प्रिय मित्रो,
बीड से भाजपा के मेम्बर ऑफ़ पार्लियामेंट और लोकसभा में उप नेता विपक्ष गोपी नाथ मुंडे ने पिछले दिनों एक समारोह में रहस्योद्घाटन करते हुए बताया की उन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव में आठ करोड़ रूपये खर्च किये और साथ ही चालीस लाख खर्च करने की चुनाव योग द्वारा तय की गयी सीमा को ख़ारिज कर दिया। क्योंकि इस महंगाई के ज़माने में इतने पैसे में चुनाव जितना लगभग असम्भव है।समाचार पत्रों और दूरदर्शन पर इनदिनों बड़ी बहस इस बात पर हो रही है की क्या केवल गोपीनाथ मुंडे ने
खर्च सीमा का पालन न कर कानून तोड़ा है? या यह तो सभी कर रहे है बस स्वीकार गोपी ने किया है? तो गोपी नाथ को सच बोलने का इनाम दिया जाये और बाकी लोगो की जाँच की जाये की उन्होंने कितने पैसे खर्च कर चुनाव जीता है और इतने पैसे इनके पास कहाँ से आये यानि इस आय का श्रोत क्या है? या सजा मुंडे को मिले क्योंकि इस देश में झूंठ बोलना बड़ी सामान्य बात है और आमतोर पर सजा सच बोलने वाले को ही मिलती है ? चलिये देखते है सच बोलने की सजा मिलेगी या झूठ बोलने का इनाम।
मगर झूठ केवल चुनाव खर्च बताने में नेता बोलते है ऐसा नहीं है। पिछले सप्ताह उत्तराखंड में आयी विपदा में किस नेता ने कितना झूठ बोला इसका हिसाब तो कैग भी अपनी जाँच से नहीं पकड़ पायेगा। दरअसल बहुआयामी झूंठ बोलना जितना आसान होता उसको पकड़ना उतना ही मुश्किल। दुर्घटना में कितने लोग मारे गये और कितने बचाये गये , सहायता पहुचाने में देर क्यों हुई और सहायता के लिए भेजे गए हजारो करोड़ रुपयों में से कितने रूपये उन लोगो के पास पहुँच पाये जिनके लिए भेजे गए थे और कितने नेता और दलाल मिल कर खा गये,इन सब विषयों पर चर्चा चाहे जितनी हो हम सब को पता है की सच्चाई का पता लगना असम्भव है और यह भी की किस नेता ने कितना सच और कितना झूठ बोल कर अपने लिए पैसे और सहानभूति बटोर कर अगले चुनाव में जीते जाने का प्रबंध कर लिया है। आम आदमी तो केवल इनकी आधी सच और आधी झूठ बातों को सुन कर केवल इतना ही कह सकता है की चलो आधा सच बोल कर भी इन्होने अहसान ही किया है वर्ना हम कोई इनके पूरे झूठ पर भी इनका क्या कर लेते। .
हमारे जैसे करोड़ो आम आदमियो की ताकत तो केवल यह विश्वास ही है जो बताता है सत्य मेव जयते । बस इसी विश्वास की वजह से ही आम आदमी इतनी मुसीबत के बावजूद भी अगले चुनाव में वोट देने के लिए जिन्दा है। और जिन्दा है नेताओ का आधा झूठ और आधा सच सुनने के लिए।
अजय सिंह "एकल"
बीड से भाजपा के मेम्बर ऑफ़ पार्लियामेंट और लोकसभा में उप नेता विपक्ष गोपी नाथ मुंडे ने पिछले दिनों एक समारोह में रहस्योद्घाटन करते हुए बताया की उन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव में आठ करोड़ रूपये खर्च किये और साथ ही चालीस लाख खर्च करने की चुनाव योग द्वारा तय की गयी सीमा को ख़ारिज कर दिया। क्योंकि इस महंगाई के ज़माने में इतने पैसे में चुनाव जितना लगभग असम्भव है।समाचार पत्रों और दूरदर्शन पर इनदिनों बड़ी बहस इस बात पर हो रही है की क्या केवल गोपीनाथ मुंडे ने
खर्च सीमा का पालन न कर कानून तोड़ा है? या यह तो सभी कर रहे है बस स्वीकार गोपी ने किया है? तो गोपी नाथ को सच बोलने का इनाम दिया जाये और बाकी लोगो की जाँच की जाये की उन्होंने कितने पैसे खर्च कर चुनाव जीता है और इतने पैसे इनके पास कहाँ से आये यानि इस आय का श्रोत क्या है? या सजा मुंडे को मिले क्योंकि इस देश में झूंठ बोलना बड़ी सामान्य बात है और आमतोर पर सजा सच बोलने वाले को ही मिलती है ? चलिये देखते है सच बोलने की सजा मिलेगी या झूठ बोलने का इनाम।
मगर झूठ केवल चुनाव खर्च बताने में नेता बोलते है ऐसा नहीं है। पिछले सप्ताह उत्तराखंड में आयी विपदा में किस नेता ने कितना झूठ बोला इसका हिसाब तो कैग भी अपनी जाँच से नहीं पकड़ पायेगा। दरअसल बहुआयामी झूंठ बोलना जितना आसान होता उसको पकड़ना उतना ही मुश्किल। दुर्घटना में कितने लोग मारे गये और कितने बचाये गये , सहायता पहुचाने में देर क्यों हुई और सहायता के लिए भेजे गए हजारो करोड़ रुपयों में से कितने रूपये उन लोगो के पास पहुँच पाये जिनके लिए भेजे गए थे और कितने नेता और दलाल मिल कर खा गये,इन सब विषयों पर चर्चा चाहे जितनी हो हम सब को पता है की सच्चाई का पता लगना असम्भव है और यह भी की किस नेता ने कितना सच और कितना झूठ बोल कर अपने लिए पैसे और सहानभूति बटोर कर अगले चुनाव में जीते जाने का प्रबंध कर लिया है। आम आदमी तो केवल इनकी आधी सच और आधी झूठ बातों को सुन कर केवल इतना ही कह सकता है की चलो आधा सच बोल कर भी इन्होने अहसान ही किया है वर्ना हम कोई इनके पूरे झूठ पर भी इनका क्या कर लेते। .
हमारे जैसे करोड़ो आम आदमियो की ताकत तो केवल यह विश्वास ही है जो बताता है सत्य मेव जयते । बस इसी विश्वास की वजह से ही आम आदमी इतनी मुसीबत के बावजूद भी अगले चुनाव में वोट देने के लिए जिन्दा है। और जिन्दा है नेताओ का आधा झूठ और आधा सच सुनने के लिए।
अजय सिंह "एकल"
1 comment:
Expense limit on elections is too unrealistic and hence needs to be readjusted.
this limit blocks the use of good money and forces many honest politicians to utilize unaccounted/ black money. so there is a urgent need to raise the limit or do away with limit altogether with transparent accounting and spending audit to bring about good democracy.
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