Wednesday, October 26, 2011

काजल की कोठरी

 प्रिय दोस्तों,

आपने ढपोर  संख की  कहानी तो सुनी ही  होगी. अरे वही जो हमेशा दूना देने की बात करता है . लेकिन वोह आपसे वोह बात कभी नहीं करेगा जो व्याहारिक हो और संभव हो.नतीजा बड़ी-बड़ी बाते और काम ,बस यही मत पूछो(कहानी पढने के लिए यहाँ क्लिक करे) .चलो अगर आपने अबतक न देखा और सुना हो तो हम आपको बताते है . आज के अनेक राजनीतिज्ञ भी ढपोर संखी है. आपने जन लोकपाल बिल माँगा तो उन्होंने संवैधानिक शक्तिओ से युक्त शक्तिशाली जन लोकपाल बनाने का वादा कर के जनता को ऐसा सपना दिखा कर बात टाली की अब बस करते रहो इंतिजार .क्योंकि इसकी संवेधानिक प्रक्रिया इतनी लम्बी होगी की यह एक सत्र तो छोडिये ४ में भी होने वाला नहीं तब तक चुनाव आ जायेंगे फिर आसान होगा जनता के सामने जाना और यह कहना  की हमने वादा तो कर दिया है लेकिन यह मिलीजुली सरकार में संभव नहीं तो हमें पूर्ण बहुमत दो फिर बनायेगे हम जन लोकपाल .बस फिर क्या अभी अगले तीन साल मौज मनाओ और अगले इलेक्शन  को जीतने की भी तैयारी हो गयी .क्या आप अब भी राहुल गाँधी को प्रधान मंत्री बनने के लायक नहीं मानते ?आप अब भी अमूल बेबी समझते है ? अमूल बड़ा हो कर  के अब मूल (मुख्य) हो गया है .


दुनिया में ४२ साल राजाओ की तरह रहने और २०० अरब डालर का बैंक बैलेंस बनाने वाले  कर्नल गद्दाफी की दुनिया से बिदाई  जिस तरह से हुई उस से पैसे को भगवान मानने और पैसे से सबकुछ हो सकता है यह समझने वालो की समझ में कुछ परिवर्तन आए और इस दिवाली हमारे देश के ए राजा और रानी की तरह रहने वाली कनिमोझी और इनके जैसे लोग जो एन कें प्रकारेण धन कमाने की चेष्टा में है उनको इस दीपावली में भगवान सद्दबुधी प्रदान करे  मेरी येही प्रार्थना है . हालाँकि यह इतना आसान भी नहीं है क्योकिं विनाश के समय भगवान बुद्धि भी विपरीत कर देता है .यदि ऐसा नहीं होता तो जनाब  सलमान खुर्शीद  साहेब जो इस देश का कानून मंत्री भी है , देश के साथ विश्वाश घात करने वाले कॉर्पोरेट जगत के जेल में बंद दिग्गजों के साथ सहानभूति   यह दलील दे कर न दिखाते की यदि इन लोगो को जेल में रखा गया तो देश में लोग व्यापार करने में डरेंगे और विदेशो से भी धन का प्रवाह रुकेगा.

लेकिन श्रीमान दिग्विजय सिंह जी की हस्ती तो वास्तव में अद्वितीय है और उनसे किसी भी सद्दाम या गद्दाफी को भी रस्क हो सकता है क्योंकि उनके ऊपर अन्तराष्ट्रीय दबाव थे और अपने देश में राजा होते हुए भी दुनिया में चौधराहट करने वाले अमरीका से डरते थे  .लेकिन दिग्विजय सिंह को तो कोई डर नहीं . तभी तो  कलमान्दी जो ८ महीने से जेल में बंद है की तरफदारी करते हुए उनकी जमानत की वकालत की है और किरण बेदी जिनके ऊपर हवाई  टिकटों  के किराये में ज्यादा पैसे वसूलने का आरोप लगा है और उन्होंने उसे वापस करने का भी वादा  किया है के बारे में बयान    दिया है की वापस करने से भी गुनाह कम नहीं होता ऐसे तो राजा भी वापस करके के  गुनाह बन सकते है .वाह भाई वाह करवा दीजिये एक लाख छिहत्तर हजार करोड़ इस गरीब मुल्क के जहाँ अभी भी एक तिहाई जनता केवल एक बार का खाना जुटा पाती है.

