दोस्तो,
भगवत गीता कुरुक्षेत्र में भगवानश्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया हुआ ऐसा ज्ञान है जो शास्वत है। इसलिये हर युग , काल और स्थान पर इस ज्ञान का उपयोग किया जा सकता है। यह मनुष्यों के सब तरह के भ्रम मिटने वाला है। साथ ही यह ज्ञान अपराध मुक्त समाज की स्थापना ,मानव अधिकारों की सुरक्षा करने का भी मार्ग दिखाता है। भगवत गीता अनासक्त कर्म योग की सनातन ,सार्वभौमिक तथा वैज्ञानिक राज विद्या है। इस ज्ञान का उपयोग महात्मा गांधी ,नेलसन मंडेला जैसे राजनीतिज्ञ ,स्वामी विवेक नन्द एवं रविन्द्र नाथ टैगोर,महामना मदन मालवीय , अरविन्द घोष जैसे दार्शनिक तथा आईन्स्टीन जैसे आधुनिक वैज्ञानिकों ने जीवन के विभिन्न रहस्यों को जानने समझने तथा अपने जीवन को श्रेष्ठ बना कर समाज को बेहतर बनाने में किया है।
भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी भी इसी क्रम के ऐसे श्रेष्ठ व्यक्ति है जिन्होंने अनासक्त कर्मयोग को समझ कर उस ज्ञान को व्यहारिकता में सफलता पूर्वक उतार लिया है। इस तरह के नेतृत्व से भारत देश और समाज का कल्याण तो सुनिश्चित ही है साथ ही विश्व पटल पर भी यह अभूत पूर्व परिणाम लाने वाला होगा यह भी तय है। इसके संकेत अभी हाल में ही संपन्न हुई मोदी जी की अमेरिका यात्रा से भी मिल रहे है। जहाँ उन्होंने यूनाइटेड नेशन की मीटिंग में आये पूरी दुनिया के राष्ट्राध्यक्षों एवं गूगल,फेस बुक तथा दुनिया की दूसरी बड़ी कम्पनियों के मुख्य अधिकारिओं एवं भारतीय समुदाय के लोगो से मुलाकात के बाद अपने भाषणों से दिए है।
1945 में दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद यूनिटेड नेशन का जन्म हुआ और फिर 1948 में ३० सूत्रीय कार्यकर्मों की घोषणा की गयी तब से ले कर आज तक पिछले 70 वर्षों के कार्यकाल का विवेचना करने से पता चलेगा की जिन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इस संस्था को स्थापित किया गया उनका प्रभावी किर्यान्वन अभी भी प्रतीक्षा में है। चाहे वह मनुष्य का सम्पूर्ण विकास हो ,विभिन्न देशो के बीच में उत्पन्न विवादों का सर्वमान्य हल हो,असाक्षरता और गरीबी ख़त्म करने का मिलेनियम डेवलपमेंट गोल हो। आतंक वाद जिससे अमेरिका सहित पूरी दुनिया के देश पीड़ित है उसकी तो स्पष्ट परिभाषा भी अभी तक नहीं हो पायी है। इसी बात को मोदी जी ने भी अपने भाषण में बड़ी गंभीरता से उठाया है। और तो और स्वयं अमेरिका के राष्ट्र्पति श्री ओबामा ने यू एन सिक्युरिटी कौंसिल के अपने भाषण में माना है की यूनाइटेड नेशन का रोल अपेक्षा के अनुरूप प्रभावी नहीं रहा है और साथ ही यह भी की यदि कोई संगठन 50 वर्षों में अपेक्षित परिणाम न दे तो उसे प्रभावी बनाने के सामूहिक विवेक का इस्तेमाल किया जाना चाहिये। सितम्बर २०१५ में समाप्त हुए इस अधिवेशन में अगले पंद्रह सालों में किये जाने वाले 17 कामों को चिन्हित किया है। ऐसा प्रतीत होता है की अब टीम यू एन ओ पुरानी गलतियों से सबक लेकर उन्हें ठीक करने को तैयार है इसे स्वागत योग्य एक कदम माना जाना चाहिये। तथा सभी साझेदारों को अपनी योग्यता, क्षमता एवं संसाधनों अनुसार इसमें योगदान करना चाहिये।
