Sunday, December 23, 2012

चित भी मेरी पट भी मेरी खड़ा तो मेरे ..............का

प्रिय दोस्तों,
कुछ इसी तर्ज पर भाई मुलायम सिंह और मायावती बहनजी संसद में बता रहे थे।तभी तो दोनों ही पार्टियो ने ऍफ़ डी आइ का विरोध भाषण   में तो किया लेकिन वोट डालने की जब  बारी आयी तो सदन से बाहर चली गयी। और इस तरह से बिना लाठी तोड़े साँप मार दिया।लेकिन जनता को इससे एक बात तो यह समझ में आ ही गयी की भाई यदि ऍफ़ डी आइ लागू होने के बाद जनता को फायदा मिला तो कहेंगे की इसीलिए प्रस्ताव को संसद में गिरने नहीं दिया और अगर नुकसान हुआ तो कहेंगे की इसलिए तो प्रस्ताव के पक्ष में मत नहींदिया।दूसरी बात यह समझ में आ गयी "इस देश की राजनीत में नीतियों पर फैसला सड़क या संसद में नहीं बंद कमरों की सौदेबाजी से होता है। यहाँ समर्थन भी बिकता है और विरोध भी। बस खरीदार चाहिए।"और ऐसा हर पाँच साल में होते रहना चाहिए ताकि पैसे बटते रहे और नेताओ की  अर्थव्यस्था  अगले चुनाव के लिए ठीक हो जाये।

देश की दो राजनेत्री प्रियंका और वृंदा करात ने अपने अंग दान करने की घोषणा कर दी है। समाचार ने बड़ा हर्षित किया। एक तो इसलिए दोनों सुंदर नेत्रियो ने कुछ दान करने की बात कही है मरने के बाद ही सही, दूसरे इसलिए की जिन्हें लेने की आदत हो वह कुछ देने की बात करे तो इसका असर दूना होता है। अब अन्दर की बात यह है की जीते जी कुछ नहीं देंगे मरने के बाद चाहे जो हो।

राष्ट्रीय शर्म के काम राजनीतिज्ञ अक्सर करते ही रहते है, यह बात दीगर है की शर्म आती नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति  ने भारतीय ओलम्पिक संघ पर प्रतिबंध लगाया है जिसका कारण यह है की हमारे यहाँ पदाधिकारियों के चुनाव में धांधागर्दी और भाई भतीजावाद इस कदर हावी है की  बेसिक दिशा निर्देशों का भी पालन नही हो पा  रहा है।  वास्तव में राजनीत का विस्तार इतना ज्यादा हो गया है की अब देश में  कुछ भी राजनीत से परे नहीं है। राजनीत में खेल और खेलो में राजनीत तो हिन्दुस्तानियो की  पुरानी  फितरत  है।

अजय सिंह "एकल "

Saturday, December 8, 2012

एफ डी आइ इन रिटेल


प्रिय मित्रो ,
कल राज्य सभा मे एफ डी आइ इन रिटेल का बिल पास हो जाने के बाद इसका देश में लागू  होना तय है।जिस तरह से लोक सभा में मुलायम सिंह और मायावती की पार्टी ने वोट  का बहिष्कार कर के  अप्रत्यक्ष रूप से बिल का समर्थन किया और सरकार को वोटिंग में जीता  दिया और फिर राज्य सभा में मायावती ने बी जे पी  पर आरोप  लगा कर अपनी पार्टी के द्वारा बिल के समर्थन को उचित सिद्ध किया और मुलायम सिंह की पार्टी  ने बहिष्कार करके अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन   दिया है इस से देश की जनता का अपमान भी हुआ है और इस राजनीत ने  लोकतांत्रिक मूल्यों पर भी सवाल उठाये है। क्या वास्तव में इस बिल को जनतंत्र का समर्थन प्राप्त है अथवा यह जनतांत्रिक प्रक्रिया में छिद्र के कारण ऐसा हो सका है।

अत: इसको जाचने और निदान का इससे उचित  समय और क्या हो सकता है। आइये इस समस्या से निपटने पर विचार  करे।

1.एक बार चुनाव हो जाने के बाद किसी भी तरह के जनमत संग्रह की व्यस्था नहीं होने के कारण महत्वपूर्ण प्रस्तावों पर आम जनता की राय जानने का कोई उपाए नहीं है। अत: ऐसे प्रस्तावों पर निर्णय करने को   राजनैतिक पार्टिया अपनी सुविधा  के अनुसार  स्वतन्त्र रहती है और अपने पक्ष में उसी तरह के तर्क देकर जन भावना को प्रभावित करने का प्रयत्न करती है।

