दोस्तो ,
बिहार के चुनाव खत्म हो गये और साथ ही खत्म हो गये कुछ के अरमान ,कुछ के फरमान और कुछ नेताओं के बारे में गलफहमियाँ। जो अपने को बहुत बड़ा रणनीतकार मानते थे वह अब जमीं पर है। बड़े बड़े बयान देने वालों के मुह बंद है कुछ नेता अपने पद को बचाने के लिए जोड़ तोड़ में लग गए है। बहुत से लोग ऐसे है जिनका कैरियर खत्म हो गया तो नई पीढ़ी के नेताओं के लिए स्थान बना है। बिहार का चुनाव भाजपा के लिए दी हार का विशेषण बन गया है।
बड़े नेता हार के डिसेक्शन में लगे है छोटे नेता उनको मदद कर रहे है और बता रहे है की सेंध कहाँ कहाँ पर लगी है ताकि उनका नाम वफादारों की लिस्ट में बना रहे। कई नेताओं को तो परिणाम वाली रात सपने में हार के कारण पता चल गए और सुबह उठ कर उन्होंने जनता और अखबारों को बता भी दिया ताकि कारणों का जिक्र करने वालों में उनका नाम पहला हो, उनका अनुभव चुनाव जीतने में भले काम न आया हो कम से कम कारण बताने में तो आ ही जाये। आखिर इतने दिनों से राजनीत कर रहे है तो ऐसे ही थोड़ी सीनियर समझे जाते है। लेकिन जमीनी कार्यकर्ताओं से अभी भी कोई बात करने को तैयार नहीं है ,अरे उन्हें इतनी ही अकल होती तो वह भी वरिष्ठ हो जाते और जमीन पर क्यों होते।
आइये आम आदमी की साधारण समझ के आधार पर कुछ विश्लेषण करें और देखें गलती कहा हुई और भावी रणनीत पर पर विचार करें ताकि आने वाले चुनावो में बात बन सके।
1 . मोदी जी के साथ 2102 में विधान सभा चुनाव और फिर 2014 में लोक सभा चुनावों में जिस टीम ने रणनीत बना कर मोदी को ब्रांड बनाने का काम किया ,चाय पर चर्चा जैसे कार्यक्रम बनवा कर आम में पैठ बनवाई और
हर हर मोदी घर घर मोदी जैसे नारों को गढ़ कर हर जुबान पर मोदी का नाम चढाने की रणनीत बनाने का काम किया ,मोदी जी की टीम ने उस को उचित सम्मान देने के बजाय उसको अपने विरोधियों के खेमे में जाकर काम करने पर मजबूर किया। ऐसे रणनीतिक प्रशांत किशोर को नितीश ने करीब छै महीने पहले अपनी टीम में शामिल किया और उन्हें पूरा सम्मान देकर उनकी प्रतिभा का उठाया।
2. कहते है की भाग्य एक सीमित समय तक ही साथ देता है। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव की 73 सीटों की जीत का सेहरा अमित शाह के सर बन्धवा कर उन्हें भाजपा का बड़ा रणनीत कार घोषित किया गया और फिर मोदी इफ़ेक्ट के चलते कुछ राज्यों के चुनावों में मिली जीत का श्रेय भी उन्हीं को दे दिया गया। हालांकि महाराष्ट्र जहाँ केवल सात महीने पहले लोक सभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर चूका था वहाँ शिव सेना के सहयोग से सरकार बना पायी। हिमाचल का चुनाव बुरी तरह हारने के बावजूद हार के सतही कारण बता अमित शाह सीधी आलोचना से बच गए.इस बीच हरियाणा में अच्छी जीत हो जाने के कारण पुनः ऐसा सिद्ध किया गया की मोदी और अमित की जोड़ी अजेय है। दिल्ली में बुरी तरह केजरीवाल के हाथों पराजित हुए तो कहा गया की यहाँ
