Thursday, March 26, 2020

भारतीयों की ख़ुशी का सूचकांक

मित्रो,


दुनिया में लोगो की  ख़ुशी का सूचकांक संयुक्त राष्ट्र ने "वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स २०२०" घोषित कर दिया है। दुःख की बात है १५६ देशो  की सूची  में भारत १४४वे नंबर पर है। इससे भी ज्यादा दुःख की बात यह है की भारत पिछले साल १४०वें नंबर पर था। और एक साल में देश ४ नंबर नीचे आ गया है। इतना ही  नहीं भारत  पड़ोसी  देशो जैसे पाकिस्तान (६६वां )चीन (९४वां )नेपाल (९२वां ) तथा बंगला देश का नंबर १०७वां  से भी काफी पीछे है। इस लिस्ट में पहले १० स्थानों में न्यूजीलैंड को छोड़ कर बाकी  ९ देश यूरोप के है।  सबसे ऊपर फ़िनलैंड, डेनमार्क नार्वे तथा १० वें  नंबर पर  लक्जमबर्ग इत्यादि है। खुशहाली का सूचकांक जिन ६ मानकों पर तय की गया  है,  वे है -प्रति व्यक्ति जी डी पी ,सामजिक सहयोग , उदारता , भ्र्स्टाचार ,सामाजिक स्वतंत्रता और स्वास्थ्य। 

सस्टैनेबल डेवलॅपमेंट सोलूशन नेटवर्क, न्यूयॉर्क ने यह रिपोर्ट जारी की है और इसके लिए डेटा  साल २०१८ और २०१९ में जुटाया गया है। रिपोर्ट में इस बात पर भी खासतौर से गौर किया गया है की दुनिया भर में चिंता , उदासी, क्रोध सहित तमाम नकारात्मक भावनाये बढ़ी है। हैप्पीनेस इंडेक्स में टॉप २० में एशिया का कोई भी देश नहीं है। 

यदि दुनिया के शहरों में रहने वाले लोगो की खुशी की बात करे तो दिल्ली  पूरी दुनिया के शहरों की सूची में  नीचे से सातवें पायदान पर है।जबकि दिल्ली में रहने वाले लोगो की आशावादिता में नंबर नीचे  से पाँचवा है।  सवाल है की अधिकांश भारतीय खुश क्यों नहीं है इसकी तीन प्रमुख वजहें लगती है। पहली सरकार  के स्तर पर उनकी बुनियादी जरूरते मसलन शिक्षा, चिकित्सा और न्याय पूरी नहीं हो रही है। देश में आर्थिक प्रगति के बावजूद  समाज के विभिन्न वर्गों में आर्थिक समानता तेजी से बढ़ी है।  लखपति करोड़पति हो  गए है और करोड़पति अरबपति बन रहे है। साधारण आदमी का भी जीवन बदला है लेकिन  उसकी समस्याएं जैसे महंगाई ,बेरोजगारी ,रुपए का अवमूल्यन ,किसानो को उनके उत्पादों का उचित मूल्य निर्धारण न होना भ्र्स्टाचार ,कानून व्यस्था और महिलाओं के साथ अपराध इत्यादि की वजह से  देशवासियों की  खुशिंयो से दूरी बढ़ती जा रही है। हालाँकि देश का माध्यम वर्ग कुल आबादी का बड़ा हिस्सा है और इसको भी सामाजिक विषमताओं की मुश्किल  उठानी  पड़ती है लेकिन यह विडंबना ही कही जायगी की  इसको सरकारी सहायता के योग्य  भी नहीं माना जाता है। 
  
