Sunday, April 2, 2017

जूते की अभिलाषा



चाह नही मैं विश्व सुंदरी के
पग में पहना जाऊँ,

चाह नही दूल्हे के पग में रह
साली को ललचाऊँ।

चाह नहीं धनिकों के चरणो में, 
हे हरि डाला जाऊँ,

ए.सी. में कालीन पे घूमूं
और भाग्य पर इठलाऊ।

बस निकाल कर मुझे पैर से 
उस मुंह पर तुम देना फेंक,

जिस मुँह से भी निकल रहे हो 
देशद्रोह के शब्द अनेक !

 
                जय हिंद, जय भारत.

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