साँस है जीवन की आस
प्रिय मित्रो ,
मोदी जी के प्रधान मंत्री बनने के बाद जिस एक चीज की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हुई वह है अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का उत्सव की तरह मनाया जाना। दुनिया के १२० से ज्यादा देशो में पिछले छै सालो योग दिवस मनाया जा रहा है । इस तरह योग के प्रचार के साथ ही भारत की प्राचीन ज्ञान की धरोहर का लाभ पूरे विश्व को मिलने लगा है। इससे देश की छवि में इजाफा हुआ है और योग शिक्षकों की मांग दुनिया में बढ़ गयी है। नवजवानो के लिए यह कैरियर का एक विकल्प बन गया है। कोविड १९ से मुकाबला करने में भी योग महती भूमिका निभा रहा है।
योग के अनेक प्रकार है। इसमें साँस जो जीवन शुरू होने के साथ जीवन के ख़तम होने तक निरंतर चलती है, को साधना योग का अत्यंत महत्वपूर्ण भाग माना जाता है। यह तब भी किया जा सकता है जब शारीरिक कारणों से योगाभ्यास करना संभव नही हो पा रहा हो। अतः इस योग दिवस पर इस विषय की चर्चा करना सम - सामायिक है। करोना के कारण इस वर्ष योग दिवस के सभी सार्वजनिक कार्यक्रमों को निरस्त कर दिया गया है। इसलिए घर में बैठ कर ही योग करना है। आईये देखे केवल साँस को नियंत्रित करने की क्षमता का विकास और इसके उपयोग की समझ कैसे बिना किसी अतरिक्त मेहनत के शरीर को स्वस्थ बनाये रखने में मददगार होती है।
हमारा अनुभव है जब हम क्रोधित होते है तो साँस तेजी से चलती है यानी क्रोध और साँस चलने के बीच एक सम्बन्ध है। इसलिए क्रोध को नियंत्रित करने में साँस को नियंत्रित करना बड़ा प्रभावशाली तरीका है। इसी प्रकार इंटरव्यू में जाने के पहले लम्बी -लम्बी साँस लेकर और पानी पीकर जाने की सलाह दी जाती है ताकि मन और बुद्धि पर आपका नियंत्रण ठीक रहे और इंटरव्यू के पहले की घबराहट से छुटकारा मिल सके। आपको जान कर आश्चर्य होगा की शरीर में केवल श्वशन क्रिया ही (autonomic ) स्वयात्त क्रिया है अर्थात इसको आप अपनी इच्छा से नियंत्रित कर सकते है। वास्तव में साँस को अंदर लेने और बाहर निकलने की गति और तरीके के सही संयोजन से यह संभव हो जाता है।
तनाव के समय आपकी साँस की रफ़्तार १८-२४ प्रति मिनट होती है। इसकी पहचान आपकी तेज चलती हुई अनियमित साँस की गति से हो जाती है। तनाव के समय साँस की गति औसत रफ़्तार से डेढ़ से दो गुनी तक हो सकती है। इस समय मनो दशा ऐसी रहती है मानो आप अपने शरीर को किसी लड़ाई या किसी विपदा से बचने के लिए तैयार कर रहे है। जीवन की ख़राब घटनाऔ के याद आने पर या कसरत वगैरह करने की तैयारी करने के पहले साँस में गति परिवर्तन दिखाई देता है। लेकिन बिना किसी स्पष्ट कारण के अगर साँस की गति बढ़ रही है और अनियंत्रित हो रही है , तो यह ब्लड प्रेशर के ज्यादा या कम होने की, गुर्दा सम्बन्धी अथवा पाचन तंत्र सम्बन्धी बीमारी का लक्षण भी हो सकता है।
जब आप अपना ध्यान किसी विषय या वस्तु पर केंद्रित करने की कोशिश करते है तो स्वशन गति १६-२० प्रति मिनट होती है। आम तौर पर इसकी गति औसत गति के आस - पास ही रहती है।किन्तु इस समय ज्यादा नियंत्रित होती है। इस समय शरीर के सारे अंग अपनी साधारण प्रकृति के अनुसार कार्य करते है। और मनोदशा संतुलित स्थित में रहती है। इसको अच्छे तनाव की स्थित माना जाता है जिसमे आप शारीरिक अथवा मानसिक कार्य करके दिखाने की मनः स्थिति में होते है। और अपने आप को चुनौती देकर पहले से बेहतर अवस्था को प्राप्त काने का प्रयास करते है।
इस तरह आप अपनी स्वशन क्रिया को नियंत्रित करके अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सकते है और अपने दैनिक कार्यो को सुचार रूप से चला सकते है। इसमें किसी प्रकार का कोई शारीरिक श्रम नहीं है और शरीर के अंगो खासतौर पर मन पर नियंत्रण आसान हो जाता है। तो आईये इस योग दिवस पर अपनी सांसो को नियंत्रित करने का अभ्यास करके अपने जीवन को नई दिशा और ऊर्जा प्रदान करे।
आपका मन जब शांत है और दिमाग निश्चिन्तित है तो साँस की रफ़्तार ६-१२ प्रति मिनट होती है। जो की साँस की औसत रफ़्तार १२ से २५ साँस पर मिनट की लगभग आधी है। इस जानकारी का उपयोग दिन में काम करते हुए या भागा दौड़ी करते हुए जब पांच मिनट में शरीर को आराम देना हो तो साँस की गति को नियंत्रित करके शरीर को और मन को आराम देना सम्भव हो जाता है। इस अवस्था को (parasympathetic )सहानुकम्पी मान कर चिन्हित किया जाता है। यह क्रिया शरीर को आराम देने एवं भोजन को पचाने के लिए सर्वथा उपुक्त है। तंत्रिका तंत्र अर्थात नर्वस सिस्टम को दुरुस्त रखने के अलावा ब्लड प्रेशर का नियंत्रण ,शरीर की रोगो से लड़ने की क्षमता बढ़ाने एवं आराम दायक नींद में भी यह सहायक है। क्रोध ,चिड़चिड़ा पन और थकान जैसी समस्या का तुरन्त निदान करने में यह अत्यंत प्रभावी है।
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाये।
अजय सिंह "एकल "
और अंत में
मोहब्बत और मौत की पसंद तो देखिये
एक को दिल चाहिए और दूसरे को धड़कन
1 comment:
Nice one.
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