मोदी जी ने भी अपने भाषण में यह स्पष्ट करते हुए कहा है की विश्व में आज दो चुनोतियाँ आई है एक तरफ आतंक वाद और दूसरी तरफ ग्लोबल वार्मिंग। में मानता हूँ यदि दुनिया में मानव वादी शक्तियाँ एक हो तो दोनों समस्याओं को परास्त किया किया जा सकता है। भारत मानवता वादी ऐसी सभी शक्तियों को एकजुट करने का प्रयास कर रहा है इसके लिए हमने यु एन ओ पर भी दबाव डाला है जो अपनी 70वी वर्षगांठ मना रहा है किन्तु आतंकवाद को परिभाषित करने में असफल रहा है। इसके लिए मैंने दुनिया के देशो और यु एन ओ को कहा है की आतंक वाद के लक्षणों को स्पष्ट करे ताकि इनसे प्रभावी ढंग से निपटा जा सके। परिभाषा स्पष्ट न होने के कारण अच्छा और ख़राब टेरिज्म चल रहा है जबकि आतंकवाद आतंकवाद होता है यह अच्छा बुरा नहीं केवल बुरा ही होता है यह यु एन ओ की जिम्मेदारी है की इसे दुनिया के सामने स्पष्ट करे तभी दुनिया में शांति आएगी। हम तो उस धरती से आये है जो गांधी और बुद्ध की धरती है जहाँ से अहिंसा का सन्देश दुनिया को दिया गया है निर्दोषो को मौत के घाट उतरने वालो से २१वि शताब्दी को कलंकित होने से बचाना है।
यूनाइटेड नेशन
को
इस
काम
के
लिए
मार्ग
दर्शन
भगवत
गीता
के
अध्याय
16 से
मिल
सकता
है
जिसके
श्लोक
6 में
कहा
गया
है
"द्वौ भूतसर्गौ
लोकेअस्मिन्दैव आसुर एव च, देवो विस्तरश: प्रोक्त आसुरं पार्थ में श्रुणु" अर्थात इस संसार
में
दो
प्रकार
के
जीव
है
देवी
प्रकृति और
आसुरी
प्रकृति वाले।
देवी
स्वभाव
के
बारे
में
अबतक
विस्तार से
बताया
गया
है
,पार्थ
अब
आसुरी
बुद्धि
के
विषय
में
सुनो।
"प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरसुरा:, न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते " अर्थात असुर
बुद्धि
वाले
मनुष्य
को
क्या
करना
चाहिए
और
क्या
नहीं
इसका
उन्हें
आभास
नहीं
होता
,इसलिए
उनमे
न
तो
बाहर
भीतर
की
शुद्धि
है
,न
श्रेष्ठ आचरण
और
न
सत्य
भाषण
ही
है।
इसको
आगे
और
स्पष्ट
करते
हुए
आसुरी
लोगो
के
लक्षण
बताते
हुए
कहा
है
"अस्तयमपृष्ठीम ते जगदाहुरनीश्वरम्, अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहैतुकम् " आसुरी प्रकृति वाले
मनुष्य
कहा
करते
है
की
जगत
आश्रय
रहित
,सर्वथा
असत्य
और
बिना
ईश्वर
के
अपने
आप
केवल
स्त्रीपुरुष के
सयोंग
से
उत्पन्न है
अतएव
केवल
काम
ही
इसका
कारण
है।
इसको
और
स्पष्ट
करते
हुए
कहते
है
की
"एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोअल्पबुध्य:, प्रभवन्त्युग्रकर्माण: क्षयाय जगतोअहिता:" इस मिथ्या
ज्ञान
को
अवलम्बन करके
जिनका
स्वभाव
नष्ट
हो
गया
है
तथा
जिनकी
बुद्धि
मंद
है
वे
सबका
अपकार
अथवा
अहित
करने
वाले
क्रूर
कर्मी
मनुष्य
केवल
जगत
के
अहित
और
नाश
के
लिए
ही
प्रयत्न करते
है।
"आत्मसम्भविता:स्तब्धा धनमानमदान्विता:,यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम्"
वे
अपने
आप
को
ही
श्रेष्ठ मानने
वाले
घमंडी
पुरुष
धन
और
मान
के
मद
से
युक्त
होकर
केवल
नाम
मात्र
की
पूजा
और
यज्ञो
द्वारा
पाखंड
से
शास्त्रविधि रहित
यजन
करते
है।
"अहंकारं बलं दर्प कामं क्रोधं च संश्रिता: मामात्म परदेहेषु प्रदिषन्तोअभ्यसूयका:" वे अहंकार
,बल
घमंड
,काम
क्रोध
में
डूबे
वे
स्वयं
की
आत्मा
और
अन्य
जीवों
में
विराजमान मुझ
से
द्वेष
करते
है
और
मुझ
में
द्वेष
ढूंढते
है।
इसआधार
पर
आसुरी
शक्तियों को
चिन्हित कर
दुनिया
से
आतंक
वाद
के
खिलाफ
प्रभावी लड़ाई
लड़ी
जा
सकती
है।
इतना ही नहीं
राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी अपने यूनाइटेड नेशन कौंसिल में दिए बयान में
स्वीकार किया है की देश की ताकत उसकी विस्तृत सीमाओं में नहीं बल्कि