मिडिया ने उनका फेवर कर दिया और दिल्ली में तो लोग टीवी देख कर और अख़बार पढ़ कर वोट देते है। कामो बेश यही हाल जम्मू और कश्मीर के चुनाव का भी रहा है। लेकिन बिहार के इन चुनावो ने सिद्ध कर दिया की पिछली जीते केवल अमित शाह की रणनीत का परिणाम नहीं थी वरन मोदी इफेक्ट को खतम होने में टाइम लगा इसलीये जब बराबरी के स्तर पर मामला आया तो हवा निकल गयी। लेकिन भाजपा का संसदीय बोर्ड मोदी को न पसंद आने वाली कोई बात तय करेगा इसमें संदेह है। और कहने लिए भी खतरा तुरंत हो जाएगा जबकि चापलूसी करके कम से काम अगले साढ़े तीन साल सत्ता का सुख बिना किसी खतरे के उठाया जा सकता है।
3. सबसे बड़ी बात जो अटल जी चुनाव हारने और और अभी विधान सभाओं के चुनाव हरने में कामन है वोह यह भारतीय जनता पार्टी की देश में अपनी एक पहचान है और इसका एक कैडर है। सब जानते है की दक्षिण पंथी सोंच कारण जनता का एक विशेष वर्ग इन्ही कारणों से पार्टी को कभी सपोर्ट करेगा यह सन्धेयास्पद। हालाँकि इसी सोच के कुछ ग्रुप विशेष कारणों से समय समय पर भाजपा को सपोर्ट करते है लेकिन यह बहुत लिमिटेड है अतः अपनी विचार धारा को छोड़ने का अच्छा परिणाम जल्दी कुछ तात्कालिक किये हुए कारणों से हो जायेगा यह मुश्किल है। यही गलत फहमी अटल जी के नेतृत्व में लड़े गए 2004 के चुनाव में हुई थी और फिर उसी को दोहराने की गलती मोदी के सलाहकारों ने की परिणाम सामने है।
4. सभी जानते है की कांग्रेस और इसके सहयोगी झूठ बोलने और मैनी पुलेट करने में में महारथ हासिल कर चुके है। इनके द्वारा ओब्लाइज किये हुए गुर्गे बड़ी -बड़ी पोस्ट पर बैठे है और समय समय पर स्वामी भक्ति का साबुत भी देते रहते है इसका नमूना अभी कुछ तथा कथित साहित्यकारों तथा कलाकारों ने हॉल में ही किया है और देश में वैचारिक युद्ध की नयी जमीं तैयार कर दी है इसने तीन काम किये। एक जिन्हे साहित्य पुरस्कारों को प्राप्त कर
प्रसिद्ध नहीं मिली वोह वापस करके प्राप्त करली। दूसरा स्वामी भक्ति दिखाने का सुन्दर मौका प्राप्त हो गया तीसरा तात्कालिक लाभ बिहार चुनाव में जितवा दिया। मोदी के रणनीत कार समझ रहे थे की वह मैनी पुलेसन कर लेंगे। भाजपा की प्रतिभा 2004 में भी फ़ैल हुई और फिर उसकी पुनरावृति थोड़ी थोड़ी पहले हुई और गलतियों से सबक न सीखने के कारण औंधे मुँह गिरपड़े।
उम्मीद की जानी चाहिये किसी भी होशियार और समझदार व्यक्ति की तरह मोदी जी अपनी ताकत जो उन्होंने विकास का वादा करके सिद्ध की थी उसी पर स्थिर रहेंगे। यही उनकी ताकत है और इसी मुद्दे पर देश की जनता खास तोर पर युवा वोटर को लुभाने में सफल हो सकती है। अपने को श्रेष्ठ समझने और टीम वर्क न करके केवल दो -तीन लोगो की पार्टी बनाने की कोशिश भविष्य में नहीं की जाएगी। तभी बेहतर कार्य प्रदर्शन करके भाजपा आने वाले उत्तर प्रदेश ,वेस्ट बंगाल इत्यादि के चुनाव में संतोष जनक प्रदर्शन कर पाएगी।
बिहार के चुनाव खत्म हो गये और साथ ही खत्म हो गये कुछ के अरमान ,कुछ के फरमान और कुछ नेताओं के बारे में गलफहमियाँ। जो अपने को बहुत बड़ा रणनीतकार मानते थे वह अब जमीं पर है। बड़े बड़े बयान देने वालों के मुह बंद है कुछ नेता अपने पद को बचाने के लिए जोड़ तोड़ में लग गए है। बहुत से लोग ऐसे है जिनका कैरियर खत्म हो गया तो नई पीढ़ी के नेताओं के लिए स्थान बना है। बिहार का चुनाव भाजपा के लिए दी हार का विशेषण बन गया है।
