Sunday, September 25, 2016

जाने पहचाने अजनबी

दोस्तों ,

आपको पढ़  कर  आश्चर्य हो रहा होगा की अजनबी जाना पहचाना कैसे हो सकता है, मुझे भी हो रहा है। लॉजिकल माइन्ड कहता है की अगर पहचान है तो अजनबी न होगा और अजनबी है तो पहचाना हुआ नहीं हो सकता। लेकिन कुछ बाते लॉजिक के बाहर होती है और वैसी ही बात है यह।

कल गाड़ी चलाते हुए रेडियो पर एक बड़ी दिलचस्प बात पता चली। लन्दन में कुछ लोगो ने "आई  टाक तो स्ट्रेन्जर्स" के नाम से एक अभियान शुरू किया है।  इस अभियान के भागीदार घर से बाहर निकलते हुए अपने कपड़ो पर एक बैज लगते है जिस पर लिखा होता होता है "आई  टाक तो स्ट्रेन्जर्स" और इसे देख कर सामने वाला समझ जाता है की यह स्त्री  या पुरुष भी अकेला है और बात करने के लिए दोस्तों को तलाश कर रहा है। फिर वह दोनों आपस में पहचान करते है और एक दूसरे के दोस्त बन जाते है।

रेडियो सुनकर मेरे मन में एक प्रश्न उठा, की इंग्लैंड में रहने वाला यह समाज आखिर इस स्थिति में पहुँचा कैसे ? जिस देश ने आधी दुनिया में राज्य किया हो ,जिस देश का सूरज कभी न डूबता हो वहाँ ऐसी परिस्थितियाँ  कैसे उत्पन्न हुईं  और इसके लिए जिम्मेदार कौन है ? इन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण प्रश्न यह की कहीं हम भी तो उसी रास्ते पर नहीं चल रहे है। इसकी सम्भावना इसलिए भी दिखती है की हमारा देश अमरीका और इंगलैंड में जो कुछ भी होता है उसे दस -पंद्रह साल बाद बड़ी आसानी और स्वाभाविक तरीके से अपना लेता है।

इस सन्दर्भ में एक बात और याद आ रही है।  मैं जब भी रेलवेस्टेशन पर घोषणा सुनता हूँ किसी अजनबी से दोस्ती न करे ,अजनबी का दिया हुआ  खाना न खाएं इत्यादि।तो  यह सुनकर मन में स्वाभाविक प्रश्न यह उठता है की जब  भी आप किसी नए व्यक्ति से दोस्ती करते है तो वह पहले अजनबी ही होता है।  और यदि रेलवे की सलाह मान ली तो कभी नया दोस्त तो बनेगा ही नहीं केवल एक स्थित को को छोड़ कर। जब किसी अजनबी से आपकी मुलाकात किसी दूसरे दोस्त या पहचान वाले के माध्यम से हो रही हो। अब खतरा तो इसमें भी है, कम हो सकता है, क्योंकि आप जिसको पहले से जानते हो उसके द्वारा आपसे नए व्यक्ति का परिचय हुआ है लेकिन खतरा जीरो नहीं हो सकता। इसके कई कारण हो सकते है।

मानव स्वभाव बदलता रहता है।  जो आपका आज मित्र है सम्भव की परिस्थितयों वस  कुछ वर्षो के बाद वह आपका मित्र न रहे। इसका उल्टा यानि कोई ऐसा भी आपका मित्र बन सकता है जो पहले आपको अच्छा नहीं लगता था । जिंदगी में कई बार गलतिया और गलतफहमिया भी बरसो की दोस्ती यहाँ तक की रिश्तेदारियां ख़तम करवाने के लिए जिम्मेदार होती है। और फिर बदसलूकी और ठगने की  जितनी भी घटनायें टीवी और न्यूज़ पेपर में पढ़ने को मिलती है उसमे काफी पड़ोसियों और रिश्तेदारों के द्वारा की जाती है। अजनबीओ के द्वारा ठगे जाने या बदसलूकी किये जाने की संभावनाओ को देखते हुए सावधानी हमेशा ही अपेक्षित है, अतः सिद्धान्त रूप में इसे स्वीकार करना की सभी अजनबी खतरनाक हो सकते है ठीक नहीं है। वैसे भी ऐसे लोग समाज में १-२ प्रतिशत ही होते है तो सम्भावना के गणतीय सिद्धान्त द्वारा भी इतनी सावधानी रखना की ऐसी संभावनों से  बचना  ठीक व्यहार हो सकता है। अन्यथा भविष्य में भारत में भी इंग्लैंड  जैसे  अभियान की जरुरत पड़  सकती है।  कहते है की बुद्धिमान व्यक्ति और समाज वही है जो दूसरों के साथ हुई घटनाओ से सीख  लेले नहीं तो तैयार हो जाइए आप भी बैज लगाने के लिए।

और अंत में 
जिंदगी समझ नहीं आयी तो मेले में अकेला 
और समझ आ गयी तो अकेले में मेला 

अजय सिंह "जे ऐस के"




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