2. अधिकांश घटनाओ में  किसी प्रकार  के लालच, वित्तीय अनियमित करण  अथवा भ्रस्टाचार  के कारण  ऐसा होना पाया जाता  है। । जैसा की पिछली बार परमाणु बिजली प्रस्ताव पर सामने आया था ,इस बार भी ऐसा होने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

3 ख़राब .राजनैतिक चरित्र के कारण देश पर ऐसी योजनाए उन लोगो के द्वारा थोपी जाये जिनका व्यहार देश हित में सन्दिग्ध है कहाँ तक उचित है? क्योकिं जो जितना भ्रस्टाचारी है धन और बाहू बल के कारण उसके चुने सांसद अथवा दूसरे  संवैधानिक पद पर चुने  जाने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। इन परिस्थितियो में  आम आदमी को केवल पाँच साल में एक बार वोट दे कर चुनने का अधिकार देंना  काफी नहीं है।

4.देश के 271  माननीय  संसद किसी भी बात पर सहमत हो जाये तो उसे देश में लागू  किया जा सकता है फिर चाहे यह प्रधान मंत्री चुनने की ही बात क्यों न हो यानि 271@20 करोड़  रुपए में देश में मनचाहा कानून बनवा सकते है।यह धनराशी करीब 1080 मिलियन  डालर  बैठती है ।  केवल एप्पल कंपनी का पिछले साल का मुनाफा इससे 4 गुना ज्यादा है। ऍफ़ डी आइ बिल के आने के कुछ माह  पहले ही ऐसी खबर आई  थी की वालमार्ट जो की रिटेल की दुनिया की सबसे बड़ी संस्था है,ने भारत में अपनी कंपनी का व्यक्ति भारी  तन्खा पर नियुक्त किया हुआ है। जिसका काम देश के बड़े राजनेताओ और अधिकारियो के साथ कम्पनी हित के काम करवाना है।और इसके खिलाफ आर्थिक मामले में जाँच भी  चल रही है।

5.इन परिस्थितयों में आम आदमी एक बार वोट देकर माननीय सांसदों और पार्टियों के हाथ अपने को गिरवीं रखने को मजबूर है। क्योंकि बाद में केवल निर्णय करने की शक्ति केवल राजनेताओ और अधिकारिओ के पास होती है।और आम जनता का इससे  कोई लेना देना  या कंट्रोल नहीं है।

6.इस तरह की धटनाओ को भविष्य में रोकने के लिए आम जनता के द्वारा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग इंटरनेट द्वारा फेस बुक के मध्यम से अथवा अलग से इसी उद्देश्य के लिए बनाई गयी वेब साईट पर  करवाई जा सकती है। जैसे की अभी  भी तमाम तरह की प्रतियोगताओ में पुरूस्कार वितरण हेतु प्रत्याशी अथवा संगठन के  चुनाव हेतु किया जाता है।

7. साथ ही विकल्प के तौर पर  यदि  दो फ़ोन नम्बरों में से एक पर पक्ष में और दूसरे  पर विपक्ष में  मिस काल देने की  सुविधा प्रदान की जाये तो गाँव में रहने वाला व्यक्ति भी राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे पर अपनी राय दे सकता है। इस तरह के प्रयोग मनोरंजन उद्योग में "कौन बनेगा करोडपती" अथवा "सा रे गा माँ" इत्यादि प्रोग्रामो में प्रत्याशियों की लोकप्रियता जानने के लिए सफलता पूर्वक किये जा रहे है।

8.इस तरह की वोटिंग की  देखरेख चुनाव आयोग  जैसे संवेधानिक संस्थानों द्वारा अथवा सीधे लोक सभा और राज्य सभा कार्यालय द्वारा हो जिससे पार्टी अथवा सत्ता के  दुरपयोग की सम्भावना को कम किया जा सके।

9. इस तरह पांच वर्षो के लिए एक बार सांसद चुनने के बावजूद देश के लिए महत्व पूर्ण विषयों पर आम जनता की राय जानना संभव हो सकेगा और देश को सत्ता अथवा विपक्ष की देश हित के बजाये अपने हित की राजनीत करने से रोकना सम्भव हो सकेगा।

10.इस प्रकार  सत्ता के विकेंद्री करण में मदद मिलेगी और सही मायने में जनता की ताकत जनता के हाथ में रहेगी।

11. इस प्रकार की प्रक्रिया अपनाने से राजनेतिक भ्रष्टाचार को रोकने में भी मदद मिलेगी।

अजय सिंह "एकल "