आखिर अन्ना  साहेब और उनकी टीम भी राजनीत  और राजनीतिज्ञों के चक्कर में आ ही गए . और अब इन पर इतने दाग यह  राजनीतिज्ञ  खिलाडी लगा देंगे की थोड़े दिन बाद इनको भी लगने लगेगा की मेरे गुनाह भी उतने ही है जितने इनके तो फिर किस बात का झगड़ा . इसको कहते है राजनीत .अगर मेरी कमीज तेरी कमीज  से ज्यादा साफ़ नहीं तो क्या ,मैं तेरी कमीज अपनी कमीज से ज्यादा गन्दी तो कर ही सकता हूँ . तो अन्ना जी अब आप राजनीत के अखाड़े में आगये है और ये तो है कोठरी काजल की ,इसमें कितना भी सयाना  आदमी जाये मुश्किल ही है यदि  बिना दाग के निकल आए .इसलिए तैयार हो जाइये अपनी कमीज को साफ़ करने के बजाये दूसरो की गन्दा करना शुरू कीजये तभी मुक्ति मिलेगी.

 एक और दिवाली आ गयी लोग फिर खुशिया मनाएंगे ,बच्चे पटाके बजायेंगे लेकिन देश की ७० प्रतिशत जनता की आवाज कैसे मुल्क के रहनुमाओ तक पहुचाई जाये यह प्रश्न अभी भी मुहं फाड़े खड़ा है .


और अंत में मुल्क के रहनुमाओ से प्रार्थना :

  अधेरे में जो बैठे है , नज़र उन पर भी कुछ डालो

अरे  ओ  रोशनी  वालो  
बुरे  हम  है  नहीं  इतने , ज़रा  देखो  हमें  भालो                        
अरे  ओ  रोशनी  वालो  ... 

कफ़न  से  ओढ़  कर  बैठे  है , हम  सपनों  की  लाशो  को  
जो  किस्मत  ने  दिखाए , देखते  है  उन  तमाशो  को  
हमें  नफ़रत  से  मत  देखो , ज़रा  हम  पर  रहम  खालो   
अरे  ओ  रोशनी  वालो  ... 

हमारे  भी  थे  कुछ  साथी , हमारे  भी   थे  कुछ  सपने  
सभी  वो  राह  में  छूटे , वो  सब  रूठे  जो  थे  अपने  
जो  रोते  है  कई  दिन  से , ज़रा  उनको  भी  समझा  लो  
अरे  ओ  रोशनी  वालो  ... 

दीपावली की शुभकामनाओ सहित,
अजय सिंह "एकल" 


   

Saturday, October 8, 2011

और रावन फिर मर गया

मित्रो,
एक और दशहरा मन गया देश में , एक और रावण मारा गया . सैकड़ो वर्षो से यह खेल चल रहा है फिर भी रावन मर नहीं रहा है . पौराणिक कथाये बताती है की रावण तभी मरेगा जब तीर रावण की नाभि में लगेगा लेकिन यह

अकेले राम  के बस की बात नहीं है , इसके लिए एक अदद विभीषण चाहिए जो राम को बता सके की अमृत कहाँ छुपा है . लेकिन अब समस्या यह है की विभिषनो को रावण ने पटा लिया है . रावण ने जो गलती सतयुग में विभीषण को अपने दरबार से निकाल कर की थी उसका नतीजा उसने भोग कर यह सीख लिया की अब विभिषनो को जैसे भी हो सके अपने साथ ही रखना है अन्यथा यह यदि दूसरी तरफ चले गए तो फिर भेद खुल जायेगा .पर राम और उनकी सेना अभी भी सतयुग में अजमाए हुए तरीके को कलयुग में यह सोच कर अपना रही है की शायद रावण विभीषण को फिर धक्के मार कर अपने दरबार से निकलेगा और वोह आकर रावण का भेद बता देगा .यही फर्क  है राम और रावण में. एक गलती कर के सीख गया और दूसरा कलयुग में भी   सतयुग के चमत्कार का इंतजार कर रहा है. श्री राम को पता ही नहीं की  समय के साथ खेल के नियम भी बदल गए है.


वैसे भी सुना है रावण ब्राह्मण था , विद्वान  था और शिव का परम भक्त भी.इसलिए हिमाचल से लगा कर सुदूर तमिल तक बहुत सी राम लीलाए है जहाँ रावण मारा नहीं जाता उलटे उसकी पूजा होती है . इसके बहुत से कारण होंगे शायद कुछ रावण वंशी होने की वजह से, तो कुछ ब्राह्मण होने की वजह से या फिर शायद विद्वान होने वजह से रावण की पूजा करते होंगे .रावण वंशी और ब्राहमण होने के कारण रावण पूजा जाये तो इसमें  कोई आपत्ती नहीं लेकिन विद्वान होने की वजह से पूजा जाये तो  यह बात कुछ अजीब लगती है .

