दोस्तों,
पिछले सप्ताह देश में एक ऐसी घटना घट गई जिसने मेरी नींद उड़ा दी है और बेचैन कर दिया हालाकिं इस समाचार पर समाचार पत्रों और दूरदर्शन पर बहस बहुत हुयी है लेकिन मेरी चिंता कुछ फर्क है और लोगो की चिंता से।
हुआ ये की अरविन्द केजरीवाल के डी .एल .एफ . और वाड्रा सम्बन्धो के खुलासे पर वाड्रा साहेब खुन्दक खा गये और भारत देश और जनता की तुलना "मैंगो मैन आफ बनाना रिपब्लिक " कहकर कर दी .यहाँ तक तो ठीक था भारत के आम को कोई कुछ भी कहे इस से कहने वाले को भले आत्म संतुष्टि मिलती हो, आम आदमी कोई फर्क नहीं पड़ता इसलिए नहीं की वह कुछ जानती समझती नहीं बल्कि इस लिए कि उसकी अपनी मजबूरिया उसे और कुछ सोचने की फुर्सत ही नहीं देती। खैर देश के पहले परिवार के दामाद का यह सोचना मुझे कुछ ज्यादा ठीक नहीं लगा फिरभी मैंने सोचा की चलो कोई बात नहीं, आम तो होता इसीलिए है जो चाहे निचोड़े चूसे और फेंक दे. आम को क्या फर्क पड़ता है। लेकिन अब समस्या ज्यादा विकट है।
कहाँ चोराहे की लाल बत्ती पर पुलिस द्वारा रोके जाने पर गिडगिडाने वाला बेचारा आम आदमी राशन की दुकानों का चक्कर लगने वाला आदमी ,कहाँ एक अदद राशन कार्ड के लिए धक्के खाने वाला आदमी ,कहा सरकारी बस में पसीना बहाने वाला जिसको मैं अबतक देश का आम आदमी समझता था, मुझे अचानक लगा की मैं स्वप्न लोक मैं विचरण कर रहा हूँ जहाँ आम आदमी का बैंक बैलेंस इतना है की आधा शहर खरीद ले,चमचमाती बड़ी कार मे घूम रहा है, पुलिस वाला सलाम कर रहा है और साल मैं 6-7 नहीं सब्सिडी वाले 60-70 गैस सिलेण्डर मिलते है और कोई मंत्री इस सब्सिडी का भार सहने के लिए मना नहीं करता बल्कि और भी भार सहने को ख़ुशी-ख़ुशी तैआर है।फर्जी बैलेंस शीट में जारी आकड़ो को खुद कार्पोरेट अफेअर मंत्री सही होने का प्रमाण दे रहे है। बड़ी मुश्किल से वफादारी का प्रमाण देने का समय मिला है अतः हरकोई एक दूसरे से आगे निकलना चाहता है।पता नहीं फिर मौका कब मिलेगा अरविन्द केजरीवाल भी मानते है की इस मौके पर चूके तो अगला मौका चालीस साल बाद आयेगा।
पिछले सप्ताह देश में एक ऐसी घटना घट गई जिसने मेरी नींद उड़ा दी है और बेचैन कर दिया हालाकिं इस समाचार पर समाचार पत्रों और दूरदर्शन पर बहस बहुत हुयी है लेकिन मेरी चिंता कुछ फर्क है और लोगो की चिंता से।
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आम जनता का ख़िताब पाए हर आदमी की आखरी तम्मना होती है खास बनना।और वो सारी जिन्दगी इसी कोशिश में लगा रहता है।इसके लिए चोरी करना, राजनीत करना और भी बहुत कुछ करना पड़ता है लेकिन अब तो हद हो गयी है । गाँधी परिवार के दामाद राबर्ट बडेरा जो दामाद बनने के पहले आम (दसहरी ) थे और गाँधी परिवार में शादी करके खास बन गये है वो फिर से आम (अलफांसो )बनना चाहते है।एक ऐसा आम आदमी जिसके पास रु 300 करोड़ का बैंक बैलेंस है जिसको बचाने के लिए देश का कानून मंत्री जान देने को तैयार है, वित्त मंत्री कानून बदलने को तत्पर है।
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जब से अरविन्द और वाड्रा साहेब में आम आदमी बनने को होड़ लगी है लोग खास की बजाय आम बनना चाहते है। मैनेजमेन्ट की भाषा मैं इसे कहते है प्रतिमान बदलना अर्थात पैराडाइम शिफ्ट।अब इस देश का आम आदमी खास बनने की कोशिश नहीं करेगा बल्कि खास लोग आम बनने की कोशिश करेंगे।चाहे वो देश के प्रथम राजनैतिक परिवार के दामाद राबर्ट वाड्रा हो या भारतीय रेवेन्यू सेवा के पूर्व अधिकारी अरविन्द केजरीवाल।चलो इस बहाने कम से कम देश के 70 करोड़ लोगो को खाना मिलने लगेगा और लंगोटी भी।
हम जानते है जन्नत की हकीकत को
दिल बहलाने को ग़ालिब ख्याल अच्छा है।
मिर्जा ग़ालिब
अजय सिंह "एकल"
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