दोस्तों ,
दुनिया के लिए दुनिया में एक ही गाँधी होंगे,जिनको लोग प्यार और सम्मान से महात्मा गाँधी पुकारते थे।लेकिन गाँधी के देश में इतने गाँधी हैं की पहचानना मुश्किल है की कौन असली है और कौन नकली।दर असल नकली गाँधी की पैकिंग इतनी अच्छी और आकर्षक है की लगता है असली को छोड़ नकली से ही काम चला ले। अब आप सोच रहे होंगे की गाँधी के जन्म दिन पर यह क्या राग अलापने लग गए ,पर घबराइए नहीं हम आपको कुछ मजेदार बाते बताने जा रहे है जो आपको आनंदित भी करेंगी और मनोरंजन भी।
आज सुबह मैंने एक मित्र को फोन कर गाँधी जयंती की जब बधाई दी तो उन्होंने रिटर्न गिफ्ट की तरह मुझे भी बधाई दे दी और कहा की मैं चाहता हूँ की गाँधी जी हमेशा आप की जेब मैं रहे ( I wish Gandhi should always remain in your pocket) । यह सुन कर मैं आश्चर्य में पड़ गया क्योकि अब तक मैं गाँधी को दिल मैं रखकर उनके आचरण का पालन करने की ही कामना करता था तो मैंने उनसे पूछ लिया की येसा क्यों कह रहे है तो वह बोले कि भईया गाँधी दिल -विल मैं तो बहुत रह लिए अब तो दुनिया उसी की सुनती है, उसी को पूजती है जिसकी जेब मैं गाँधी यानि वोह करेन्सी नोट है जिस पर देश के राष्ट्र पिता की फोटो छपी है।
भौतिक शास्त्र (Physics) का एक सिद्धान्त है की समान चीजे एक दूसरे को आकर्षित करती है इस नियम के हिसाब से गाँधी (करेंसी ) गाँधी नाम वालो के पास ही जा रही है। कल गुजरात के मुख्यमंत्री जी ने बताया की श्रीमती सोनिया गाँधी ने यू पी ये (दो ) के कार्य काल में अपनी विदेश यात्रा में 1800 करोड़ गांधियो को खर्च किया है।अब इनकी कोई फैक्टरियां तो चलती नहीं है और न पिता जी इटली के राजा थे तो इतने गाँधी तो नाम से ही आकर्षित हुए होंगे न। और आपको पता है की दूध देने (कमाई करने )वाली काली मोटी भैंस जब अपनी नांद मैं खाना खाती है तो चारो ओर इतना गिर जाता है की अगल बगल वालो यानि दिग्विजय और सिब्बल जैसे लोग उसी से काम चला लेते है।
देश के वर्तमान प्रधान मंत्री गाँधी जी के आदर्शो पर चलने के कारण ही कुर्ता - पैजामा पहनते है और न बोलते है न सुनते है और न देखते है। कहते है कि एक ख़ामोशी हजारो बातो से बेहतर है ,लोग चाहे मोटा माल कमाए या पतला, चाहे कैग कुछ कहे या सुप्रीम कोर्ट मैं तो गाँधी वादी हूँ मैं न देखता हूँ न सुनता हूँ न बोलता हूँ।और करेंसी नोटों छपे गाँधी को अगर इस देश ने पिता माना है तो उसपर हस्ताक्षर तो मेरे ही है इसलिए देख लेना एक दिन लोग मुझे भी पापा (सरदारों को लोग वैसे भी पापा कहते है ) मानेंगे।इस देश की जनता ऐसी है कि मौका पड़ने पर तो गधे को भी बाप बना लेती है तो फिर मैंने तो रुपये देने का वचन देकर हस्ताक्षर भी किया है।
पता नहीं महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने कब और क्यों कहा था की सौं साल बाद यह कल्पना भी मुश्किल होगी की दुनिया मैं महात्मा गाँधी जैसा कोई व्यक्ति पैदा हुआ था। लेकिन मुझे तो लगता है की अब से पचास साल बाद ही यह बात कल्पना के बाहर होगी की गाँधी के देश मैं पैदा हुए गांधियों ने देश का बेड़ा कैसे गर्क किया है। महात्मा गाँधी जहाँ अपनी सारी परिभाषा देश के अन्तिम आदमी को ध्यान में रखकर गढ़ते थे, उसी देश के सत्ता मैं बैठे महान नेताओं की कोशिश है की कोई भी लाभ उसको न पहुचे जिसके वोट ले कर यह यहाँ तक पहुचे हैं।अगर ऐसा न होता तो नवीन जिंदल और मनोज जयसवाल जैसे लोगो को झूठे कागजो पर कोयले की खाने न बटती। रिलाएंस और भारती मित्तल के घरानों को सस्ते स्पेक्ट्रम न बटते।वालमार्ट जैसे उद्योगों को जिन्हें अमरीका की जनता और सरकार ने अस्वीकार कर दिया, को भारत मैं लाने की वकालत गाँधी वादी काँग्रेसी नेता और सरकार न करती। और देश की गरीब जनता का निवाला देश के अरबपतियो को मुहायिया न कराती। इस देश की अर्थव्यस्था गैस सिलिंडर की सब्सडी का बोझ इस लिए नहीं उठा सकती की नकली गांधियो का बोझ इतना ज्यादा है कि उसी को उठाने मैं वह ख़राब हुई जा रही है।
मुझे देश के प्राचीन शहर बनारस के बारे मैं कही गयी बात "रांड ,सांड सीढ़ी सन्यासी ,इनसे बचे तो सेवे काशी " याद आ रही हैजिसका सीधा अर्थ यह है की भ्रष्टाचार और देश को बेचने की तरकीबे ढूढने से फुर्सत मिले तो देश हित की बात सोंचे। नेता लोग भजन गा रहे है "मेरे तो गाँधी ही गाँधी ,केवल गाँधी ,बूढ़े गाँधी ,जवान गाँधी, जिन्दा गाँधी ,मुर्दा गाँधी दूसरो न कोई, जो नोट पर छपा हुआ वही मेरो सब कोई "
गाँधी का जन्म दिन मुबारक,और शास्त्री जी का भी .
हर भारतीय की अंतिम इच्छा
जिसदिन T20 का फाइनल मैच हो उसदिन किसी की मौत न हो ,क्योंकी भारत में उस दिन कन्धा देने वाले नहीं मिलेंगे।
और
2अक्टूबर को घर में कोई पैदा न हो, नहीं तो फिर चाहे वह लाल बहादुर शास्त्री की तरह का महान व्यक्ति ही क्यों न हो जाये न जनता याद करेगी और न मीडिया।
अजय सिंह "एकल"
1 comment:
awesome blog
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