मोदी के नेतृत्व में देश ने पिछले पांच सालो में अनेक  मोर्चो पर अपने सूचकांकों में असाधारण नम्बर पाए है जैसे इज ऑफ़ डूइंग बिज़नेस  जिसमे भारत २०१८ में  ७७वे स्थान से २०१९ में  ६३वे स्थान  पर पंहुचा है।  वर्ल्ड इकनोमिक फोरम ने अपनी एक रिपोर्ट में माना  है की भारत पिछले पांच सालो में इन्क्लूसिव डेवलपमेंट इंडेक्स में 2.२९ प्रतिशत बढ़ा है। इन्क्लूसिव डेवलपमेंट इंडेक्स को भारत ने जी डी पी  के विकल्प के रूप में बनाया है। यहाँ यह बताना आवश्यक है इसकी आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि भारत का सामाजिक चरित्र और ताना बाना अमेरिका और यूरोप के देशो से बहुत फर्क है इसलिए जी डी पी भारत  जैसे विकासशील देशो की आवश्यकताओं पर  खरा नहीं उतरता है। लेकिन ऐसा भी नहीं है की  भारत की आवश्यकताएँ  विकसित देशो के मानकों  से भिन्न होने के कारण  यू  एन ओ  तथा अन्य संस्थानों के मापदण्डो  पर इसीलिए खरा नहीं उतरता है बल्कि इसके कुछ और कारण  भी है।  

भारत के अधिकांश जनसँख्या के खुशहाल  न होने की एक बड़ी वजह समाज में समर्थ लोगो का चारित्रिक ह्रास  है। समाज के लोगो में  एक होड़ लगी है अपने लिए ज्यादा से ज्यादा साधन जुटाने की। आज प्रतिष्ठा उसे ही मिलती है, जो साधन संपन्न है। चारित्रिक विशेषतावों का भारतीय समाज में कुछ महत्व नहीं रह गया है।  पहले धर्म जैसे माध्यमों से लोगो को भौतिकता से दूर रह कर चरित्रवान रहने की शिक्षा मिलती थी, लेकिन आज धर्म के अगुआ खुद साधन जुटाने और इसका प्रदर्शन करते नजर आ रहे है। 



असल में प्रसन्नता और खुशहाली भीतर से आती है, लेकिन अफ़सोस कभी भारत दुनिया  का बौद्धिक  नेतृत्व  करता था लेकिन अब दिवालिया नजर आ रहा है। जब हमारे अंदर सब कुछ "लेने" के भाव से ज्यादा परिवार या समाज  को देने का भाव आएगा तभी हम प्रसन्न हो सकते है। तीसरी मुख्य वजह है हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली। इस शिक्षा प्रणाली ने डिग्री लेने और साधन संपन्न बनने को ही  अपना लक्ष्य बना रखा है।  किसी भी तरह पद और पैसा कमाना  इसका अंतिम लक्ष्य  है। देश के कार्पोरेट लीडर भी ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने की नीतियाँ बनाने और उसको सिद्ध करने की होड़ में लगे  है और इसके लिए किसी भी तरह की बेईमानी  करने में संकोच नहीं कर रहे है।  पिछले एक साल में कम से कम ५-६ बड़े बड़े कारपोरेट कंपनियों में संचालन में हर तरह की गड़बड़ियां सामने आयी है। और यह कोई आश्चर्य नहीं की तमाम और कंपनियों  में इस तरह की गडबड़ी आने वाले समय में देखने को मिले। ऐसे में नई पीढ़ी के सामने यह आदर्श रखने वाला कोई नहीं है की जीवन में ख़ुशी और संतोष बड़ी चीज है और समाज से सिर्फ लेना नहीं बल्कि लेने और देने में सामंजस्य  बनाना जरुरी है। 



इतना ही नहीं इसमें हमारी भी भूमिका है। हमारे पास खुद को और परिवार को देने के लिए समय होना चाहिए। वरना ऐसी ऐसे आर्थिक विकास या साधन सम्पन्नता का क्या फायदा जिसका हम उपभोग भी न कर सके और विकास  हमें खुशी न दे सके न हमें किसी को खुशी देने लायक ही छोड़े। सरकारों के साथ ही यह हमारी भी जिम्मेदारी   है की समाज के अंतिम पायदान में खड़े व्यक्ति का जीवन स्तर ऊंचा उठाने में सहयोग करे। प्रधान मंत्री ने देश में करोना वाइरस जैसी महामारी की आपदा से निपटने के लिए देश की जनता का  आह्वान किया है की हर संपन्न व्यक्ति कम  से कम नौ गरीब  लोगो को भोजन और अन्य सहयोग अपने स्तर पर करे।  हमें यह समझना होगा की हमें स्थाई ख़ुशी तभी मिल सकती है जब समाज के सभी तबके खुश होंगे। 



