Friday, June 19, 2020

साँस है जीवन की आस

प्रिय मित्रो ,


मोदी जी के प्रधान मंत्री बनने के  बाद जिस एक चीज की अंतर्राष्ट्रीय स्तर  पर चर्चा हुई वह  है अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का उत्सव की तरह मनाया जाना। दुनिया के १२० से ज्यादा देशो में पिछले छै  सालो  योग दिवस मनाया जा रहा है । इस तरह योग के प्रचार के साथ ही भारत की  प्राचीन ज्ञान की धरोहर का लाभ पूरे विश्व को मिलने लगा है। इससे देश की छवि में इजाफा हुआ है और योग शिक्षकों की मांग  दुनिया में बढ़  गयी है। नवजवानो के लिए यह कैरियर  का  एक विकल्प बन गया है।  कोविड १९ से मुकाबला करने में  भी योग महती भूमिका निभा रहा है। 


योग के अनेक प्रकार है।  इसमें साँस जो जीवन शुरू होने के साथ जीवन के ख़तम होने तक निरंतर चलती है, को साधना योग का अत्यंत महत्वपूर्ण भाग माना जाता है। यह तब भी किया जा सकता है जब शारीरिक कारणों से योगाभ्यास करना संभव नही हो पा  रहा हो। अतः इस योग दिवस पर इस विषय की चर्चा करना सम - सामायिक  है। करोना के कारण इस वर्ष योग दिवस के सभी सार्वजनिक कार्यक्रमों को निरस्त कर दिया गया है। इसलिए घर में बैठ कर ही योग करना है। आईये देखे केवल साँस को नियंत्रित करने की क्षमता का विकास और इसके उपयोग की समझ कैसे  बिना किसी अतरिक्त मेहनत के शरीर को स्वस्थ बनाये रखने में मददगार होती है। 


हमारा अनुभव है जब हम क्रोधित होते है तो साँस तेजी से चलती है यानी क्रोध और साँस चलने के बीच एक सम्बन्ध है। इसलिए क्रोध को नियंत्रित करने में साँस को नियंत्रित करना बड़ा प्रभावशाली तरीका है। इसी प्रकार इंटरव्यू में जाने के पहले लम्बी -लम्बी साँस लेकर और पानी पीकर जाने की सलाह दी जाती है ताकि मन और बुद्धि पर आपका नियंत्रण ठीक रहे और इंटरव्यू के पहले की घबराहट से छुटकारा मिल सके। आपको जान कर आश्चर्य होगा की शरीर में केवल श्वशन क्रिया ही (autonomic )  स्वयात्त क्रिया है अर्थात इसको आप अपनी इच्छा से नियंत्रित कर सकते है। वास्तव में साँस को अंदर लेने और बाहर निकलने की गति और तरीके के सही संयोजन से यह संभव हो जाता है। 


तनाव के समय आपकी साँस की रफ़्तार  १८-२४ प्रति मिनट होती है। इसकी पहचान आपकी तेज चलती हुई अनियमित साँस की गति से हो जाती है। तनाव के समय साँस की  गति औसत रफ़्तार  से  डेढ़ से दो गुनी तक हो सकती है। इस समय मनो दशा ऐसी रहती है मानो आप अपने शरीर को किसी लड़ाई या किसी विपदा से बचने के लिए तैयार कर रहे है। जीवन की ख़राब घटनाऔ के याद आने पर या कसरत वगैरह करने की तैयारी करने के पहले साँस में गति परिवर्तन  दिखाई देता है। लेकिन बिना किसी स्पष्ट  कारण के अगर साँस की गति बढ़ रही है  और अनियंत्रित  हो रही है , तो यह ब्लड प्रेशर के ज्यादा   या कम होने की, गुर्दा सम्बन्धी अथवा पाचन तंत्र सम्बन्धी बीमारी का लक्षण भी हो सकता है। 


जब आप अपना ध्यान किसी विषय या वस्तु पर केंद्रित करने की कोशिश करते है तो स्वशन गति १६-२० प्रति मिनट होती  है। आम तौर  पर इसकी गति  औसत गति के आस - पास ही रहती है।किन्तु इस समय ज्यादा नियंत्रित होती है। इस समय शरीर के सारे अंग अपनी साधारण प्रकृति के अनुसार कार्य करते है। और मनोदशा संतुलित स्थित में रहती है। इसको अच्छे तनाव की स्थित माना जाता है जिसमे आप  शारीरिक अथवा मानसिक कार्य  करके दिखाने की मनः स्थिति में होते है। और अपने आप को चुनौती देकर पहले से बेहतर अवस्था को प्राप्त काने  का प्रयास करते है।
इस तरह आप अपनी स्वशन क्रिया को नियंत्रित करके अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सकते है और अपने दैनिक कार्यो को सुचार रूप से चला सकते है। इसमें किसी प्रकार का कोई शारीरिक श्रम नहीं है और शरीर के अंगो खासतौर पर मन पर नियंत्रण आसान हो जाता है।  तो आईये इस योग दिवस पर अपनी सांसो को नियंत्रित करने का अभ्यास करके अपने जीवन को नई दिशा और ऊर्जा प्रदान करे।