बड़े नेता हार के डिसेक्शन में लगे है छोटे नेता उनको मदद कर रहे है और बता रहे है की सेंध कहाँ कहाँ पर लगी है ताकि उनका नाम वफादारों की लिस्ट में बना रहे। कई नेताओं को तो परिणाम वाली रात सपने में हार के कारण पता चल गए और सुबह उठ कर उन्होंने जनता और अखबारों को बता भी दिया ताकि कारणों का जिक्र करने वालों में उनका नाम पहला हो, उनका अनुभव चुनाव जीतने में भले काम न आया हो कम से कम कारण बताने में तो आ ही जाये। आखिर इतने दिनों से राजनीत कर रहे है तो ऐसे ही थोड़ी सीनियर समझे जाते है। लेकिन जमीनी कार्यकर्ताओं से अभी भी कोई बात करने को तैयार नहीं है ,अरे उन्हें इतनी ही अकल होती तो वह भी वरिष्ठ हो जाते और जमीन पर क्यों होते।
आइये आम आदमी की साधारण समझ के आधार पर कुछ विश्लेषण करें और देखें गलती कहा हुई और भावी रणनीत पर पर विचार करें ताकि आने वाले चुनावो में बात बन सके।
1 . मोदी जी के साथ 2102 में विधान सभा चुनाव और फिर 2014 में लोक सभा चुनावों में जिस टीम ने रणनीत बना कर मोदी को ब्रांड बनाने का काम किया ,चाय पर चर्चा जैसे कार्यक्रम बनवा कर आम में पैठ बनवाई और
हर हर मोदी घर घर मोदी जैसे नारों को गढ़ कर हर जुबान पर मोदी का नाम चढाने की रणनीत बनाने का काम किया ,मोदी जी की टीम ने उस को उचित सम्मान देने के बजाय उसको अपने विरोधियों के खेमे में जाकर काम करने पर मजबूर किया। ऐसे रणनीतिक प्रशांत किशोर को नितीश ने करीब छै महीने पहले अपनी टीम में शामिल किया और उन्हें पूरा सम्मान देकर उनकी प्रतिभा का उठाया।
2. कहते है की भाग्य एक सीमित समय तक ही साथ देता है। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव की 73 सीटों की जीत का सेहरा अमित शाह के सर बन्धवा कर उन्हें भाजपा का बड़ा रणनीत कार घोषित किया गया और फिर मोदी इफ़ेक्ट के चलते कुछ राज्यों के चुनावों में मिली जीत का श्रेय भी उन्हीं को दे दिया गया। हालांकि महाराष्ट्र जहाँ केवल सात महीने पहले लोक सभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर चूका था वहाँ शिव सेना के सहयोग से सरकार बना पायी। हिमाचल का चुनाव बुरी तरह हारने के बावजूद हार के सतही कारण बता अमित शाह सीधी आलोचना से बच गए.इस बीच हरियाणा में अच्छी जीत हो जाने के कारण पुनः ऐसा सिद्ध किया गया की मोदी और अमित की जोड़ी अजेय है। दिल्ली में बुरी तरह केजरीवाल के हाथों पराजित हुए तो कहा गया की यहाँ
मिडिया ने उनका फेवर कर दिया और दिल्ली में तो लोग टीवी देख कर और अख़बार पढ़ कर वोट देते है। कामो बेश यही हाल जम्मू और कश्मीर के चुनाव का भी रहा है। लेकिन बिहार के इन चुनावो ने सिद्ध कर दिया की पिछली जीते केवल अमित शाह की रणनीत का परिणाम नहीं थी वरन मोदी इफेक्ट को खतम होने में टाइम लगा इसलीये जब बराबरी के स्तर पर मामला आया तो हवा निकल गयी। लेकिन भाजपा का संसदीय बोर्ड मोदी को न पसंद आने वाली कोई बात तय करेगा इसमें संदेह है। और कहने लिए भी खतरा तुरंत हो जाएगा जबकि चापलूसी करके कम से काम अगले साढ़े तीन साल सत्ता का सुख बिना किसी खतरे के उठाया जा सकता है।
