Tuesday, October 2, 2018

मोदी और महात्मा

दोस्तों,
मोदी जी ने प्रधान मंत्री बनने के बाद लालकिले के अपने पहले ही भाषण में जिस  एक बात का जिक्र महात्मा गाँधी के साथ किया था वह थी  स्वच्छ्ता अभियान की शुरुवात। गांव  में  शौचालयों के न होने से महिलाओं को जिन समस्याओं से जूझना पड़ता है वह वास्तव किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्म है और  पीड़ा देने वाला है। उसी मंच पर मोदी जी ने घोष्णा किया की हम जब गाँधी जयंती का १५०वा वर्ष मनायें तो  भारत को स्वच्छता का उपहार दे कर गाँधी जी के आदर्शों का पालन करें। और पिछले चार सालों में इस पर बड़ी गंभीरता से काम भी हुआ है और लगभग ८० प्रतिशत लक्ष्य को पूरा किया गया है।  पूरे देश ने मोदी जी के आह्वान को हाथो हाथ लेते हुए इसमें अपनी क्षमता अनुसार स्वछता अभियान में  योगदान किया है ।इसे मोदी जी के कार्यकाल की एक विशेष उपलब्धि मानना      चाहिए।  

मोदी जी और गाँधी जी दोनों गुजरात राज्य से आते है। स्वाभाविक रूप से दोनों के बहुत से व्यक्तिगत  गुण परम्परानुसार मिलते है। मोदी और गाँधी दोनों के  नेतृत्व के गुण  भी काफी मिलते है। गाँधी जी छोटी छोटी बातों और आदतों का विशेष जिक्र अपने लेखन और व्यहार में करते थे।  उदाहरण  के लिए चरखा चला कर सूत कातना और खादी के वस्त्र को स्वदेशी  पहचान बना कर लोगो को प्रेरित करना। इस एक बात से पूरे देश में खादी की पहचान गाँधी के साथ भी जुडी और गांधीवादियों के साथ भी। ऐसा ही एक उदाहरण अपने हाथ स्वयं  अपना शौचालय साफ़ करने का है और भी पता नहीं कितने ऐसे काम है जिन्हे लोगो ने गाँधी के अनुयायी होने के तोर पर स्वीकार किया और उसे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में भी शामिल कर लिया। और इस तरह से गाँधी जी ने देश के  आम आदमी को एक तरह से आजादी के आंदोलन के साथ जोड़ दिया। यह गुण मोदी जी के अंदर भी भरपूर है।  स्वच्छ्ता अभियान, जनधन अभियान ,बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओं  जैसे पता नहीं कितने अभियानों के साथ मोदी जी ने अपने प्रयासों से आम नागरिकों  जोड़ा है और उनके मन में देश की उन्नति में मेरा भी सहयोग है यह भाव भरने में सफल हुए है। अर्थात देश की आम जनता के सामने छोटे छोटे लक्ष्य रख कर देश प्रेम का भाव जगाना और फिर निरंतर जगाये रखना मोदी जी और गाँधी जी दोनों ने बखूबी किया है । इस तरह के जीवन्त नेतृत्व के लिए देश निश्चित रूप से दोनों का आभारी रहेगा।


एक और बात जिसमे दोनों के बीच  समानता दिखती है वह है जो मुझे समझ आये वही ठीक है फिर उसे मनवाने  के लिए तथा  ठीक सिद्ध करने के लिए साम दाम दंड भेद किसी भी हथियार को इस्तेमाल करना पड़े तो उसे निःसंकोच इस्तेमाल करना । जैसे सुभाष चंद्र बोस के योगदान को नकारना और उन्हें हाशिये पर पंहुचा देना। हालांकि सुभाष चंद्र बोस ने १९३८ और १९३९ दो  बार कांग्रेस अध्यक्ष  का चुनाव जीता किन्तु गाँधी जी की   नीतियों से असहमति के कारण उन्हें कांग्रेस को छोड़ना पड़ा। अन्य ऐसे कई और  उदहारण भी  है जहाँ गाँधी जी  ने अपनी बात मनवाने के लिए कुछ ऐसे  काम भी किये जिन्हे बहुत से लोग देश हित में ठीक नहीं   मानते है और शायद वह सही भी होंगे। किन्तु उन्होने इसे व्यहार में  किया और किसी भी आलोचना से डरे हुए किया। इसी तरह का व्यहार मोदी जी और उनके सहयोगी कर  है। यह ठीक है या गलत यह तो समय ही बतायेगा किन्तु इस वजह से जो कटुता का वातावरण निर्माण हो जाता  है वह कष्ट प्रद है।

व्यक्तिगत जीवन में भी दोनों में समानता  है।  मोदी  जी ने देश के लिए काम करना है इस हेतु अपनी ब्याहता पत्नी का त्याग किया और सार्वजनिक जीवन के ऊंचे मानदंडों को स्थापित करने के लिए परिवार का किसी भी प्रकार का हित   करने में कोई रूचि नहीं लिया। नतीजतन माँ और भाई तथा परिवार के अन्य लोग  आज भी छोटे से घर में साधारण जीवन बिता रहे है।  गाँधी जी की पत्नी और पुत्र दोनों ने गाँधी जी के परिवार के प्रति कर्त्तव्य निर्वहन ठीक से न करने की बात का जिक्र कई जगह किया है। दोनों का यह व्यहार किन मानदंडों पर अच्छा या खराब है यह तो कोई समाज शास्त्री ही बता सकता है। लेकिन महानता प्राप्त करने के लिए  आप के जीवन में जो लोग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है उनकी अनदेखी करना उचित है अथवा अनुचित यह प्रश्न निश्चित रूप से विचार योग्य है। और स्वस्थ  समाज के निर्माण में इसकी भूमिका भी है। 

आज गाँधी जी के साथ ही देश के दूसरे प्रधान मंत्री स्वर्गीय श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का भी जन्म दिन है। वही लाल बहादुर जिन्होंने देश में सादगी और ईमानदारी के नए प्रतिमान स्थापित किये और देश को तमाम मुश्किलों जिसमे पाकिस्तान के आक्रमण का मुहतोड़ जवाब देकर युद्ध जीतना और देश को अन्न की कमी से बाहर निकल कर  खाद्यान्न में आत्म निर्भर बनाना शामिल है का भी जन्म दिन है। देश के ऐसे महान सपूत को जन्म दिन की बधाई।

आज दिल्ली में किसान आंदोलनकारी होने माँगो को लेकर राजघाट पर प्रदर्शन करने के लिए आने का प्रयास करने पर पुलिस द्वारा उनकी पिटाई की गई जिसमे १०० से अधिक लोगो  चोट लगी है।  सरकार को इस स्थिति का अनुमान लगा कर इसे शाँति पूर्ण ढंग से निपटने की योजना बनानी चाहिए थी जिसमे सरकार फेल हो गई है। अहिंसा के पुजारी गाँधी के जन्म दिन पर ऐसी घटना केवल यह दिखा रही है की देश अभी भी हैव और हैव नाट्स के बीच बटा हुआ है। अंग्रेज बेशक देश से चले गए है लेकिन जो कोई भी शासन में आता  है उसपर उसी मानसिकता का असर आ जाता है।  नहीं तो अन्नदाता किसानों पर बर्बरता क्यों की जा रही है।  यही इस देश के नेतृत्व की परीक्षा है क्या हम वास्तव में गाँधी के सिद्धांतो पर चल रहे है या गाँधी के नाम पर व्यसाय कर रहे है ।   
  



अजय सिंह "एकल "