आपका मन जब शांत है और दिमाग  निश्चिन्तित है तो साँस की रफ़्तार ६-१२  प्रति  मिनट होती है। जो  की साँस की औसत रफ़्तार १२ से २५ साँस पर  मिनट की लगभग आधी है।  इस जानकारी का उपयोग दिन में काम करते हुए या भागा दौड़ी करते हुए जब पांच मिनट में शरीर को आराम देना हो तो साँस की गति को नियंत्रित करके शरीर को और मन को आराम देना सम्भव हो जाता है।  इस अवस्था को  (parasympathetic )सहानुकम्पी मान  कर चिन्हित किया जाता है। यह क्रिया शरीर को आराम देने एवं भोजन को पचाने के लिए सर्वथा उपुक्त है। तंत्रिका तंत्र अर्थात नर्वस सिस्टम को दुरुस्त रखने के अलावा ब्लड प्रेशर का नियंत्रण ,शरीर की रोगो से लड़ने की क्षमता बढ़ाने एवं आराम दायक नींद में भी यह सहायक है। क्रोध ,चिड़चिड़ा पन और थकान जैसी समस्या का तुरन्त निदान करने में यह अत्यंत प्रभावी है।  

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाये। 


अजय सिंह "एकल "


 और अंत में 

 मोहब्बत और मौत की पसंद तो देखिये

 एक को दिल चाहिए और दूसरे को धड़कन 














Monday, June 8, 2020

देश की उन्नति के लिए करे श्रम और श्रमिकों का सम्मान

प्रिय दोस्तों ,

भारत में हम लोगो के  घरों में श्रमिक झाड़ू पोछा, बर्तन, बागवानी और कपड़े प्रेस इत्यादि का काम  करते हैं।आम तोर पर पुरुष श्रमिक बाहर  के और भारी काम  तथा    घर के अंदर के काम जिसमे खाना बनाने से लेकर बर्तन ,घर की सफाई इत्यादि  श्रमिक महिलाएं करती है।  यह घर में  तय समय पर आती हैं प्रायः  उनके साथ शिशु या छोटी बच्चे  भी होते है  जो श्रमिक की कार्यअवधि  में घर में  जमीन पर इधर उधर  खेलते रहते हैं।

घर  में काम पर आने  के बाद हम उन्हें चाय या कुछ बचा हुआ खाना दे देते हैं। जो वे महिलाएं वहीं जमीन पर बैठकर ही खा लेती हैं। कभी सफाई ठीक से नहीं हुई या काम में कुछ कमी रह गई तो उन्हें बुरी तरह डांट भी देते हैं। अगर किसी कारणवश वे काम पर नहीं आ पाती तो कई बार उनके पैसे भी काट लिए जाते हैं। हम यह भी जानने की कोशिश नहीं करते कि वह क्यों नहीं आ पाई?कहीं वह या उसके परिवार का कोई सदस्य बीमार तो नहीं था या कोई अन्य समस्या तो नहीं है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि वह तबियत ठीक न होने के बावजूद  भी हमारे यहां काम करने चली आई हो? कारण,आर्थिक तंगी से जूझ रहे लोगो को  अपनी पगार में  कटौती करवाना बहुत भारी पड़ता है।  ऊपर से यह भी डर कि  ना आने के कारण हम उसे काम से ही ना निकाल दें। अपनी और अपने परिवार की  आर्थिक सुरक्षा कैसे की जाये इस बारे में कोई ज्ञान व्  अनुभव इन्हे नहीं होता  है। देश के कानून भी इनको किसी तरह का सपोर्ट नहीं करते  है। हालांकि मोदी सरकार  ने कुछ ऐसे कानून अभी हाल में बनाये है जिससे अब इन्हे बीमा इत्यादि का लाभ और पेन्सन बगैरह मिलने की राह निकली है लेकिन अभी भी यह  पर्याप्त नहीं है। 