उसकेयोग्य नागरिकों के कारण होती है। जो रचनात्मक कार्यो में निपुण सम्मुख
चुनौतिओ को अवसर में बदलने की क्षमता साथ ही व्यक्तिगत अधिकार ,अच्छी शासन
प्रणाली तथा व्यक्तिगत सुरक्षा इसके आधार होते है। आंतरिक दबाव और बाहरी
दबाव दोनों ही इसके असफल होने के लक्षण है। साथ ही उन्होंने माना की आप
जिन नीतियों पर चल रहे हो 50 वर्षो तक यदि उसका अपेक्षित परिणाम न दिखाई
पड़े तो उसे स्वीकार करके उसमे बदलावों के बारे में सोचना चाहिये। आपसी
सहयोग से गरीबी हटाने तथा उन्नति में आने वाली अन्य बाधाएं सभी समस्याओं का
हल संभव है और ऐसे राज्य की स्थापना की जा सकती है जिसमे भ्र्ष्टाचार न हो
और नौजवान हुनरमंद हो जो आज के ज़माने में सफल होने के लिए लिए आवश्यक
हैं।
भगवत गीता में श्रीकृष्ण द्वितीय अध्याय के ३२ एवं ३३ श्लोक
में समझाते हुये अर्जुन से कहते है "तुम्हारे जैसे क्षत्रिय योद्धा को
दुविधा के समय घबराना नहीं चाहिये। योद्धा के लिए बुराई से मुकाबला करना
उचित है क्योंकि योद्धा का यही कर्म उसके लिए स्वर्ग का द्वार खोल सकता है।
ऐसे ही प्रेसिडेंट बराक ओबामा भी अपने देश के सम्मुख चुनौतियों के सामने
आत्मसमर्पण करने के बजाय उनसे निपटने की योजना बता रहे है जो की एक अच्छे
शासक एवं योजक के लिए सर्वथा उचित है। साथ ही इसी अध्याय के ६३वे श्लोक में
श्री कृष्ण ने अर्जुन को सलाह दी की कठिन समय में शान्त रहना चाहिये
क्योंकि "गुस्सा मतिभ्रम हो जाता है और भ्रमित बुद्धि के कारण सोचने समझने
की क्षमता खतम हो जाती है इन परिस्थितिओं में पराजय निश्चित है। " इसलिए जब
शासक के सामने इस तरह की विपत्ति हो तो मन को अपने उद्देश्य की गुड़वत्ता
बढ़ा कर अपने संगठन को ताकत देनी चाहिये। शासक को रचनात्मक तरीके से अपने
अनुयायियों को बड़े उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रेरित करना चाहिये।
आगे
तेरहवें अध्याय में श्रीकृष्ण कहते है की लोग हमारे परिवेश के लोग,
स्वभाव, हालात का मूल्यांकन अलग अलग तरीके से करते है और इसके परिणाम के
अनुसार अपने काम करने के तरीके और नीतिओं में बदलाव करते है। तृतीया अध्याय
के 8 वें श्लोक में श्री कृष्ण अर्जुन को कहते है की तू निर्धारित किये
हुए कर्म को कर। अर्थात कर्म तो बहुत से है उनमे से कोई एक चुना हुआ नियत
कर्म को कर। कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना ही श्रेष्ठ है। और इस कर्म
को करने की कुशलता लक्ष्य प्राप्ति को सुनिश्चित करेगी। यही सलाह श्री
ओबामा ने नव युवकों को दी है।
इस प्रकार हम देखते है की गीता का
शास्वत ज्ञान आतंक वाद को परिभाषित भी कर रहा है और उससे निवृत होने की राह
भी दिखा रहा है। शासन की नीतियों का मुल्यांकन कर उन्हें सुधारने की सलाह
,चुनौतियों से निपटने के लिए लक्ष्य निर्धारण ,नौजवानो को उचित कर्म करने
और उसमे कौशल हासिल करने की प्रेरणा भी गीता से मिल रही है। अतः इस ज्ञान
का अनुगमन करके विश्व में फैली हुई विषमताओं को दूर कर धर्म की स्थापना
करना सम्भव है। मिल बैठ कर परिस्थितों के बारे में खुले दिमाग से चर्चा
करना तथा भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दिए ज्ञान को उपयोग में लेकर व्यस्था में
डालने से विश्व शांति का महालक्ष्य प्राप्त हो सकेगा जिस उद्देश्य की
प्राप्ति के लिए यूनाइटेड नेशन का जन्म हुआ है।
अजय सिंह "जे एस के "
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