Friday, February 21, 2020

हम लाये है तूफान से किश्ती निकाल के


एक तरफ माननीय   श्याम गुप्त और दूसरी ओर श्रीमती नेहा मित्तल,  एकल कुम्भ के   तीसरे दिन का पहला सत्र, बड़ा भाव पूर्ण दृश्य था। विषय था एकल की भविष्य की योजनाओ पर चर्चा करने  और अगले दस वर्षो का मानचित्र सभी कार्य कर्ताओं के सामने रखने का।  युवा नेतृत्व  ने एक पीपीटी के माध्यम से अपनी योजनाओं  के बारे में बताया। इसमें शामिल था चार लाख स्कूलों के माध्यम से गावों में संपर्क करने ,सौ से अधिक एकल आन व्हील द्वारा कम्प्यूटर लिट्रेसी का प्रसार,एक हजार एकल चिकित्सालय इत्यादि जैसे लक्ष्य  की अगले दस वर्षो में प्राप्ति  का ।  जैसे ही एकल युवा विभाग  की नेहा ने कहा की मुझे जो जिम्मेदारी मिली है तो ऐसा लग रहा है की मैं अर्जुन हूँ और अब मैं लक्ष्य प्राप्ति तक रुक नहीं सकती हूँ  ,तभी दूसरी ओर से श्याम जी ने घोषणा कर दी की मैं तो कृष्ण बनने को तैयार हूँ लेकिन नेहा यदि तुम अर्जुन बनने को तैयार तो यह समझ लो की यह आसान नहीं है।  इसके लिए तुम्हे घर परिवार से मोह  छोड़ना पड़ेगा और बिना  लक्ष्य प्राप्ति तक  रुकने की आज्ञा नहीं है यदि स्वीकार हो तो हाँ करना। नेहा मित्तल भी कहाँ रुकने वाली थी उन्होंने तुरंत अपनी सहमति दे दी। इसके अगले चरण में शुरू हुआ पुरानी अनुभवी पीढ़ी से जिम्मेदारियों का नयी ऊर्जावान और ज्ञानवान पीढ़ी को हस्तान्तरण का उत्सव। 

इस तरह वहां बैठे हुए सैकड़ो लोग प्रत्यक्ष दर्शी बने  श्रीमद भगवत गीता उस सन्देश  के क्रियान्वन के  जिसमे   श्री कृष्ण जी ने अर्जुन से  कहा  था 


इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्-गुह्यतरं मया ।
           विमृश्यैतदशेषेण  यथेच्छसि तथा कुरु ॥ १८.६३ ॥
(I have thus disclosed to you that knowledge which is the most confidential. Deliberate upon it and do as you wish.)
गीता का  वह  दृश्य तब  एकल कुम्भ में सजीव हो उठा   जब श्रीकृष्ण जी ने अर्जुन को कहा कि "अर्जुन गूढ़ से गूढ़ रहस्य का ज्ञान  मैंने  तुम्हे  दे दिया है अब तुम अपने विवेक का इस्तेमाल कर अपने का  कर्त्तव्य पालन करो " 

इस तरह  शुरू हुआ एकल अभियान का  एक नया अध्याय जब एकल के तीन पुरोधाओं में सबसे वरिष्ठ  एकल अभियान केंद्रीय कार्यकारणी के अध्यक्ष  श्री  बजरंग लाल बागड़ा जी ने अपनी जिम्मेदारी का ध्वज दिया श्री दुर्गेश मिश्रा जी को जिन्होंने दो वर्ष पूर्व ही सेवाब्रती बनने का निर्णय लिया।एक तरफ  विदेश जाने का आमंत्रण और दूसरी तरफ  एकल अभियान से जुड़ कर सेवाव्रती बनने का निश्चय।  दोस्त परिवार सब हतप्रभ और एक बार फिर इतिहास ने अपने को कुम्भ के  सैकड़ो प्रतिभागिओ के सामने  दोहरा दिया। ऐसा लगा मानो एक और अशोक सिंघल  जी सब प्रकार के भौतिक आकर्षण को छोड़ कर देश सेवा के लिए जीवन देने को तैयार है।   

दूसरा नंबर था एकल अभियान के राष्ट्रीय महा मंत्री श्री  माधवेन्द्र  सिंह  जी का, जिनकी  जिम्मेदारी  मिली श्रीमती सुमन दिगारी को। जिनका विवाह अभी पिछले महीने हुआ है। विवाह के कुल पंद्रह दिन बाद ससुराल से सीधे एकल कुम्भ में  आकर प्रतिभागी बनना और एक सप्ताह से भी अधिक समय लगा कर अपने दाईत्व का निर्वहन। धन्य है ऐसे सास और ससुर  तथा पति देव जिनको सौभाग्य से सुमन जैसी बहू और पत्नी मिली। जिसने अपने विवाह की मेहँदी लगे हाथो से एकल अभियान में प्रशिक्षण प्रमुख  जिम्मेदारी स्वीकार की। सुमन की माता और पिता श्री तो बहुत पहले से ही एकल अभियान के साथ जुड़े है। यह उनके पालन पोषण का ही शुभ परिणाम है की एकल अभियान के कार्यकर्ताओं के  प्रशिक्षण के लिये एक युवा नेतृत्व श्रीमती सुमन दिगारी के रूप में प्राप्त हो रहा है। 

