लो जी हो गया अशोक खेमका का ट्रान्सफर। ४६ वां ट्रांसफर है २२ साल की नौकरी में। काम ही ऐसा करते है तो कोई क्या करे। अब आखिर क्या भाजपा वालों के रिश्तेदार नहीं है दामाद न सही पर भाई बंधू ,साले , सालियाँ कोई तो होगा और व्यापार भी करता होगा,अगर उसने अपने समधी के चुनाव में पैसे लगाये है तो सूद समेत क्यों न वसूले। भाजपा की सरकार बन जाने का यह मतलब तो नहीं अब खाना नहीं खाया जायेगा।
जब सब कुछ वही है तो खेल के नियम कैसे बदल जायेंगे। ये तो हमारी ही गलती है अब हम न समझे तो इसमें कोई क्या कर सकता है। बस इसीलिए एक और ट्रांसफर कर दिया गया। अरे भइया इंजीनियरिंग पढ़ने और आई ए एस बन जाने से ही अकल नहीं आ जाती है खेमका जी कुछ व्याहारिक बनिये। क्या आपको पता नहीं है "साहब से सब होत है, बन्दे से कुछ नहीँ,राई से परबत करे, परबत राई माहीं" यही है साहबी माया। साहब के लिए क्या गलत और क्या सही।
आपके कालेज के एक सीनियर अभी अभी चीफ मिनिस्टर बने है दिल्ली के। पहले आपकी तरह नौकरी करते थे तब छोटे साहब थे अब बड़े हो गए है। उन्होंने सीख लिये खेल के नियम। कैसे -कैसे खेल खेलने पड़े बड़ी होशियारी से खेला और अपने से बड़े खिलाडी को हरा दिया। ऐसी पटखनी दी की चारो खाने चित्त हो गये, न अच्छी किस्मत काम आयी और न पुलिस अफसर की क़ाबलियत। इतना ही जिनके कंधे पर बैठ कर आगे बढे उनको जैसे ही गलतफहमी हुई और अपना हिस्सा माँगा तो बस दिखा दिया अपनी साहेबी निकल के बाहर किया पद देना तो दूर पार्टी से भी निकाल के दम लिया . इसे कहते है क़ाबलियत। सारी प्रोफ़ेसरी और वकालत निकाल दिया। ऐसा धोबी पाट लगाया की औकात में आ गए,आखिर वह साहेब भी क्या जो अपनी ताकत न पहचाने।
बिहार में भिखारी बैंक में जब अपना अकाउंट नहीं खुलवा पाये तो अपना बैंक बना लिया। जनाब इसे कहते
है चाणक्य की तरह चोटी बांधना जब तक चन्द्र गुप्त के वंश का नाश नहीं कर लूंगा तब तक चोटी नहीं बाँधूँगा अब उठा ली कसम तो फिर पूरी करके ही दम लेँगे . पर यह पहली बार नहीं है ये तो प्रकृति का नियम है आपके पास जो नहीं है उसे पाने की चेस्टा करना ही मनुष्य का स्वभाव है , इसे कभी उद्यमता कहते है और कभी जूनून।तो बांध ली बिहार के भिखारिओ ने चोटी और बैंक खोल डाला। अब समस्या तो उन लोगो के लिए हो गयी जो बड़े भिखारी है और बैंक खोलने का लाइसेंस लेने के लिए रिजर्व बैंक में प्रार्थना पत्र लगा रखा था। उन्हें समझ नहीं आ रहा कैसे करे इस कम्पटीसन का मुकाबला ऐसा कोई केस भी तो किसी एम बी ये नहीं पढ़ाया गया तो कैसे करे सामना समस्या का। इसको फेस करने के लिए खोज जारी है।
अजय सिंह "एकल"
जब सब कुछ वही है तो खेल के नियम कैसे बदल जायेंगे। ये तो हमारी ही गलती है अब हम न समझे तो इसमें कोई क्या कर सकता है। बस इसीलिए एक और ट्रांसफर कर दिया गया। अरे भइया इंजीनियरिंग पढ़ने और आई ए एस बन जाने से ही अकल नहीं आ जाती है खेमका जी कुछ व्याहारिक बनिये। क्या आपको पता नहीं है "साहब से सब होत है, बन्दे से कुछ नहीँ,राई से परबत करे, परबत राई माहीं" यही है साहबी माया। साहब के लिए क्या गलत और क्या सही।
आपके कालेज के एक सीनियर अभी अभी चीफ मिनिस्टर बने है दिल्ली के। पहले आपकी तरह नौकरी करते थे तब छोटे साहब थे अब बड़े हो गए है। उन्होंने सीख लिये खेल के नियम। कैसे -कैसे खेल खेलने पड़े बड़ी होशियारी से खेला और अपने से बड़े खिलाडी को हरा दिया। ऐसी पटखनी दी की चारो खाने चित्त हो गये, न अच्छी किस्मत काम आयी और न पुलिस अफसर की क़ाबलियत। इतना ही जिनके कंधे पर बैठ कर आगे बढे उनको जैसे ही गलतफहमी हुई और अपना हिस्सा माँगा तो बस दिखा दिया अपनी साहेबी निकल के बाहर किया पद देना तो दूर पार्टी से भी निकाल के दम लिया . इसे कहते है क़ाबलियत। सारी प्रोफ़ेसरी और वकालत निकाल दिया। ऐसा धोबी पाट लगाया की औकात में आ गए,आखिर वह साहेब भी क्या जो अपनी ताकत न पहचाने।
बिहार में भिखारी बैंक में जब अपना अकाउंट नहीं खुलवा पाये तो अपना बैंक बना लिया। जनाब इसे कहते
है चाणक्य की तरह चोटी बांधना जब तक चन्द्र गुप्त के वंश का नाश नहीं कर लूंगा तब तक चोटी नहीं बाँधूँगा अब उठा ली कसम तो फिर पूरी करके ही दम लेँगे . पर यह पहली बार नहीं है ये तो प्रकृति का नियम है आपके पास जो नहीं है उसे पाने की चेस्टा करना ही मनुष्य का स्वभाव है , इसे कभी उद्यमता कहते है और कभी जूनून।तो बांध ली बिहार के भिखारिओ ने चोटी और बैंक खोल डाला। अब समस्या तो उन लोगो के लिए हो गयी जो बड़े भिखारी है और बैंक खोलने का लाइसेंस लेने के लिए रिजर्व बैंक में प्रार्थना पत्र लगा रखा था। उन्हें समझ नहीं आ रहा कैसे करे इस कम्पटीसन का मुकाबला ऐसा कोई केस भी तो किसी एम बी ये नहीं पढ़ाया गया तो कैसे करे सामना समस्या का। इसको फेस करने के लिए खोज जारी है।
और अंत में
ट्रांसफर पर बहस से, हाकिम है हलकान
तरह तरह के कारण है, खोज रहे समाधान
अजय सिंह "एकल"