एक तरह से हमने उनके अस्तित्व और आत्मसम्मान को इग्नोर करना सीख लिया। ग्रहणी को छोड़कर परिवार के बाकी सदस्य उस किशोरी या महिला  और उसके साथ आए बच्चे को आमतौर पर  नोटिस नहीं करते। सिवाय तब के जब वह घर में रखा कोई सामान छूने की  कोशिश करता है जिससे उसके टूटने या खराब होने का डर रहता है।  इन लोगो को  अभिवादन करना या उनके अभिवादन करने का जवाब देना भी  दूर की बात है। ऐसा लगता है कि अभिवादन   की शिष्टता  से हम कोसों दूर हैं।

उनके जीवन में क्या उथल  पुथल है यह  वही जाने।उनके परिवार के बारे में जानने में  किसी को कोई दिलचस्पी  नहीं है ।  उनके बच्चों की पढ़ाई या उनकी उन्नति के बारे में किसी प्रकार के सहयोग के लिए कोई प्रयास आमतौर पर हम लोग  नहीं करते हैं। इन लोगो  पर कभी कभी चोरी इत्यादि का आरोप  बिना किसी सबूत के भी लगा देते हैं। बिल्डिंग के चौकीदार बाहर कूड़ा उठाने वाला , नाली साफ करने वाले कर्मचारी, घर की पुताई करने वाले और शेष कर्मचारी  भी हमारी बेरुखी से नहीं बचते। यही बर्ताव हम फल सब्जी बेचने वालों से भी करते हैं। छोटे दुकानदारों से अभद्र भाषा में बात करना  दाम सुनकर सीधे लूटने का आरोप लगा देना रोज की बात है । फिर उनके बताये दाम  को 30 - 40% कम कर के बोलते हैं। रिक्शा चालक के साथ भरी दोपहरी में भी 5 -10  रुपये का मोल भाव करने की भी आदत हमारी है। 

सड़क पर चलते ठेले वाले रिक्शे वाले का पहिया अगर किसी की मोटरसाइकिल या कार से छू जाए तो गाली देना तो छोटी बात है कई लोग हाथ भी उठा देते हैं।अधिकतर दुकान व्यवसाय और छोटी फैक्ट्री के मालिक अपने यहां काम करने वालों से ऐसा ही बर्ताव करते हैं। कई लोग वेटर को शायद मनुष्य ही नहीं मानते। अक्सर उन के हिस्से में डाट  और हिकारत ही आती है।

विदेशो में आम तोर पर जब आप दुकान में जाते है तो वहाँ बैठा सेल्स मैन आपको अभिवादन करता है और आप भी शिष्टाचारवश उसका जवाब मुस्करा कर देते है। विदेशो में ही क्यों यहाँ पर भी बड़ी दुकान में यदि आप जायेंगे तो वहाँ बैठा हुआ  दुकानदार या सेल्स परसन आपका मुस्करा कर अभिवादन करेगा और ज्यादातर लोग उसे इग्नोर भी नहीं करते है।  लेकिन छोटी दुकान या ठेले वाले और रिक्शावाले के साथ व्यहार करते समय इसको जान बूझ कर इग्नोर करने में अपनी शान और बड़ाई समझते है। 

यहाँ  यह बात समझना बहुत जरुरी है  कि शॉपिंग पहले एक सामाजिक प्रक्रिया है फिर आर्थिक गतिविधि है।हम दैनिक व्यवहार में शिष्टाचार बरतते हैं, खरीदार और विक्रेता दोनों पहले सामाजिक व्यक्ति हैं बाद में आर्थिक एजेंट। इन दिनों शहरों से पलायन को लेकर मजदूरों की व्यथा पर कई लोगों का हृदय द्रवित है। वे सोशल मीडिया पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं और सरकारों को कोस रहे हैं।उस जनसमुदाय को जिसके बारे में हम जानते थे कि वह यही कहीं  है, लेकिन आशा करते थे कि वह हमारी आंखों के सामने ना आए। यही वह  विशाल मानव समूह है  जिसके कारण हमारा  जीवन  और घर गृहस्थी  चलती रहती है। उनकी वजह से ही हमारा घर बन जाता है घर के अंदर पानी आ जाता है घर में सफाई भी हो जाती है। 

एक तरह से हम लोगो की  सुख समृद्धि में इस मानव समूह का बड़ा योगदान है और इसको इग्नोर करना कठिन तो है ही साथ ही अशिष्ट भी । मुझे खुशी है कि हमने उस विशाल जनसमुदाय के अस्तित्व को करोना कल में  नोटिस किया है।उम्मीद है कि उनके लौटकर आने पर अभी इसी समय से हम उनके अस्तित्व और गरिमा को सम्मान देंगे। उन्हें भी अपने जैसा इंसान समझेंगे।ठीक वैसे ही जैसे हम चाहते हैं कि दूसरा इंसान हमसे एक इंसान का बर्ताव करें। देश की उन्नति के लिए आवश्यक है की हम श्रम और श्रमिकों का सम्मान करना शुरू करे और इसे अपनी आदत में शुमार करे।  तभी हम देश की उन्नति सुनिश्चित कर पायंगे। 

