Thursday, May 19, 2011

मुंबई मे छोरा,पाकिस्तान मे ढिंढोरा .

  
दोस्तों, 
इसे कहते हैं सफलता ,इसे कहते है तेजी .भारत सरकार ने आखिरकार ५० ऐसे आतंकियो की सूची जारी कर दी जिनकी अरसे से देश को तलाश थी .जारी लिस्ट के कम से कम दो लोग पहले से ही हिंदुस्तान में थे. 

फिरोज अब्दुल खान नामक आतंकी पहले से ही भारत
 की जेल में बंद है और वजाहुल कमर खान नाम का  दूसरा आतंकी  जरा जेल के बाहर था और अपने परिवार के साथ मुंबई के पास में जिला ठाणे में रह रहा था ,और  बाकायदा अपनी अदालती तारीखों में पिछले कई वर्षो से अदालत में जा रहा था यानि पुलिस और अदालत के रिकॉर्ड में दर्ज था .

अब लोग ये कह रहें है की गृह मंत्री चिदंबरम की गलती है और उनकी टीम नाकारा है , कल दबाव में उन्होंने भी यह कह दिया की चलो मानवीय गलती हो गए होगी  ,जब बड़े काम करने हो तो छोटी -मोटी गलती हो  ही जाती है.
पर मै तो कहता हूँ  इससे ज्यादा अच्छा क्या हो सकता है की  जिसे वोह  पाकिस्तान से लाना चाहते थे वो 
इनकी ही जेल मे बंद  था. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी कविता चेतक मे राणा प्रताप के   प्रिय एवं स्वामिभक्त घोड़े का जिक्र कुछ यों किया है "राणा की पुतली फिरी नहीं तबतक चेतक मुड़ जाता था " उसी तरह अब हम निश्चिन्त  हो कर कह सकते है की गृह मंत्री  चिदम्बरम के हाथो में देश सुरक्षित है और उनकी टीम इतनी प्रतिभाशाली है की सूची जारी होने से पहले ही अपराधी जेल मे आ जाता है .वैसे फिल्म स्टार मनोज कुमार की  एक पिक्चर थी " दस नम्बरी"  उनका कहना भी यही था की ऊँगली देखते ही ताला खुल जाता था  और इशारा  पाते ही मॉल उधर का इधर हो जाता था वगैरा -वगैरा .तो भाई साहेब अब आपने देख लिया न चिदम्बरम की टीम के चेतक और दस नंबरियो की करामत इसलिए इसे अब उनकी गलती बताने के बजाये इसको राष्ट्रीय  अभिमान बताना चाहिए .और इनको हिंदुस्तान का प्रधान मंत्री बनाने के लिए प्रयास होना चाहिए .आप विश्वास कीजिये  पाकिस्तान और अमरीका मिलकर यह कर सकते है .आखिर जब इनके कहने पर दूसरे  मंत्री बन सकते है तो प्रधान मंत्री क्यों नहीं. और अब तो लादेन भी जिन्दा नहीं है अमरीका के मंसूबो को रोकने के लिए .हालाँकि अमरीका को पता है की मनमोहन कौन निर्णय अपने आप करते है वो भी तो हिंदुस्तान मे विदेशियो का ही हित साधते है नहीं तो कात्रोची कैसे छूट जाता और विदेशो मे जमा धन वापस लाने के लिए क्यों प्रयास नहीं किये जाते. इसे कहते है की मुंबई मे छोरा और पाकिस्तान मे ढिंढोरा .

राष्ट्रीय शर्म की बात तो राहुल गाँधी ने पहले ही मान ली  है भट्टा परसोल मे .राहुल का कहना है की ग्रेटर नॉएडा के भट्टा परसोल मे जितनी ज्यादती किसानो के साथ हुयी है इससे उन्हें अपने को  भारतीय कहने कहने मे शर्म आ रही है .मुझे थोडा भ्रम हो गया यह सुनकर .मैं सोंच में पद गया  की उन्हें  शर्म तब क्यों नहीं आई जब जैतपुर मे किसानो की उपजाऊ जमीन बिजली संयंत्र लगाने के लिए ली गयी , किसानो पर लाठी चलाई गयी और किसान मारे गए क्योंकि वहा प्रदेश मे सरकार कांग्रेस की है , और काग्रेस राज मे ये तो आम बात है दरअसल शर्म इस बात पर है की कांग्रेस के रहते किसानो की पिटाई और लूट का काम माया वती की पार्टी ने कैसे कर दिया .और उस पर तुर्रा यह १९ मई को प्रदेश सम्मलेन मे राहुल ने यह घोषणा भी कर दी की अब हम उत्तर प्रदेश के हर गाँव -गाँव मे वो करंगे जो ग्रेनो मे हुआ .मेरी तो रूह कॉप रही है राहुल की बात सुन कर.

