दोस्तों ,
जिंदगी में कभी -कभी ऐसे क्षण आते की समझ में नहीं आता की रोऊँ या हसूँ। साल खत्म होते होते टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपे एक संचार को पढ़ने के बाद मेरा यही हाल हुआ,अब यह आप पर निर्भर करता है की आपको यह कैसा लगता है।
समाचार यह है की देश अनुमानित साढ़े तीन लाख भिखारिओ में करीब पाँचवा हिस्सा यानि 70000 लोग कम से कम सीनियर सेकेंडरी अर्थात 12 वी पास है। मुझे लगा की सोने चिड़या कहा जाने वाला यह देश वाकई महान है। जहाँ के भिखारी भी इतना पढ़े लिखे हो उस देश का यारों क्या कहना।
लेकिन यही डिस्कशन जब मैंने अपने मित्र से किया तो उन्होंने तो पूरे आधे घंटे का भाषण यह समझाने के लिए से डाला की 1835 में मैकाले नामक अगंरेज ने हिंदुस्तान में आकर यहाँ की शिक्षा व्यस्था इतनी ख़राब करवा दी किअब इस देश में ज्यादातर लोग इसी मानसिकता के है हालांकि उनका व्यसाय भीख माँगना ही हो यह आवश्यक नहीं है। उदाहरण के लिये देश के स्वतन्त्र होने के करीब ६८-६९ वर्षो के बाद भी हमारे नेता लोग पूरी दुनियाँ में जा जा कर और देश की गरीबी का रोना रो कर हर तरह की सहायता प्राप्त करने में महारथ रखते है। उनकी पूरी कोशिश रही की देश का स्वाभिमान जागने न पाये और किसी हद तक मैं उन्हें अपने काम में सफल भी मानता हूँ।
मागने की आदत केवल नेतावों की है यह कहना भी शायद उनके साथ ज्यादती होगी। देश के किसी भी मन्दिर में आप जाये तो आपको पता चलेगा की गरीब आदमी मंदिर के बाहर और अमीर मंदिर के अन्दर कुछ न कुछ मागने में ही लगा हुआ है। इतना ही नहीं इससे भी एक कदम आगे चले और अच्छी खासी आमदनी वाले से भी यदि आप किसी की सहायता करने के लिये निवेदन करें तो वोह आपको अपंना ही दुखड़ा सुनाने लग जायेगा और थोड़ा चालाक हुआ तो पिछले दिनों उसने कहाँ - कहाँ दान किया है इसका पूरा विवरण आपको देकर कर विश्वास दिला देगा की इस युग में कर्ण वही है।
चलिए हम भी कहा से कहा पहुँच गये। जिन्दगी का एक और वर्ष खत्म होने में बस २० घण्टे बचे है। जल्दी से 2015 में कुछ करना बचा है उसे फटाफट निपटाया जाये ताकि नए साल में हम अपना हुनर फिर दिखा सके। और जाते हुये साल को अलबिदा कहकर नए का स्वागत करे।
और अन्त में
क्या किया मैंने अधिक ,जो नहीं कर चुका संसार अबतक
वृद्ध जग को क्यों अखरती है क्षणिक मेरी जवानी
मैं छिपाना जानता तो जग मुझे साधु समझता
शत्रु मेरा बन गया है छल रहित व्यहार मेरा।
--हरिवंश राय बच्चन
अजय सिंह "जे एस के "