अच्छा है की इस्तेमाल कर लो। चलो देखते है की बाहें समेटने के अलावा और क्या कुछ कर सकते कुंवर साहेब।
और अंत में
मुल्क का कौम का इतना भी मियार (स्तर ) न गिरे
कि सुर्खिया देखते ही हाथ से अख़बार गिरे।
अजय सिंह "एकल "