कांग्रेस सम्मलेनके समापनमे सोनिया कहती है जिनके घर शीशे के
होवो दूसरो  पर पत्थर नहीं फेकते  है ,मुझे नहीं पता नहीं की वक्त पिक्चर मे यह 
 डायलाग जब बोला गया थातो उसका मतलब क्या रहा होगा पर इतना पक्का है इस डायलाग को राजनीतिज्ञ बखूबी इस्तेमाल कर रहे है और वो विरोधी पार्टी को यह ही बताना चाहते है की भाई न तुम मेरी कहो न मै तुम्हारी कहूँ , जनता का क्या वो तो है ही आम जनता जिसको आम की तरह चूस कर   राजनीतिज्ञ गुठली की तरह कभी भी फेंक सकते है ,इसलिए जब सत्ता मे तुम  हो तो तुम और जब मेरी बारी हो तो हम .अगर ऐसा नहीं होता तो अंतर्राष्टीय बाज़ार मे कच्चे तेल के दाम बढ़ने पर भी हमने  देश मे इलेक्शन ख़तम होने के पहले तेल के दाम बढ़ने नहीं दिया और इलेक्शन परणामो के २४ घंटे ख़तम होने के पहले दाम बढ़ा दिए और ये तो तब है जब हमने पेट्रोल की कीमतों पर से सरकार का नियंत्रण हटा दिया हैऔर तेल कंपनियो को दाम तय करने का अधिकार दे दिया है  . अब हम जनता की सोचे की अपने सत्ता मे रहने का जुगाड़ करे .जनता का क्या है थोड़े दिन मे भूल जाएगी वैसे भी हमने इतनी परेशानिया जनता के लिए खड़ी कर रखी है की वो उनको सुलझाने मे ही निपट जाएगी  .और फिर इलेक्शन मे तो अभी बहुत दिन है . इलेक्शन होगा तो फिर कोई लाली पाप थमा देंगे.लेकिन हम और तुम तो शीशे के घर मे है इसलिये पत्थर न फेके और न दूसरे को ऐसा करने को उकसाएँ नहीं तो जनता जान जाएगी हमारा  सच . 

अब इतना  सबकुछ जानने के बाद हम तो केवल ये ही कह सकते है की "बर्बाद गुलिश्ता (प्रदेश ) करने को बस एक ही उल्लू  काफी है ,अंजामे गुलिश्ता क्या होगा हर साख पर उल्लू बैठा है". इसको पढ़ कर आप बुरा न माने उल्लू लक्ष्मी की सवारी है और हर समझदार आदमी चाहता है की लक्ष्मी उसके पास रहे यानि सवारी करे.  



अजय सिंह "एकल"

Wednesday, May 11, 2011

वाह ओबामा,बाय ओसामा

दोस्तों,  
आखिर वो घड़ी आ ही गई जिसके इंतजार में बिचारे किल्टन की कुर्सी चली गई और ओबामा की जाते-जाते रह गई . ओसामा जी (दिग्विजय जी का संबोधन यही है) आखिर को मारे गए ,लेकिन ओसामा मरा वीरो की तरह ही ,एक  निहत्थे को मारने पूरी फ़ौज आई और मार कर अपने साथ ओसामा के बेटे को भी ले गई है(वैसे  डकैत भी यही करते है मरने के बाद लूट का माल साथ ले जाते है )   अमरीका ने मारे डर  के  ओबामा के मरने के फोटो तक सार्वजनिक नहीं किये है अब कौन जाने की मरा वही ओसामा है की कोई और .मैंने तो सुना है  की  बड़े आदमी  अपने साथ बहुत सारे हमशकल लोगो
 को साथ रखते है  ताकि दुनिया को धोखा दे सके (ये अलग बात है ही बिना धोखा दिए बड़ा बनना मुश्किल है   और अगर बन गए तो बने रहना मुश्किल है ) और ये पता ही नहीं चले  की  असली कौन है .भगवान जाने की असलियत क्या है लेकिन इतना तय है ओसामा के मरने के बाद भी अभी ओसामा का जिन  अमरीका को आसानी से जीने नहीं देगा ,अच्छा है अमेरिका     और किसी से तो डरने से रहा.