क्योकिं विद्वान तो इस देश का प्रधान मंत्री भी है और मोंटेक सिंह अहलुवालिया भी जो योजना आयोग   के उपाध्यक्ष है.  इनको  पूजने वाले कुछ विभीषण
तो हो  सकते है जिनको साथ रखना मनमोहन की मज़बूरी हो  और कुछ
विभीषण जो इनके राज जानते  है वोह इनकी तारीफ करते भी नजर आ सकते है पर देश की अधिसंख्य जनता  जिसको रोज कमा कर खाना पड़ता है और जो  जीने के लिए तिल तिल कर मर रही है इन विद्वानों की  पूजा नहीं कर सकती है . इसलिए  मनमोहन की टीम जिसमे ७०% लोग करोड़ पति है और  जिनके  लिए हवाई जहाज में इकोनोमी क्लास की यात्रा जानवर क्लास की यात्रा जैसा हो उनसे आप यदि इससे बेहतर व्यहार या नीति  निर्धारण की अपेक्षा कर रहे है तो   यह निश्चित ही गलती जनता की है जो विद्वान   रावण और स्वामिभक्त विभिषनो को अभी भी पहचान नहीं पा रही है.  

एक और फर्क  हो गया है सतयुग और कलयुग में . सतयुग में श्री हनुमान ने श्री राम की  सेवा की ,तो प्रसन्न  हो  प्रभु श्री राम ने आशीर्वाद दे दिया की मुझसे पहले तुम्हारी पूजा होगी  और तुम्हारे भजन  गाने वालो को भी मुझसे वैसा ही आशीर्वाद मिलेगा जैसा मेरी भक्ति करने वालो को .लेकिन कलयुग में जब अमर सिंह ने हनुमान बन मुलायम सिंह की तरफ से कांग्रेस पार्टी को अणु विद्युत् मसले पर दूसरी पार्टी के सांसदों को पैसे दे और मन मनौती कर तोड़ा और सरकार   बचवा दिया ,  तो राम ने   हनुमान को आशीर्वाद देने के बजाय उनको पहले तो पार्टी से निकाला और फिर जिनलोगो को  उनकी हनुमानगिरी से लाभ मिला उन्होंने अमर सिंह को    जेल भिजवाने का  इंतजाम  करवा दिया . यह है कलयुग का प्रभाव .इसका एक मतलब यह भी है की जो दावँ सतयुग में बड़े सफल रहे है वोह अब चलने वाले नहीं है . 

दरअसल सालो से हम यह भ्रम पाले हुए है रावण के मरने से रावणवत्व भी ख़तम हो जायेगा पर वास्तविकता यह है की  मर केवल रावण रहा और रावणवत्व जिसकी वजह से रावण ब्राहमण,विद्व्वान और भक्त होने के बावजूद मारे जाने योग्य माना गया  था वोह अभी भी जीवित है और विभीसनो ने भी यह समझ लिया है की राम का साथ देने से सोने की लंका तो भस्म हो जाएगी और जब सोना (धन- दौलत,चमक- धमक, मोहकता )   ही नहीं बचा तो फिर उस लंका का राजा अगर राम ने बना भी दिया तो क्या फायदा क्योंकि असली मजा लंका का राजा बन ने में नहीं बल्कि  सोने की लंका का राजा बन ने में है.इसलिए बेहतर है रावण का साथ दो और राजा भी उसे ही रहने दो अपन तो उसके मंत्री बन कर ही खुश  है. 
 और अंत में 

दरिया के किनारे गर,
 सिआसी लोग बस जाये ,
तो प्यासे लोग एक- एक,
 बूँद पानी को तरस जाये      
गनीमत है की मौसम पर,
इनकी  हुकूमत नहीं चलती
नहीं तो सारे बदल इनके,
 खेतो में बरस जाये.

अजय सिंह "एकल" 

Sunday, October 2, 2011

सूत न कपास जुलाहों का लट्ठम -लट्ठा

प्रिय दोस्तों ,

अगर आपने अबतक बिना सूत कपास के जुलाहों का लट्ठम -लट्ठा न देखा हो तो भाजपा के नेताओ में प्रधान मंत्री पद के लिए मचे घमासान को देख लीजिये ,हर कोई जल्दी  से जल्दी कौन बनेगा करोड़पति की तर्ज पर खेले जा रहे खेल कौन बनेगा प्रधानमंत्री की हॉट सीट पर पहुँचने  के लिए जुगत में लगा हुआ है. कोई इन नेताओ से पूछे की जरा यह बताने का भी कष्ट करे की भूख ,आतंकवाद ,महंगाई से पीड़ित जनता को निजात दिलवाने में आप का  क्या योगदान  है . जनता को भय ,भूख और भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने के लिए आपके पास क्या योजनाए है इस पर कोई चर्चा ,कोई व्याहारिक नीत जिससे जनता को कोई राहत मिल सके   इस पर कोई श्वेत पत्र ,पर यह सब सोचने की फुर्सत कहाँ है ? यह तो केवल यह सोच -सोच कर खुश है जनता कांग्रेस से परेशान   है इसलिए इनको बहुमत मिल जायेगा.अब आखिर कर दूरदर्शन में बहस करने जिन नेताओ को बार -बार बुलाया जा रहा है उन्हें लगता की जनता बार-बार इनको देख रही है तो चुनते वक्त भूल थोड़ी जाएगी  . आडवानी जी को लगता है की अबकी नहीं तो कभी नहीं हालाँकि आला कमान ने संकेत दे दिए है, बयान आडवानी जी का भी आगया है लेकिन फिर भी लग रहा है की शायद रथ यात्रा से कुछ  बात बन जाये ,मोदी जी उपवास से शुरुवात  करके यात्रा भी कर लेना चाहते है कहीं ऐसा न हो रथ यात्रा के महारथी बाजी न मार ले जाये ,तो गडकरी जी सोचते है जब खुदा की मेहरबानी एक बार हो चुकी है तो दुबारा भी चमत्कार हो सकता है .डा. जोशी से लगा कर अरुण जेटली और सुषमा स्वराज मन ही मन गुलगुले पका रहे है और एक दुसरे को झटका देने को बेताब नजर आ रहे है.