अंत में श्री रमेश भाई सरावगी जिन्होंने अपनी युवा अवस्था यानि लगभग २५ वर्ष की आयु में ही जब एकल अभियान शुरू ही हो रहा था  कलकत्ता में माननीय श्याम गुप्त से  एक वचन लिया था की आप किसी नगर वासी से धन  नहीं  मांगेंगे अपितु आप समय मांगिये और धन आवश्यकता पूर्ति  की जिम्मेदारी मेरी है। काम कठिन था लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ की रमेश सरावगी अपने वादे में कमजोर पड़े हो। पिछले तीस वर्षो से लगातार देश भर के बड़े   उद्योगपतियो एवं  व्यापारिओं  को एकल के साथ जोड़ना  और उनकी प्रतिभा का अहर्निशं उपयोग एकल अभियान के लिए करना रमेश सरावगी के व्यक्तित्व की विशेषता रही है। रमेश सरावगी ने अपना  ध्वज यानि जिम्मेदारी दी संघ परिवार की एक युवा बेटी नेहा मित्तल को। नेहा के पिता स्व. रवी मानसिंगका  तीन दशकों पूर्व जब असम आंदोलन की आग में जल रहा था मुंबई आ कर बस गए थे। बड़ा व्यापार  समाज में प्रतिष्ठा और देश के लिए सबकुछ त्याग कर देने की तैयारी। नेहा ने अपनी पढाई अमेरिका से पूरी की और ब्याही गयी एक इंदौर के एक बड़े उद्योगपति परिवार में । लेकिन माता पिता की देश सेवा की  प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए अर्जुन बनने को तैयार और सहर्ष स्वीकार कर ली वह जिम्मेदारी जो बड़े बड़े लोग भी लेने को आसानी से तैयार नहीं होते। 

 सभी लोग  भावुक  हो रहे थे,प्रसन्नता व्यक्त कर रहे थे और सोच रहे थे की  श्याम जी ने जिस तरह   नेतृत्व की बागडोर युवा पीढ़ी को सौप कर उस पर पर अपना  विश्वास व्यक्त किया है यह वास्तव में राष्ट्रीय स्वंसेवक संघ के आदर्श  पूज्‍य श्री गुरूजी का राष्‍ट्र को समर्पित  मंत्र "राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय इदं न मम”  आज श्याम जी ने पुनः चरितार्थ  कर दिया  । ‘इदं न मम’ अर्थात यह मेरा नही है, कुछ भी मेरा नहीं है यही भारतीय दर्शन है। और  वही दर्शन शाश्वत होता है जो प्राकृतिक होता है और इदं न मम ही प्राकृतिक है। तब  अर्जुन  की  जिम्मेदारी लेनेवाली बहन नेहा ने भी मानों  कहा 
अर्जुन उवाच |
नष्टो मोह: स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत |
स्थितोऽस्मि गतसन्देह: करिष्ये वचनं तव || १८. ७३ ||
(अर्जुन बोले- हे अच्युत! आपकी कृपा से मेरा मोह नष्ट हो गया और मैंने स्मृति प्राप्त कर ली है, अब मैं संशयरहित होकर स्थिर हूँ, अतः आपकी आज्ञा का पालन करूँगा।)

 मेरे मन में भी कौतुहल और आश्चर्य दोनों ही थे और मैं सोच रहा था की माननीय   श्याम  जी गुप्त  ने  भौतिक शास्त्र में  पोस्ट ग्रेजुएशन की  पढाई  विशेष योग्यता के साथ पूरी करने के बाद  युवा अवस्था में ही  अपना पूरा जीवन  देश सेवा के लिए लगाने का निर्णय लिया और राष्ट्रीय स्वंसेवक संघ में प्रचारक निकल कर   विभिन्न जिम्मेदारियों  को  निभाते हुए एकल को पिछले ३० से भी अधिक वर्षो से अपना नेतृत्व देते हुए दुनिया का  सबसे बड़ा सेवा  संगठन  बना दिया है ।  जिनके सफल नेतृत्व के कारण केवल  देश में ही नहीं बल्कि दस से भी अधिक देशो में एकल अभियान की पहचान बनी है, आज बड़ी आसानी से एक बार फिर  आदर्शो की नयी उचाईयों को प्राप्त करने में सफल हुए  है। और युवा नेतृत्व को बागडोर दे कर उसका मार्गदर्शन करने का निर्णय ले कर  एक आदर्श परम्परा का निर्वाह किया है। इसके लिए  हम सब श्याम जी  के संपर्क में आकर देश की  सेवा के इस  प्रकल्प के साथ जुड़ कर गौरवान्वित अनुभव कर रहे है। प्रभू से प्रार्थना है की श्याम जी को शतायु करे और आने वाले समय में उनका मार्गदर्शन और आशीर्वाद एकल अभियान को लम्बे समय तक प्राप्त होता रहे।  और हम सब मिलकर डॉ  हेडगेवार के स्वप्न का परम वैभवशाली राष्ट्र निर्माण करने में अपना योगदान करते रहे।   

अजय सिंह "एकल "