3. सबसे बड़ी बात जो अटल जी चुनाव हारने और और अभी विधान सभाओं के चुनाव हरने में कामन है वोह यह भारतीय जनता पार्टी की देश में अपनी एक पहचान है और इसका एक कैडर है। सब जानते है की दक्षिण पंथी सोंच कारण जनता का एक विशेष वर्ग इन्ही कारणों से पार्टी को कभी सपोर्ट करेगा यह सन्धेयास्पद। हालाँकि इसी सोच के कुछ ग्रुप विशेष कारणों से समय समय पर भाजपा को सपोर्ट करते है लेकिन यह बहुत लिमिटेड है अतः अपनी विचार धारा को छोड़ने का अच्छा परिणाम जल्दी कुछ तात्कालिक किये हुए कारणों से हो जायेगा यह मुश्किल है। यही गलत फहमी अटल जी के नेतृत्व में लड़े गए 2004 के चुनाव में हुई थी और फिर उसी को दोहराने की गलती मोदी के सलाहकारों ने की परिणाम सामने है।
4. सभी जानते है की कांग्रेस और इसके सहयोगी झूठ बोलने और मैनी पुलेट करने में में महारथ हासिल कर चुके है। इनके द्वारा ओब्लाइज किये हुए गुर्गे बड़ी -बड़ी पोस्ट पर बैठे है और समय समय पर स्वामी भक्ति का साबुत भी देते रहते है इसका नमूना अभी कुछ तथा कथित साहित्यकारों तथा कलाकारों ने हॉल में ही किया है और देश में वैचारिक युद्ध की नयी जमीं तैयार कर दी है इसने तीन काम किये। एक जिन्हे साहित्य पुरस्कारों को प्राप्त कर
प्रसिद्ध नहीं मिली वोह वापस करके प्राप्त करली। दूसरा स्वामी भक्ति दिखाने का सुन्दर मौका प्राप्त हो गया तीसरा तात्कालिक लाभ बिहार चुनाव में जितवा दिया। मोदी के रणनीत कार समझ रहे थे की वह मैनी पुलेसन कर लेंगे। भाजपा की प्रतिभा 2004 में भी फ़ैल हुई और फिर उसकी पुनरावृति थोड़ी थोड़ी पहले हुई और गलतियों से सबक न सीखने के कारण औंधे मुँह गिरपड़े।
उम्मीद की जानी चाहिये किसी भी होशियार और समझदार व्यक्ति की तरह मोदी जी अपनी ताकत जो उन्होंने विकास का वादा करके सिद्ध की थी उसी पर स्थिर रहेंगे। यही उनकी ताकत है और इसी मुद्दे पर देश की जनता खास तोर पर युवा वोटर को लुभाने में सफल हो सकती है। अपने को श्रेष्ठ समझने और टीम वर्क न करके केवल दो -तीन लोगो की पार्टी बनाने की कोशिश भविष्य में नहीं की जाएगी। तभी बेहतर कार्य प्रदर्शन करके भाजपा आने वाले उत्तर प्रदेश ,वेस्ट बंगाल इत्यादि के चुनाव में संतोष जनक प्रदर्शन कर पाएगी।
अन्त में
क्या हार में क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीतमैँ
संघर्ष पथ पर जो भी मिले यह भी सही वह भी सही
वरदान माँगूँगा नहीं।
लघुता अब न मेरी छुओ
तुम ही महान बने रहो
अपने हृदय की वेदना में व्यर्थ त्यागूँगा नही
वरदान माँगूँगा नहीं।
चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्त्तव्य पथ से किन्तु भागूंगा नहीं
वरदान माँगूँगा नहीं।
अजय सिंह "जे एस के "
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