(साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले अशोक बाजपेयी,गुरुवचन भुल्लर और नयनतारा सहगल जैसे साहित्यकारों की मानसिकता पर प्रश्न चिन्ह लगाती मेरी नयी कविता)
रचनाकार-गौरव चौहान इटावा उ प्र 9557062060
सरस्वती के पुत्र नही हैं,साहित्यिक नालायक हैं,
सौजन्य से
गौरव चौहान
रचनाकार-गौरव चौहान इटावा उ प्र 9557062060
एकाडेमी पुरस्कार लौटाने वालो से प्रश्न पूछती कविता
हैं साहित्य मनीषी या फिर अपने हित के आदी हैं,
राजघरानो के चमचे हैं,वैचारिक उन्मादी हैं,
राजघरानो के चमचे हैं,वैचारिक उन्मादी हैं,
दिल्ली दानव सी लगती है,जन्नत लगे कराची है,
जिनकी कलम तवायफ़ बनकर दरबारों में नाची है,
जिनकी कलम तवायफ़ बनकर दरबारों में नाची है,
डेढ़ साल में जिनको लगने लगा देश दंगाई है,
पहली बार देश के अंदर नफरत दी दिखलायी है,
पहली बार देश के अंदर नफरत दी दिखलायी है,
पहली बार दिखी हैं लाशें पहली बार बवाल हुए.
पहली बार मरा है मोमिन पहली बार सवाल हुए.
पहली बार मरा है मोमिन पहली बार सवाल हुए.
नेहरू से नरसिम्हा तक भारत में शांति अनूठी थी,
पहली बार खुली हैं आँखे,अब तक शायद फूटी थीं,
पहली बार खुली हैं आँखे,अब तक शायद फूटी थीं,
एक नयनतारा है जिसके नैना आज उदास हुए,
जिसके मामा लाल जवाहर,जिसके रुतबे ख़ास हुए,
जिसके मामा लाल जवाहर,जिसके रुतबे ख़ास हुए,
पच्चासी में पुरस्कार मिलते ही अम्बर झूल गयी,
रकम दबा सरकारी,चौरासी के दंगे भूल गयी
रकम दबा सरकारी,चौरासी के दंगे भूल गयी
भुल्लर बड़े भुलक्कड़ निकले,व्यस्त रहे रंगरलियों में,
मरते पंडित नज़र न आये काश्मीर की गलियों में,
मरते पंडित नज़र न आये काश्मीर की गलियों में,
अब अशोक जी शोक करे हैं,बिसहाडा के पंगो पर,
आँखे इनकी नही खुली थी भागलपुर के दंगो पर,
आँखे इनकी नही खुली थी भागलपुर के दंगो पर,
आज दादरी की घटना पर सब के सब ही रोये हैं,
जली गोधरा ट्रेन मगर तब चादर ताने सोये हैं,
जली गोधरा ट्रेन मगर तब चादर ताने सोये हैं,
छाती सारे पीट रहे हैं अखलाकों की चोटों पर,
कायर बनकर मौन रहे जो दाऊद के विस्फोटों पर,
कायर बनकर मौन रहे जो दाऊद के विस्फोटों पर,
ना तो कवि,ना कथाकार,ना कोई शायर लगते हैं,
मुझको ये आनंद भवन के नौकर चाकर लगते हैं,
मुझको ये आनंद भवन के नौकर चाकर लगते हैं,
दिनकर,प्रेमचंद,भूषण की जो चरणों की धूल नही,
इनको कह दूं कलमकार,कर सकता ऐसी भूल नही,
चाटुकार,मौका परस्त हैं,कलम गहे खलनायक हैं,इनको कह दूं कलमकार,कर सकता ऐसी भूल नही,
सरस्वती के पुत्र नही हैं,साहित्यिक नालायक हैं,
सौजन्य से
गौरव चौहान
1 comment:
माता
………
माँ हर बेटे का मंगल चाहे,
संतानें ही स्वार्थी हो जाती।
कोई सैतान कहे कोई नरभक्षी,
सुनकर फटती माँ की छाती।
देवी कन्या बलात्कार झेलें,
विरोध करें तो होगी राजनीति।
दल अब दस्यु गिरोह हो गए,
जनता काश इसे समझ पाती।
सत्ता के लिए अफवाह फैला,
मानवता की बलि दी जाती।
पुत्र कुपुत्र भले ही हो जाते,
माता कुमाता नहीं हो जाती।
अब तो ऐसा एक लाल दे दो,
बचा सके भाईचारे की थाती । 2 ।
(मुझे साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला होता तो इस कविता के साथ लौटाता ।)
सभी देशप्रेमियों को नवरात्रि एवं दुर्गा पूजा की बधाई ।
https://www.facebook.com/notes/ghulam-kundanam/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BE/1189217401094116
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