अजय सिंह "एकल"

और अंत में 

हम उठाये फिरते है किश्ती को अपने सर पर 
शायद अगले मोड़ पर कहीं दरिया मिल जाये।  



श्रम का महत्त्व

दोस्तों ,
बहुत कम लोगो को पता है की यूनाइटेड स्टेट ऑफ़ अमेरिका के १६वे राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन  के 
पिता जूते बनाते थे, जब वह राष्ट्रपति चुने गये तो अमेरिका के अभिजात्य वर्ग को बड़ी ठेस पहुँची।
सीनेट के समक्ष जब वह अपना पहला भाषण देने खड़े हुए तो एक सीनेटर ने ऊँची आवाज़ में कहा,
                   
मिस्टर लिंकन याद रखो कि  तुम्हारे पिता मेरे और मेरे परिवार के जूते बनाया करते थे! इसी के साथ सीनेट भद्दे अट्टहास से गूँज उठी! लेकिन लिंकन किसी और ही मिट्टी के बने हुए थे! उन्होंने कहा कि, मुझे मालूम है कि मेरे पिता जूते बनाते थे! सिर्फ आप के ही नहीं यहाँ बैठे कई माननीयों के जूते उन्होंने बनाये होंगे! वह पूरे मनोयोग से जूते बनाते थे, उनके बनाये जूतों में उनकी आत्मा बसती थी।

अपने काम के प्रति पूर्ण समर्पण के कारण उनके बनाये जूतों में कभी कोई शिकायत नहीं आयी! क्या आपको उनके काम से कोई शिकायत है? उनका पुत्र होने के नाते मैं स्वयं भी जूते बना लेता हूँ और
यदि आपको कोई शिकायत है तो मैं उनके बनाये जूतों की मरम्मत कर देता हूँ! मुझे अपने पिता और  उनके काम पर गर्व है। सीनेट में उनके ये तर्कवादी भाषण से सन्नाटा छा गया और इस भाषण को अमेरिकी सीनेट के  इतिहास में बहुत बेहतरीन भाषण माना गया है और उसी भाषण से एक थ्योरी निकली Dignity of Labour (श्रम का महत्व) और इसका ये असर हुआ की जितने भी कामगार थे उन्होंने अपने पेशे को अपना सरनेम बना दिया जैसे कि - कोब्लर, शूमेंकर, बुचर, टेलर, स्मिथ, कारपेंटर,पॉटर आदि। यह परम्परा तभी से जारी है।
  
अमेरिका  में आज भी श्रम को महत्व दिया जाता है इसीलिए वो दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति है।
 वहीं भारत में जो श्रम करता है उसका कोई सम्मान नहीं है वो छोटी जाति का है नीच है। यहाँ जो 
बिलकुल भी श्रम नहीं करता वो ऊंचा है। जो यहाँ सफाई करता है, उसे हेय (नीच) समझते हैं और जो 
गंदगी करता है उसे ऊँचा समझते हैं।ऐसी गलत मानसिकता के साथ हम दुनिया के नंबर एक देश
 बनने का सपना सिर्फ देख सकते है, लेकिन उसे पूरा नहीं कर सकते।  जब तक कि हम श्रम को 
सम्मान की दृष्टि से नहीं देखेंगे।जातिवाद और ऊँच नीच का भेदभाव किसी भी राष्ट्र निर्माण के लिए
 बहुत बड़ी बाधा है।

अजय सिंह "एकल "

                                                      और अंत में 

कृतं मे दक्षिणे हस्ते जयो मे सव्य आहितः।
गोजिद् भूयासमश्वजिद् धनञ्जयो हिरण्यगर्भ।।
         - अथर्ववेद ७.५२.२८
करो सब श्रम से सच्चा प्यार
करो सब श्रम की जय-जयकार।
कर्म में रहते अनवरत निरत
क्रिया में दक्ष दाहिना हाथ।
विजय का वरण करे कर वाम
सदा सोल्लास गर्व के साथ। 
मिले यश धन-सम्पत्ति अपार।।
मिले गौ, अश्व, भूमि, धन-खान
स्वर्ण से रहे भरा भण्डार।
मिले श्रम से अर्जित सम्पत्ति
करे सोना श्रम का श्रृंगार।
बहें वैभव की अक्षय धार।।
मेरे दाएँ हाथ में कर्म, बाएँ हाथ में विजय है। 
इन दोनों द्वारा हम गौ, अश्व, धन, भूमि एवं स्वर्ण

 आदि पाने में सफल हों।