निर्भया काण्ड के आरोपी की रिहाई के विरुद्ध भारत की न्याय
व्यवस्था को निर्भया के स्वर में धिक्कारती नयी कविता। स्वयं पढ़ें और अधिक
से अधिक शेयर करें। नीति नियन्ताओं के कानों तक पहुंचनी चाहिये निर्भया की
आवाज।
कितनी लाशें और लगेंगी ये पट्टी खुलवाने में
****************************** *****************
जिसके वहशीपन से मेरी सांस का धागा टूट गया
बहुत दुखी हूँ तुम्हें बताते मेरा कातिल छूट गया
जिसके वहशीपन से मेरी सांस का धागा टूट गया
बहुत दुखी हूँ तुम्हें बताते मेरा कातिल छूट गया
रौंद गया जो मेरे सपने जिसने मुझको मारा था
केवल मेरा नहीं था वो मानवता का हत्यारा था
केवल मेरा नहीं था वो मानवता का हत्यारा था
मेरी भी अभिलाषा थी मैं खूब उड़ूँ पक्षी बनकर
लेकिन मेरे जीवन में वो आया नरभक्षी बनकर
लेकिन मेरे जीवन में वो आया नरभक्षी बनकर
सीधा साधा मेरा जीवन, कुछ घंटों में बदल गया
सुनकर जिसका क्रूर कृत्य दिल बड़े बड़ों का दहल गया
सुनकर जिसका क्रूर कृत्य दिल बड़े बड़ों का दहल गया
जिसके कुकृत्य से शर्मशार भारत माता की कोख हुई
उसकी सजा बढ़ाने को जब हाईकोर्ट से रोक हुई
उसकी सजा बढ़ाने को जब हाईकोर्ट से रोक हुई
तब मुझे लगा कि भारत शायद अब भी जाग नहीं पाया
किसको कौन सजा देनी है यह भी जान नहीं पाया
किसको कौन सजा देनी है यह भी जान नहीं पाया
उसको बच्चा मान लिया जो जल्लादों से बद्तर है
सच कहती हूँ आज की पीड़ा उस पीड़ा से बढ़कर है
सच कहती हूँ आज की पीड़ा उस पीड़ा से बढ़कर है
मेरा कातिल निर्भय होकर जब सड़कों पर घूमेगा
लाचार व्यवस्था पर भारत की बच्चा बच्चा थूकेगा
लाचार व्यवस्था पर भारत की बच्चा बच्चा थूकेगा
न्याय की आशा में थी मैं तो मेरे संग में घात हुआ
मेरे संग भी वही हुआ जो अरुणा जी के साथ हुआ
मेरे संग भी वही हुआ जो अरुणा जी के साथ हुआ
सिंघासन पर मुट्ठी भींचे द्रोण नहीं हो सकती हूँ
मौन रहो तुम लोग मगर मैं मौन नहीं हो सकती हूँ
मौन रहो तुम लोग मगर मैं मौन नहीं हो सकती हूँ
मैं पूछ रही हूँ तुम सबसे क्या किया करोगे क्या आगे
जिससे कोई किसी बहन की लाज की देहरी न लांघे
इस अंधे कानून की आँखों से पट्टी हटवाने मेंजिससे कोई किसी बहन की लाज की देहरी न लांघे
कितनी लाशें और लगेंगी ये पट्टी खुलवाने में
No comments:
Post a Comment