Saturday, October 8, 2011

और रावन फिर मर गया

मित्रो,
एक और दशहरा मन गया देश में , एक और रावण मारा गया . सैकड़ो वर्षो से यह खेल चल रहा है फिर भी रावन मर नहीं रहा है . पौराणिक कथाये बताती है की रावण तभी मरेगा जब तीर रावण की नाभि में लगेगा लेकिन यह

अकेले राम  के बस की बात नहीं है , इसके लिए एक अदद विभीषण चाहिए जो राम को बता सके की अमृत कहाँ छुपा है . लेकिन अब समस्या यह है की विभिषनो को रावण ने पटा लिया है . रावण ने जो गलती सतयुग में विभीषण को अपने दरबार से निकाल कर की थी उसका नतीजा उसने भोग कर यह सीख लिया की अब विभिषनो को जैसे भी हो सके अपने साथ ही रखना है अन्यथा यह यदि दूसरी तरफ चले गए तो फिर भेद खुल जायेगा .पर राम और उनकी सेना अभी भी सतयुग में अजमाए हुए तरीके को कलयुग में यह सोच कर अपना रही है की शायद रावण विभीषण को फिर धक्के मार कर अपने दरबार से निकलेगा और वोह आकर रावण का भेद बता देगा .यही फर्क  है राम और रावण में. एक गलती कर के सीख गया और दूसरा कलयुग में भी   सतयुग के चमत्कार का इंतजार कर रहा है. श्री राम को पता ही नहीं की  समय के साथ खेल के नियम भी बदल गए है.


वैसे भी सुना है रावण ब्राह्मण था , विद्वान  था और शिव का परम भक्त भी.इसलिए हिमाचल से लगा कर सुदूर तमिल तक बहुत सी राम लीलाए है जहाँ रावण मारा नहीं जाता उलटे उसकी पूजा होती है . इसके बहुत से कारण होंगे शायद कुछ रावण वंशी होने की वजह से, तो कुछ ब्राह्मण होने की वजह से या फिर शायद विद्वान होने वजह से रावण की पूजा करते होंगे .रावण वंशी और ब्राहमण होने के कारण रावण पूजा जाये तो इसमें  कोई आपत्ती नहीं लेकिन विद्वान होने की वजह से पूजा जाये तो  यह बात कुछ अजीब लगती है .

क्योकिं विद्वान तो इस देश का प्रधान मंत्री भी है और मोंटेक सिंह अहलुवालिया भी जो योजना आयोग   के उपाध्यक्ष है.  इनको  पूजने वाले कुछ विभीषण
तो हो  सकते है जिनको साथ रखना मनमोहन की मज़बूरी हो  और कुछ
विभीषण जो इनके राज जानते  है वोह इनकी तारीफ करते भी नजर आ सकते है पर देश की अधिसंख्य जनता  जिसको रोज कमा कर खाना पड़ता है और जो  जीने के लिए तिल तिल कर मर रही है इन विद्वानों की  पूजा नहीं कर सकती है . इसलिए  मनमोहन की टीम जिसमे ७०% लोग करोड़ पति है और  जिनके  लिए हवाई जहाज में इकोनोमी क्लास की यात्रा जानवर क्लास की यात्रा जैसा हो उनसे आप यदि इससे बेहतर व्यहार या नीति  निर्धारण की अपेक्षा कर रहे है तो   यह निश्चित ही गलती जनता की है जो विद्वान   रावण और स्वामिभक्त विभिषनो को अभी भी पहचान नहीं पा रही है.  

एक और फर्क  हो गया है सतयुग और कलयुग में . सतयुग में श्री हनुमान ने श्री राम की  सेवा की ,तो प्रसन्न  हो  प्रभु श्री राम ने आशीर्वाद दे दिया की मुझसे पहले तुम्हारी पूजा होगी  और तुम्हारे भजन  गाने वालो को भी मुझसे वैसा ही आशीर्वाद मिलेगा जैसा मेरी भक्ति करने वालो को .लेकिन कलयुग में जब अमर सिंह ने हनुमान बन मुलायम सिंह की तरफ से कांग्रेस पार्टी को अणु विद्युत् मसले पर दूसरी पार्टी के सांसदों को पैसे दे और मन मनौती कर तोड़ा और सरकार   बचवा दिया ,  तो राम ने   हनुमान को आशीर्वाद देने के बजाय उनको पहले तो पार्टी से निकाला और फिर जिनलोगो को  उनकी हनुमानगिरी से लाभ मिला उन्होंने अमर सिंह को    जेल भिजवाने का  इंतजाम  करवा दिया . यह है कलयुग का प्रभाव .इसका एक मतलब यह भी है की जो दावँ सतयुग में बड़े सफल रहे है वोह अब चलने वाले नहीं है . 

दरअसल सालो से हम यह भ्रम पाले हुए है रावण के मरने से रावणवत्व भी ख़तम हो जायेगा पर वास्तविकता यह है की  मर केवल रावण रहा और रावणवत्व जिसकी वजह से रावण ब्राहमण,विद्व्वान और भक्त होने के बावजूद मारे जाने योग्य माना गया  था वोह अभी भी जीवित है और विभीसनो ने भी यह समझ लिया है की राम का साथ देने से सोने की लंका तो भस्म हो जाएगी और जब सोना (धन- दौलत,चमक- धमक, मोहकता )   ही नहीं बचा तो फिर उस लंका का राजा अगर राम ने बना भी दिया तो क्या फायदा क्योंकि असली मजा लंका का राजा बन ने में नहीं बल्कि  सोने की लंका का राजा बन ने में है.इसलिए बेहतर है रावण का साथ दो और राजा भी उसे ही रहने दो अपन तो उसके मंत्री बन कर ही खुश  है. 
 और अंत में 

दरिया के किनारे गर,
 सिआसी लोग बस जाये ,
तो प्यासे लोग एक- एक,
 बूँद पानी को तरस जाये      
गनीमत है की मौसम पर,
इनकी  हुकूमत नहीं चलती
नहीं तो सारे बदल इनके,
 खेतो में बरस जाये.

अजय सिंह "एकल" 

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