Saturday, March 21, 2015

जहाँ हुये बलिदान मुखर्जी वह कश्मीर हमारा है

दोस्तों,
दो दिन पहले यह दिल छू लेने वाली कविता मुझे व्हाट्स अप पर प्राप्त हुयी है. कविता सम - सामायिक है.कश्मीर में भाजपा और पी डी पी की सरकार बनने के बाद से ही आये  दिन वहां पर कुछ न कुछ अनहोना ऐसा हो रहा है जो देश हिट में नहीं है। पिछले दो दिनों से तो साम्भा सेक्टर में आतंक वादीओं के हमले भी हो रहे है.कविता के रचेता का नाम कविता में नहीं लिखा था, इसलिए जिस किसी ने भी लिखी है उसे बधाई देते हुए नीचे दे रहा हूँ :

                                              

हे भारत के मुखिया मोदी ,बेशक समर्थक तुम्हारा हूँ
पर अपने मन के भीतर ,  उठते  प्रश्नो    से हारा   हूँ .

मेरे सारे  मित्र मुझे, मोदी का भक्त बताते है
 पर मुझको परवाह नहीं,बेशक हसीँ  उड़ाते है।

मुझे संघ ने यही सिखाया ,व्यक्ति नहीं पर देश बड़ा 
व्यक्ति  आते  जाते ,          मैँ  विचार  के साथ खड़ा



बचपन से ही मेरे मन में ,रहा गूंजता नारा है 
जहाँ हुए बलिदान मुखर्जी वह कश्मीर हमारा है.

इसीलिए तुमको कुछ कसमें , याद दिलाना वाजिब है 
मेरी आत्मा कहती है ,ये प्रश्न उठाना वाजिब है 

ये सौगंध तुम्हारी थी ,तुम देश नहीं झुकने दोंगे 
इस माटी को वचन दिया था ,देश नहीं मिटने दोगे

ये सौगंध उठा कर तुमने, वन्दे मातरम बोला था 
जिसको सुनकर दिल्ली का ,सत्ता सिंहासन डोला था 





 आस जगी थी  किरणों की ,लगता था अंधकार खो जायेगा
काश्मीर की पीड़ा का ,अब समाधान  हो जायेगा

जग उठे कश्मीरी पंडित ,और विस्थापित जाग उठे
जो हिंसा के मरे थे वो सब विस्थापित जाग उठे

नई  दिल्ली से जम्मू तक, सब  मोदी मोदी दिखता  था              
कितना था अनुकूल समय जो मोदी मोदी दीखता था

फिर ऐसी क्या बात हुई ,जो तुम विश्वास हिला बैठे
जो पाकिस्तान समर्थक है तुम उनसे हाथ मिला बैठे



गद्दी पर आते ही उसने ,रंग बदलना शुरू किया 
पहली प्रेस वार्ता से ही ,जहर उगलना शुरू किया 

जिस चुनाव को खेल जान पर सेना ने करवाया है 
उस चुनाव का सेहरा उसने पाक के सर बंधवाया है

संविधान की उदा धज्जियाँ ,अलगावी सुर बोल दिए 
जिनमे आतंकी बंद थे, वे सब दरवाजे खोल दिये 

अब बोलो क्या रहा शेष, बोलो क्या मन में ठाना है 
देर अगर हो गयी समझ लो , जीवन भर पछताना है

गर भारत की धरती पर ,आतंकी छोड़े जायेंगे
तो लखवी के मुद्दे पर ,दुनिया को क्या समझाएंगे

घटी को दर कार नहीं है ,नेहरू वाले खेल की
यहाँ मुखर्जी की धारा  हो,नीति चले पटेल की

अब भी वक्त बहुत बाकी है ,अपनी भूल सुधार  करो
 ये फुंसी नासूर बने न ,जल्दी से उपचार करो                       







जिस शिव की नगरी से जीते तुम ,उस शिव का कुछ ध्यान करो 
इस मंथन से विष निकला है,आगे बढ़ कर पान करो 

गर मैं हूँ भक्त तुम्हारा तो, अधिकार मुझे है लड़ने का 
नहीं इरादा है कोई,अपमान तुम्हारा करने का 

केवल याद दिलाना तुमको है वही पुराना नारा है
जहाँ हुए बलिदान मुखर्जी ,वो कश्मीर हमारा है 

                                      जय हिन्द,जय भारत




अजय सिंह "एकल "