विषधरों की नगरिया
आदमी का नहीं कोई नामों निशा
विषधरों की नागरिया में बसते है हम
संस्कारो का यह अजब सिलसिला
आदतन एक दूजे को डसते हैं हम ll
घूमते है सड़क पर छलावे यहाँ
दोस्ती के भी झूठे वादे यहॉ
प्यार के रह गए दिखावे यहाँ
पीठ पीछे सदा व्यंग कसते है हम ll
जिंदगी पर कुकर्मो की पालिश जमी
और क्या रह गयी अब पतन में कमी
आवरण पर चंद आवरण रेशमी
आचरण में मगर कितने सस्ते है हम ll
विष के सागर में डूबा नगर देखिये
पी चुके हम कितना जहर देखिये
देखना हो तो हमारा हुनर देखिये
कैसे हर हाल में खुल के हॅसते है हम ll
अल्लहड़ बीकानेरी
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