लेकिन इन सारी घटनाओ से कुछ बाते तो अब स्पष्ट ही है ,मसलन ओबामा जब भारत आये तो उनके भारत की पार्लियामेंट में दिए भाषण में ३६ बार तालिया बजी थी जिसमे  कम से कम तीन बार ओबामा ने अपने भाषण में गाँधी जी का नाम ले कर अपने को गाँधी ही नहीं बल्कि दक्षिण अफ्रीका के नेल्सन मंडेला ,जो की जाने माने गाँधी वादी है का भी फालोवर बता दिया था और हमारे लोगो ने उनकी इस बात को सुन कर के तरह -तरह से कशीदे काढने शुरू कर दिए. हम हिन्दुस्तानी तो मौके के इन्तजार में ही रहतेहै और जैसे ही मौका मिलता है ताकतवर ,पैसे वालो की तारीफ में लग जाते है और अपना फायदा ढूंढने  लगते है . नतीजा यह की आम  लोगो ने विश्वाश कर लिया की अब इतना बड़ा आदमी १० हजार  किलोमीटर चल कर कोई झूठ बोलने थोड़ी आयेगा ,मगर भाई ये तो राष्ट्रपति से ज्यादा सेल्स मैन निकल गया . गाँधी का नाम ले कर   लड़ाकू जहाज हिंदुस्तान को बेचने का सौदा किया, और दुनिया में  अहिंसा की बात करते करते मौका मिलते ही हिंसा कर गया .
गाँधी लेकिन अब हिंदुस्तान में भी गाँधी वादी कहाँ है? बस इज्जत बचा ली दिग्विजय सिंह जी ने. ओसामा को ओसामा जी कह कर और सिद्ध कर दिया की नफरत पापी के पापे करो न की पापी से . अब लोग चाहे जो भी कहे ,अगर दिग्विजय ऐसा नहीं करते तो दुनिया में लोग तो यही कहते की जब गाँधी के देश में ही कोई गाँधी वादी नहीं बचा तो फिर ओबामा का क्या वो तो है ही सेल्स मैन, अरे वो तो वही कहेगा जो खरीदार को पसंद हो इसलिए जब खरीदार गाँधी के देश का हो तो  गाँधी  की तारीफ करने में क्या हर्ज है .
हालाँकि दिग्विजय ने तो उसी दिन कह दिया था की ओसामा ने चाहे जो किया है ,कितना भी बड़ा आतंक वादी है लेकिन मरने के बाद तो उसकी अंतिम क्रिया उसके धर्म के हिसाब से ही होनी चाहिए,लेकिन उसदिन सारी दुनिया ओसामा के मरने की ख़ुशी मना रही थी तो टायमिंग गलत हो गई और लोगो ने ध्यान ही नहीं दिया ,इसलिए दुबारा ओसामा जी कह कर दुनिया का ध्यान खीचना  पड़ा .धन्यवाद दिग्विजय  सिंह जी    बड़ीसेबड़ी घटना होने पर भी अपने  कर्त्तव्य से न डिगने के लिए.

मै तो खैर वैसे भी आपकी और आपकी टीम की कर्त्तव्य शीलता का कायल हूँ, अब देखो न आखिर कसाब को पकडे जाने के ३ साल बाद भी आपकी  सरकार ने     क्या उसको मारा ,क्या उसको फांसी दी, हालाँकि विपक्ष के लोग तो पीछे पड़े है तरह -तरह के आरोप भी लगा रहे है ,मगर कोई मजाल की आप टस से मस हो जाये . अब आप ही बताइए जब नफरत पाप से करना है तो पापी को फाँसी क्यों दे .उलटे हम तो उसको वकील दे रहे है, जज बदल रहे है की शायद कोई  तो जज गाँधी वादी निकलेगा जो इसके कसूर को माफ़ कर देगा इस देश में .यही हमने अफजल गुरु के लिए भी किया है .रोज लाखो खर्च हो रहे है तो क्या हुआ , अब हम गाँधी के देश में पैदा हुए है, सोनिया गाँधी का नमक खा रहे है और ये ही हल रहा तो जल्दी ही राहुल गाँधी का नमक खाना पड़ेगा तो भइया अपनी CR क्यों ख़राब करवाएं पता नहीं कब नंबर आ जाये  मिनिस्टर बनने का .आखिर आदमी के भविष्य और त्रिया चरित्र का पता जब देवताओं को नहीं चलता तो मैं तो कांग्रेस का एक कार्यकर्ता मात्र हूँ ये पंगा मैं तो नहीं लूँगा .और गाँधी से जिसने पंगा लिया उन सबका हस्स्र क्या हुआ ,पानी देने वाला भी नहीं मिलता है जनाब .वायु यान से गिरने के बाद लाश तक नहीं मिलती सुभाष चन्द्र बोस से लेकर माधव राव सिंधिया  का उदाहरण सामने है .तो फिर काहे को शूरवीर बनना .पिता जी ने नाम दिग्विजय रख दिया तो इसका मतलब ये तो नहीं की गाँधी से पंगा लूँ ,इसलिये समझदार आदमी हूँ और समझदारी से काम करता हूँ. मुझे पता है की "एक साधे सब सधे ,सब साधे सब जाये ,रहिमन सींचे मूल  को फूले फले अघाए " इसलिए भैया मेरे तो गाँधी ही गाँधी दूसरो न कोई.


तो बस आप लोग भी समझ जाओ और समझ दारी दिखाओ ,गाँधी के नाम पर देश लूटना आसान है तो बस चुप चाप लूटे जाओ और कोई कुछ बोले तो उसको गाँधी का दुश्मन बता के गोडसे की जमात में खड़ा कर दो बस हो गई उसकी छुट्टी .एक बार गाँधी विरोधी  इमेज बना दो तो फिर जिन्दगी में इलेक्शन नहीं जीत सकता और कोई कहे कुछ भी  आखिर जीतने वाले लोग तो सब पार्टियो को ही चाहिए .

अंत में गाँधी बापू जिंदाबाद ,फिर कोई मरा तो देखेंगे की क्या बयान देना है,बयान    पार्टी को सूट करेगा    तो अधिकारिक मान लेना नहीं तो मुझे दो चार गाली दे लेना .

अजय सिंह "एकल"