अजय सिंह "एकल"





Wednesday, March 25, 2020

हाथ कब और कैसे धोयें

हाथ धोना  कब कब आवश्यक है :     

१.खाना पकाने के पहले, बीच  में और पकाने  के बाद 
२. खाना खाने के पहले और खाना कहने के बाद 
३. किसी भी बीमार आदमी के पास जाने के पहले और वापस आने के तुरंत बाद 
४. किसी भी चोट या खून निकलने वाली जगह पर दवा लगाने के पहले और बाद 
५. शौच या मूत्र  विसर्जन के बाद 
६. बच्चे को लंगोटी /नैपकिन पहनाने के पहले या शौच की सफाई करने के पहले और बाद में 
७. नाक खुजाने ,छींक या कफ को थूकने के बाद 
८. किसी भी जानवर को छूने ,खिलाने या उसका मल मूत्र इत्यादि को साफ़ करने के बाद 
९. किसी भी जानवर के घाव को छूने के पहले और दवा इत्यादि लगाने के बाद 
१०. कूड़ा या कोई अन्य गन्दा सामान छूने के बाद 
११. हाथ को साबुन से धोने की सुविधा न होने पर किसी अच्छे सेनेटाइजर सभी हाथ धो सकते है। 



हाथ कैसे धोना चाहिए :
१. नल में पानी  (गर्म या ठंडा ) चला कर हाथो को ठीक से गीला  करे और नल बंद कर दे। साबुन हाथ में लेकर ठीक से मले 
२. हथेलियों को रगड़ कर साबुन का झाग बनाये और अंदर तथा ऊपर झाग को फैलाये। अंगुलियों के बीच में तथा  नाखुनो को भी झाग लगा कर साफ़ करे। 
३. कम से कम बीस सेकेण्ड तक ठीक से हथेलिओं को रगड़े।  समय देखने के लिए आप मन में "हैप्पी बर्थ डे " गीत को दो बार गाये। 
४. चलते पानी के नीचे रगड़ कर हाथो को ठीक से धोएं ताकि साबुन साफ हो जाये। 
५. सूखे कपडे ,तौलिया से पोंछ कर या ड्रायर में सूखा कर हाथ को सूखा ले। 







पानी  पीने का नियम :

१. दिन भर में काम से कम ४-५ लीटर पानी पिये। 
२.सुबह उठ कर हल्का गुनगुना पानी निम्बू के साथ पीने से पेट ठीक साफ़ होता है और अनेक प्रकार की बीमारियों के होने की सम्भावना खतम हो जाती है। 
३. भोजन के ३० मिनट पहले और भोजन के काम से कम एक घंटे बाद पानी पीना चाहिए 
४. पानी की उचित मात्रा नियमित पीने से स्वास्थ्य ,पाचन क्रिया और शरीर का रंगरूप ठीक और चमक दार हो जाता है। 
५. पानी पीते  रहने से शरीर में ताकत बनी रहती है और थकान भी काम लगती है। 
६. पानी की सही मात्रा नित्य पिने से गुर्दे ठीक काम करते है और वजन भी नहीं बढ़ता है। 
७. शरीर में वसा और तरलता में संतुलन रहता है। 
८. व्यायाम करने के काम से कम ५-१० मिनट के बाद ही पानी पीना चाहिए। 
९. फ्रिज में रखे पानी को पीने से यथा संभव दूर रहे। हल्का गुनगुना या कमरे के तापमान वाला पानी पीये। 
१० पानी कभी भी खड़े होकर नहीं पीना चाहिए।