प्रिय पाठकों,
देश में फिर चुनाओं की बरसात का मौसम आ गया है और साथ ही आ गया है मेढकों की बयान बाजी का।इन मेढकों को दिशा देने और एक तराजू में रखने के लिए दोनों प्रमुख पार्टियो ने अपने अपने कमान्डर बना दिये है। आइये देखते है इन दोनों कमांडरो की क्या स्टाइल है और यह कैसे रखेंगे अपने-अपने मेढको को अपनी कमांड में।
भाजपा के नमो मन्त्र ने देश में जितनी उथल पुथल राजनीत में इस समय मचा रखी है, आजादी के बाद इतनी हलचल इसके पहले जिन लोगो ने मचाई है उनमे एक है जय प्रकाश नारायण और दूसरे है विश्वनाथ प्रताप सिंह। एक ने देश में आपात काल में जनता का नेतृत्व किया और इन्द्रा गाँधी जैसी महिला को सत्ता से बेदखल करवा कर जनता पार्टी की सरकार बनवा दी और इस तरह कभी हार ना मानने वाली इन्द्रा को जेल तक जाना पड़ा। दूसरे ने राजीव गाँधी सरकार में बोफोर्स घूस कांड को लेकर पूरे देश में जागरूकता फैलाने का अभूत पूर्व काम किया था। और राजीव गाँधी को सत्ता से ऐसा बाहर किया की कांग्रेस को मज़बूरी में नरसिंघा राव को प्रधानमन्त्री बनाना पड़ा और देश का शाही गाँधी परिवार करीब तेरह साल शक्ति हीन होकर सत्ता से दूर रहा ।
लेकिन अब परस्थितिया फर्क है।यू पी ए के दस सालों के कुशासन ने भ्रष्टाचार ,महंगाई और अराजकता की वजह से ऐसा माहौल देश में बन गया है की नेताओ की विश्वसनीयता पर बड़ा प्रश्न चिन्ह लग गया है। बी जे पी के नेता भी इसका अपवाद नहीं है। ऐसे में जनता नरेंद्र मोदी को प्रधान मन्त्री पद का सबसे शशक्त उम्मीदवार मानने लगी है और भाजपा जो अब तक देश की सबसे बड़ी विरोधी पार्टी होने के बावजूद डिफेन्सिव खेल रही थी अब लीड रोल में आ गई है। विरोधी पार्टी होने के नाते तो यह रोल ठीक है लेकिन इसकी वजह से पार्टी के अन्दर कई महत्वाकान्छी नेताओ को यह स्थिति स्वीकारने में दिक्कत हो रही है। तीसरी बार गुजरात में जीतने के बाद नरेन्द्र मोदी ने सिद्ध कर दिया की शेर को कोई राजा नहीं बनाता बल्कि उसकी दहाड़ सुन कर बाकी लोग उसे राजा मान लेते है।अतः मज़बूरी में भाजपा के बाकी नेताओ ने इसे भाग्य मान कर स्वीकार कर लिया है। अब इन सभी लोगों को एक साथ रखना और अगले लोक सभा चुनाव तक जोड़े रखना ताकि अंतिम लक्ष्य प्राप्त करने तक सिर्फ लक्ष्य पर निगाहें रहे और कोई अपनी टर्र से नई बकवास कर नये विवादों को जन्म न दे इस पर काबू पाना मेढको को एक तराजू में तोलने से कुछ कम नहीं है और मोदी को राजनीतिक विरोधियो के साथ इस चुनोती से भी निपटना है।
मगर ऐसा नहीं है की मेंढक केवल भाजपा में है। कांग्रेसी नेता भी कुछ कम नहीं है। दिग्गी राजा यानी दिग्विजय सिंह, मनीष तिवारी,अजय माकन , रेणुका चौधरी जैसों की लम्बी लाइन है मगर एक फर्क है कांग्रेसी और भाजपाईयो में। इनको एक तराजू में तोलना सम्भव है। एक हंटरवाली के काबू में सब है और फेविकोल से जुड़े है।सुबह शाम जी मेम साहब और युवराज की जय बोलने के बाद इन्हें दिन भर कुछ भी टर्र -टर्र करने की छूट है शाम को एक बार इनके विचारों कों वफ़ादारी की तराजू में तोला जाता है और इसके हिसाब से इनका इनाम तय किया जाता है।जिसकी टर्र ज्यादा उसका इनाम भी जोरदार। मंत्री से लगा कर राज्यपाल तक का पद आपको सुलभ हो सकता है पुरस्कार मे।अतः लोग जल्दी से जल्दी अपनी पोजीशन ले लेना चाहते है फिर इसके लिये चाहे कितनी भी टर्र करनी पड़े।
मोदी की हर अदा पर पक्ष और विपक्ष दोनों फ़िदा है चाहे उनकी बुर्के का डायेलाग हो या बिना बुर्के का।टिकट लगा कर भाषण करना हो या बिना टिकट का। टिकट के दाम को कोई मोदी का रेट बता रहा है और कोई इस बात को हैवी वैट नेता की पहचान बता रहा है। बाकी नेताओ को डर सता रहा है यह नया कम्पटीसन है,उनकी बात कोई मुफ्त में तो सुनता नहीं फिर पैसे दे कर क्यों सुनेगा।क्या मुंह दिखायेंगे जनता को किसके बूते पहचाने जायेंगे इसलिए पूरा जोर लगाकर ख़ारिज कर दिया। वैसे आइडिया बुरा नहीं है आखिर लोग सरकस भी तो पैसे देकर ही देखने जाते है और फिल्म, टेलीविजन में भी बकवास देखने और सुनने के पैसे देते है फिर नेताओ कि बाह सिकोड़ अदा और बकवास भी मुफ्त में क्यों? तो साहब मौसम आ गया है राग भैरवी से राग मल्हार तक सुनने को मिलेगा और पैर पटक से धोबी पछाड़ तक देखने को मिलेगा इस चुनावी साल में।बस थोड़ा इन्तजार कीजये और देखते जाईये आगे आगे होता है क्या ।
और अन्त में
सिर्फ खन्जर नहीं आंख में पानी चाहिये
ऐ खुदा मुझे दुश्मन खानदानी चाहिये।