
जब सब कुछ वही है तो खेल के नियम कैसे बदल जायेंगे। ये तो हमारी ही गलती है अब हम न समझे तो इसमें कोई क्या कर सकता है। बस इसीलिए एक और ट्रांसफर कर दिया गया। अरे भइया इंजीनियरिंग पढ़ने और आई ए एस बन जाने से ही अकल नहीं आ जाती है खेमका जी कुछ व्याहारिक बनिये। क्या आपको पता नहीं है "साहब से सब होत है, बन्दे से कुछ नहीँ,राई से परबत करे, परबत राई माहीं" यही है साहबी माया। साहब के लिए क्या गलत और क्या सही।

बिहार में भिखारी बैंक में जब अपना अकाउंट नहीं खुलवा पाये तो अपना बैंक बना लिया। जनाब इसे कहते
है चाणक्य की तरह चोटी बांधना जब तक चन्द्र गुप्त के वंश का नाश नहीं कर लूंगा तब तक चोटी नहीं बाँधूँगा अब उठा ली कसम तो फिर पूरी करके ही दम लेँगे . पर यह पहली बार नहीं है ये तो प्रकृति का नियम है आपके पास जो नहीं है उसे पाने की चेस्टा करना ही मनुष्य का स्वभाव है , इसे कभी उद्यमता कहते है और कभी जूनून।तो बांध ली बिहार के भिखारिओ ने चोटी और बैंक खोल डाला। अब समस्या तो उन लोगो के लिए हो गयी जो बड़े भिखारी है और बैंक खोलने का लाइसेंस लेने के लिए रिजर्व बैंक में प्रार्थना पत्र लगा रखा था। उन्हें समझ नहीं आ रहा कैसे करे इस कम्पटीसन का मुकाबला ऐसा कोई केस भी तो किसी एम बी ये नहीं पढ़ाया गया तो कैसे करे सामना समस्या का। इसको फेस करने के लिए खोज जारी है।
और अंत में
ट्रांसफर पर बहस से, हाकिम है हलकान
तरह तरह के कारण है, खोज रहे समाधान
अजय सिंह "एकल"