सबसे बढ़िया खेल तो किया चिदम्बरम और प्रणव दादा ने. २ जी की आंच जब चिदम्बरम तक पहुंची तो मंत्री मंडल के वरिष्ठ  सहयोगी प्रणव दादा ने पहले तो तोप का मुंह चिदम्बरम की तरफ  घुमा  दिया ,लेकिन रिंग मालकिन सोनिया  ने जब दोनों को हंटर दिखाया तो दादा ने फटाफट बयान दे के चिदम्बरम की जान और अपनी लाज बचाई  .इस सारे खेल में जनता और विपक्ष देखते ही नहीं बल्कि  हाथ मलते रह गए मानो सारा झगड़ा २ जी घोटाले का न हो कर प्रणव और चिदम्बरम का रह गया हो, इसलिए इनका समझोता होते ही घोटाला भी ख़तम हो गया और जाँच की जरुरत भी. जनता हतप्रभ है बंदरो की लड़ाई में बिल्ली का रोल देख कर . चिदम्बरम तो इतने खुश है की उन्होंने सार्वजनिक बयान दे दिया है की अब उन्हें यह भी याद नहीं है की उन्होंने पद से इस्तीफा देने की पेशकश भी की थी,  है न कमाल आदमी ख़ुशी में सब कुछ भूल जाता है  और जनता  दुःख भरे दिन जो बेकाबू महगांई ,  आए दिन होने वाली       आतंकवादी घटनाओ और  रोज मर्रा की परेशानियों से निजात पाने के लिए एक-एक कर काट रही है और यह  सोच रही है की आधी तो कट गयी और  अब तो आधी ही बची है वोह भी जल्दी ही कट जाएगी .

भारत देश आज अपने दो महान सपूतो को याद कर रहा है .महात्मा गाँधी जो पैदा तो भारत में हुए लेकिन अपने काम से  विश्व धरोहर बन गए . गाँधी द्वारा पढाया गया  अहिंसा  का पाठ पूरे  विश्व में एक मिसाल बन गया है और इसकी ताकत समझ कर दुनिया में अनेक देशो ने अहिंसात्मक  तरीको  को अपना कर  सत्ता परिवर्तन किया है.और  भारत  में तो गाँधी नाम की ब्रांड इक्विटी इतनी है की यह नाम पीढ़ी दर पीढ़ी सत्ता पाने  की  गारंटी हो  गया है. खैर गाँधी  ने इस देश को जो दिया है वोह इस देश के लोग कभी भुला नहीं सकेंगे .

भारत के द्वितीय   प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान जय किसान का नारा दे कर देश की  खादान्य जरूरतों में भी  आत्मनिर्भर बनाया और सैन्य जरूरतों में भी .नतीजतन भारत १९६५ के युद्ध के बाद कोई युद्ध नहीं हारा. एक बात जो शास्त्री जी के प्रधान मंत्री बनने से सिद्ध हुई वोह यह की साधारण परिवार में पैदा हुआ और साधारण कद काठी का भी कोई आदमी यदि दृढ निश्चय के साथ कुछ करना चाहता है तो उसकी सहायता भगवान भी करते है और देश की जनता भी.

 हम सब भारत वासी शास्त्री जी के मार्ग दर्शन के लिए आभारी है और चाहते है की फिर शास्त्री जी जैसा साधारण लेकिन देश हित की बात सोचने वाला ,देश के लिए परिवार त्यागने वाला और देश हितो पर मर मिटने के तैआर व्यक्ति फिर देश का नेतृत्व करे .

और अंत में 
समय समय की बात है,समय समय का योग 
लाखो में बिकने लगे ,दो कौड़ी  के लोग 
अजय सिंह "एकल"