मित्रो,
यह तो आपने सुना ही होगा कि औरतों की उम्र और मर्द की कमाई नहीं पूछनी चाहिए। पर जनाब समय ऐसा बदल गया है कि अब नेता और अफसरों चाहे वह मर्द हो या औरत की उम्र और कमाई आप कुछ भी न पूंछे तो ही ठीक है।बात दरअसल यह है की पहले जब आप उम्र और कमाई पूछते थे तो वह व्यक्ति केवल उस समय का फैक्ट और फीगर बता देता था अर्थात सूचना टू डाईमेंसनल हुआ करती थी। समय बदला लोग बदले और बदल गए सदाचार के नियम और फिर हम उन्नति भी तो कर गए है । इसलिये अब इसमें एक डाईमेंसन और जुड़ गई है अर्थात अब किसको बता रहे है उसके हिसाब से उम्र और आय बतानी पड़ती। जैसे मनमोहन सिंह ने पिछले चुनाव जो सन 2007 में हुए थे अपने को 74 का बताया था वही मनमोहन सन 2013 में चुनाव आयोग के सामने हलफ नामा दे रहे है की उनकी उम्र 80 के बजाये 82 साल हो गयी है। अर्थात उम्र अंकगणित के हिसाब से नहीं बढ़ी बल्कि महंगाई की तरह बे काबू है, अब कर लो जो करना है। और नेता ही क्यों आर्मी के पूर्व प्रमुख जनरल वी के सिंह भी देश की 32 साल सेवा करने के बाद भी मन नहीं भरा एक और साल देश सेवा करने का मन किया तो बस घटा दी उम्र एक साल।
कमाई तो आप नेता और अफसर की पूछने की गलती न ही करे तो ही ठीक है वर्ना पता चलेगा की जिन्दगी भर में कुल तनखा मिली २ करोड़ और नौकरी से रिटयारमेंट के बाद सौ करोड़ के मालिक है। अभी दो साल पहले ही मध्य प्रदेश के एक आइ ए एस दम्पति के पास तीनसो करोड़ से भी ज्यादा की सम्पत्ति की मल्कियत का पता चला। और ये ही क्यों रोड ट्रांसपोर्ट और मैनुस्पल्टी के बाबू से लगा कर इंजिनिअर तक सब करोड़पती है इस देश में ।
यदि आप नेताओ की कमाई का हाल जानने की कोशिश करेंगे तब तो फिर बस भगवान ही मालिक।उत्तर प्रदेश में बहन जी के राज्य में बने एक पूर्व परिवहन मन्त्री की हैसियत पाँच साल में एक करोड़ से एक हजार करोड़ हो गयी।लेकिन इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। जब उनकी आका मायावती पाँच साल में पाँच हजार करोड़ से ज्यादा कमा सकती है तो उनके मातहत का इतना हक़ तो बनता ही है। लेकिन यह हाल तो है छुट भईया नेताओ का। अब अगर नेता केंद्र में हो और जरा जमा हुआ भी हो फिर तो इतने पैसे तो एक साल में ही हो जाते है। देखिये न एक -एक ट्रान्सफर और पोस्टिंग का खर्चा और लगाईये कमाई का हिसाब।अरे नेता तो छोड़िये साहब साले, भांजे और जीजा तक की कमाई हजारो करोड़ है। अब जनता भूखी मरे तो मरती रहे नेताओ ने क्या ठेका लिया है जनता का ? पाँच साल में एक बार वोट ही तो दिया था।उसके बदले दे तो दिया मनरेगा की स्कीम और गैस की सब्सिडी।और उतार दिया जनता का एहसान।
यदि आप नेताओ की कमाई का हाल जानने की कोशिश करेंगे तब तो फिर बस भगवान ही मालिक।उत्तर प्रदेश में बहन जी के राज्य में बने एक पूर्व परिवहन मन्त्री की हैसियत पाँच साल में एक करोड़ से एक हजार करोड़ हो गयी।लेकिन इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। जब उनकी आका मायावती पाँच साल में पाँच हजार करोड़ से ज्यादा कमा सकती है तो उनके मातहत का इतना हक़ तो बनता ही है। लेकिन यह हाल तो है छुट भईया नेताओ का। अब अगर नेता केंद्र में हो और जरा जमा हुआ भी हो फिर तो इतने पैसे तो एक साल में ही हो जाते है। देखिये न एक -एक ट्रान्सफर और पोस्टिंग का खर्चा और लगाईये कमाई का हिसाब।अरे नेता तो छोड़िये साहब साले, भांजे और जीजा तक की कमाई हजारो करोड़ है। अब जनता भूखी मरे तो मरती रहे नेताओ ने क्या ठेका लिया है जनता का ? पाँच साल में एक बार वोट ही तो दिया था।उसके बदले दे तो दिया मनरेगा की स्कीम और गैस की सब्सिडी।और उतार दिया जनता का एहसान।
डेमोक्रटिक देश के ईमानदार प्रधान मंत्री का हाल देखिये कहते है कि उनके पास अपनी पन्द्रह साल पुरानी मारुती कार है बस। बहुत खूब मनमोहन सिंह जी। आपके योजना आयोग के उपाध्यक्ष कहते है 29रुपये रोज से ज्यादा कमाने वाला गरीबी रेखा के ऊपर और आपके पास पन्द्रह साल पुरानी कार। कही इसी वजह से तो देश का प्रोडक्शन नहीं घट रहा और मंदी आ गयी है। लेकिन जनता को आपके पास बड़ी कार न होने का कारण समझ में आ गया है। आखिर जब बड़ी-बड़ी कारे सरकार के खर्चे पर ड्राईवर और ईंधन के साथ सब्जी लाने से लेकर बच्चो को स्कूल पहुचाने के लिए उपलब्ध है तो क्या जरुरत है अपने पैसे खर्च करने की। जब सब कुछ मुफ्त में सरकारी खर्चे पर मिलता है तो फिर क्यों पड़े झंझट में। अब आप कोई आम आदमी तो है नहीं जो नोन तेल लकड़ी का हिसाब लगाते घूमे।
और अंत में
और अंत में
सरकार हमारी अपनी है, और ये बस तो सरकारी है
हम क्यों टिकट ख़रीदे, अपनी तो बस कंडक्टर से यारी है।
अजय सिंह "एकल"