Wednesday, January 16, 2013

करे कोई भरे कोई

 दोस्तों ,
क्या अपने कभी ऐसा  देखा है की किसी के द्वारा की गयी गलतियों का खामियाजा कोई दूसरा आदमी या व्यवस्था भरे। शायद नहीं। आपने तो शायद यह भी नहीं देखा होगा की यदि आप किसी योजना के बनाने और उसे लागू  करने के लिए जिम्मेदार हो तो उस योजना के बुरी तरह फेल  हो जाने पर आपको किसी  भी प्रकार न तो दण्डित किया जा सकता है  न ही  और किसी प्रकार की जवाबदेही आपकी बनती है। और आप मजे से अपनी सेवा पूरी करते हुए यानि सेवा में तरक्की का लाभ उठाते हुए सभी प्रकार के सेवा लाभ लेते हुए शान से सेवानिवृत्ति के लाभ उठा सकते है।

लेकिन  ऐसा हो रहा है और आप की नाक के नीचे हो रहा है और आप खूटें में बंधी बकरी की तरह कसाई को देख कर में-में तो कर रहे है लेकिन इससे ज्यादा कुछ नही कर सकते। हालाकिं इसमें दोष उन लोगो का नहीं है जो ऐसा कर रहे है ।बल्कि दोष उन लोगो का है जो ऐसा होते हुए देख रहे है, और कभी -कभी चर्चा भी करते है लेकिन उससे बाहर आने के लिए कोई प्रयत्न इसलिए नहीं करते की उन्होंने मान लिया  है की यही भाग्य है , यही विधि का विधान है अत: प्रयास करने से भी कुछ सार्थक होने वाला नहीं है।

आईये,हम अब आते है असली मुद्दे पर। हमारी संसदीय व्यव्य्स्थाओ के अनुसार साल में एक बार संसद में बजट पेश करने का प्रावधान है। यह बजट सरकार में तरह तरह के विशेषज्ञ और अनुभवी लोगो की मदद से बनाया जाता है और जनता के करोडो रुपये बजट बनाने में सरकार  खर्च करती है। यह बजट साल भर में तमाम मदों पर खर्च का आय और व्यय का अनुमान होता है। इसी अनुमान के हिसाब से  माननीय वित् मंत्री जी जनता पर टैक्स लगाते है अपने  राजनीतक हितो को ध्यान रखते हुए अनुदान और अन्य रियायतों की घोषणा करते है। इस बजट के बनने और फिर संसद में रखे जाने के बाद बजट सत्र में माननीय सांसदों द्वारा इस पर बहस कर इसे पारित किया जाता है। एक मोटे अनुमान के अनुसार लगभग सौं करोड़ रुपये तो केवल बजट सत्र में संसद पर भत्ते तथा अन्य व्यय  किये जाते है। एक बार संसद से पास हो जाने के बाद इसे जनता पर लाद दिया जाता है। जिसे जनता ढोने के अलावा कुछ नहीं कर सकती।

बजट पास होने के बाद अभी आप नए टैक्स इत्यादी के हिसाब से अपने अपने परिवार के बजट को नए खर्चो के हिसाब से  समायोजित ही कर पाए थे की तीसरे महीने ही नए अनुमान मंत्री जी और उनकी मंडली ने लगा दिए और  जीवन उपयोगी तमाम चीजो के दाम बढ़ा दिये, अब  आप एक बार फिर से उन अनुमानों के हिसाब से अपनी जिन्दगी को व्यवस्थित करने लग जाते है और यह कभी न रुकने वाला क्रम जैसे इस देश की जनता की नियति बन गया  है। और आम आदमी जिसकी कमाई (तन्खा )साल में एक बार बढती है साल में कई बार छोटे -बड़े झटके खाते हुए फिर अगले बजट में लगने वाले नए करो के बारे में अनुमान लगाता रहता है। और इस बीच सरकार और उनके लिए काम करने वाली फ़ौज के लिए तरह -तरह से दिए जाने वाले भत्ते और सुविधाए बढती जाती है। तभी तो प्लानिंग कमीसन के उपप्रधान दिल्ली में 30 रूपये रोज में जीवन यापन करने की वकालत करते है और अपने बाथरूम में 35 लाख लगाकर नवीकरण करते है।

पिछले एक साल में अनेक बार पेट्रोल डीजल और एल पी   जी इत्यादी के रेट बढ़ाये गए। मंत्री जी ने घोषणा कर दी की अब सिलंडर पर अनुदान नहीं मिलेगा और साल में छे आपको सस्ते दाम पर पर और उसके बाद लगभग दूने  दाम पर मिलेंगे।  पेट्रोल के दाम बजट के बाद बढ़ाये गये क्योकि कहते है की अब हमें डालर मूल्य बढ़ने के कारण कंपनी को घाटा हो रहा है। लेकिन जिन कम्पनियो के घाटे की बात मंत्री जी कर रहे है वह कम्पनिया सरकार को डिविडेंड यानि मुनाफे का हिस्सा दे रही है।और कंपनियो के शेयर मूल्य भी बढ़ रहे है।
उदाहरन के लिए इंडियन आयल कारपोरेशन का पिछले 10 सालो का नियमित डिविडेंड देने का रिकार्ड है। कम से कम 4 बार इस कम्पनी ने बोनस शेयर भी एलाट किये है।

जिन कंपनियो की स्तिथी सुधरने के लिए मूल्य बढ़ा कर ज्यादा दाम देंने को जनता मजबूर है उन कंपनियो को अपने खर्चो पर कटोती करने के कोई संकेत नहीं और न ही उन्नत तकनीक से प्रक्रमण करने के कोई उपाए अपनाये जा रहे है। यानि जब भी आपकी योजना फेल  हो दाम बढ़ा दो। क्या सरकार बता सकती है अन्य व्यापारी जो आयातित मॉल से बना उत्पाद बनाते है उनके दाम ऐसे क्यों नहीं बढ़ते।

इस तरह देश की जनता सरकार के रहमो करम पर निर्भर हो गयी है।और सारे निर्णय राजनैतिक नफा नुकसान देख कर किये जा रहे है। क्या यही सोच कर हमारे संविधान निर्माताओ ने इसके नियम बनाये थे।क्या ऐसे ही देश की कल्पना की गयी थी। यह एक बड़ा प्रश्न है और गणतंत्र की 63वी जयंती मनाते समय इस स्थिति पर विचार करना उपयुक्त रहेगा।

अजय सिंह "एकल"


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