प्रिय दोस्तों,
कुछ इसी तर्ज पर भाई मुलायम सिंह और मायावती बहनजी संसद में बता रहे थे।तभी तो दोनों ही पार्टियो ने ऍफ़ डी आइ का विरोध भाषण में तो किया लेकिन वोट डालने की जब बारी आयी तो सदन से बाहर चली गयी। और इस तरह से बिना लाठी तोड़े साँप मार दिया।लेकिन जनता को इससे एक बात तो यह समझ में आ ही गयी की भाई यदि ऍफ़ डी आइ लागू होने के बाद जनता को फायदा मिला तो कहेंगे की इसीलिए प्रस्ताव को संसद में गिरने नहीं दिया और अगर नुकसान हुआ तो कहेंगे की इसलिए तो प्रस्ताव के पक्ष में मत नहींदिया।दूसरी बात यह समझ में आ गयी "इस देश की राजनीत में नीतियों पर फैसला सड़क या संसद में नहीं बंद कमरों की सौदेबाजी से होता है। यहाँ समर्थन भी बिकता है और विरोध भी। बस खरीदार चाहिए।"और ऐसा हर पाँच साल में होते रहना चाहिए ताकि पैसे बटते रहे और नेताओ की अर्थव्यस्था अगले चुनाव के लिए ठीक हो जाये।
देश की दो राजनेत्री प्रियंका और वृंदा करात ने अपने अंग दान करने की घोषणा कर दी है। समाचार ने बड़ा हर्षित किया। एक तो इसलिए दोनों सुंदर नेत्रियो ने कुछ दान करने की बात कही है मरने के बाद ही सही, दूसरे इसलिए की जिन्हें लेने की आदत हो वह कुछ देने की बात करे तो इसका असर दूना होता है। अब अन्दर की बात यह है की जीते जी कुछ नहीं देंगे मरने के बाद चाहे जो हो।
राष्ट्रीय शर्म के काम राजनीतिज्ञ अक्सर करते ही रहते है, यह बात दीगर है की शर्म आती नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति ने भारतीय ओलम्पिक संघ पर प्रतिबंध लगाया है जिसका कारण यह है की हमारे यहाँ पदाधिकारियों के चुनाव में धांधागर्दी और भाई भतीजावाद इस कदर हावी है की बेसिक दिशा निर्देशों का भी पालन नही हो पा रहा है। वास्तव में राजनीत का विस्तार इतना ज्यादा हो गया है की अब देश में कुछ भी राजनीत से परे नहीं है। राजनीत में खेल और खेलो में राजनीत तो हिन्दुस्तानियो की पुरानी फितरत है।
अजय सिंह "एकल "
कुछ इसी तर्ज पर भाई मुलायम सिंह और मायावती बहनजी संसद में बता रहे थे।तभी तो दोनों ही पार्टियो ने ऍफ़ डी आइ का विरोध भाषण में तो किया लेकिन वोट डालने की जब बारी आयी तो सदन से बाहर चली गयी। और इस तरह से बिना लाठी तोड़े साँप मार दिया।लेकिन जनता को इससे एक बात तो यह समझ में आ ही गयी की भाई यदि ऍफ़ डी आइ लागू होने के बाद जनता को फायदा मिला तो कहेंगे की इसीलिए प्रस्ताव को संसद में गिरने नहीं दिया और अगर नुकसान हुआ तो कहेंगे की इसलिए तो प्रस्ताव के पक्ष में मत नहींदिया।दूसरी बात यह समझ में आ गयी "इस देश की राजनीत में नीतियों पर फैसला सड़क या संसद में नहीं बंद कमरों की सौदेबाजी से होता है। यहाँ समर्थन भी बिकता है और विरोध भी। बस खरीदार चाहिए।"और ऐसा हर पाँच साल में होते रहना चाहिए ताकि पैसे बटते रहे और नेताओ की अर्थव्यस्था अगले चुनाव के लिए ठीक हो जाये।
देश की दो राजनेत्री प्रियंका और वृंदा करात ने अपने अंग दान करने की घोषणा कर दी है। समाचार ने बड़ा हर्षित किया। एक तो इसलिए दोनों सुंदर नेत्रियो ने कुछ दान करने की बात कही है मरने के बाद ही सही, दूसरे इसलिए की जिन्हें लेने की आदत हो वह कुछ देने की बात करे तो इसका असर दूना होता है। अब अन्दर की बात यह है की जीते जी कुछ नहीं देंगे मरने के बाद चाहे जो हो।
राष्ट्रीय शर्म के काम राजनीतिज्ञ अक्सर करते ही रहते है, यह बात दीगर है की शर्म आती नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति ने भारतीय ओलम्पिक संघ पर प्रतिबंध लगाया है जिसका कारण यह है की हमारे यहाँ पदाधिकारियों के चुनाव में धांधागर्दी और भाई भतीजावाद इस कदर हावी है की बेसिक दिशा निर्देशों का भी पालन नही हो पा रहा है। वास्तव में राजनीत का विस्तार इतना ज्यादा हो गया है की अब देश में कुछ भी राजनीत से परे नहीं है। राजनीत में खेल और खेलो में राजनीत तो हिन्दुस्तानियो की पुरानी फितरत है।
अजय सिंह "एकल "