Saturday, December 31, 2011

जो हुआ अच्छा हुआ ! अलविदा 2011

दोस्तों ,
जिन्दगी की कुछ और सांसे पूरी होगई. क्या खोया क्या पाया सोचते-सोचते  जिन्दगी का एक और साल निकलने को तैआर है .दुनिया का दस्तूर यही है जाने वाले को अलविदा आने वाले का स्वागत फिर चाहे वह  नया साल हो या हमारा आपका दुनिया में  आवागमन .जाने वाले के लिए कुछ रुकता नहीं आने वाले को कोई रोक पता नहीं.दरअसल यह  जिन्दगी की सच्चाई है ,यह मान ले तो सुखी नहीं माने तो  मर्जी आपकी जो चाहे   कर लो पर ये दुनिया तो ऐसे ही चलेगी . आइये जाने वाले साल में क्या कुछ घट गया एक नजर डाल  लेते है और फिर शुरू करते है  आने वाले का इन्तजार .


साल की शुरुवात  हुई राष्ट्र मंडल खेलो में हुए भ्रष्टाचार के शोर से. जाँच के लिए शुंगलू कमेटी  बनी रिपोर्ट आइ चेअरमैन कल्मांदी साहेब को जेल की हवा खानी पड़ी और फिर नंबर आया राजा साहेब और उनकी टीम का जो स्पेक्ट्रम घोटाले में कोर्ट द्वारा  दोषी पाए गए और  फिर अन्दर भेज  दिए गए , देश के लोगो को पहली बार पता चला की इस देश में  सत्ता में शामिल  और अकूत दौलत होने के बावजूद दोषी पाए जाने पर  जेल हो सकती . जनता को  एक अच्छा मैसेज गया, लोगो को कानून का भय भी हुआ और सम्मान भी .इसलिए ये जो हुआ  अच्छा हुआ.

इसके बाद अन्ना ने अप्रैल   महीने में भ्रस्टाचार के खिलाफ आन्दोलन शुरू करके लोगो में जनचेतना फ़ैलाने का काम बखूबी किया और बाबा रामदेव ने अथाह जन समूह  को एकत्र कर काले धन के खिलाफ अलख जगाई परन्तु सरकार में बैठे लोगो को लगा की एक बार जनता के वोट दे देने के बाद उसके पास कोई ताकत नहीं रहती और   सत्ताधारिओ को पांच साल लूटने  की छूट मिल जाती है इसलिए पहले बाबा रामदेव को और फिर अन्ना को डराने और पिटवाने की कोशिश की ,लेकिन रामलीला मैदान में जब हजारो की संख्या में जनता एकत्र  हो कर भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जूट दिखी तो नेताओ के होश फाक्ता हुए और इन्हें लगा की अति करने से मामला गड़बड़ हो सकता है.जनता केवल बेचारी नही है और जरुरत पड़ने पर जनार्दन बन जाती है इसलिए जरुरी है की संभल कर दुश्मनी करे .तो      सरकार के व्यहार से   बाबा को समझ आ गया  और अन्ना के आन्दोलन से   लगा की घमंड में चूर  सत्ता के नेताओ को भी कुछ -कुछ  समझ आ गया .चलो अच्छा हुआ दोनों को राह दिखी..

दस  साल पहले अमरीका की दादा गिरी से तंग आकर ओसामा ने अपने लोगो  से  ट्विन टावर पर  हमला करवा कर यह सिद्ध कर दिया की अभेद दुर्ग भी भेदे जा सकते है और  इन गुजरे  सालो में अमरीका अकूत सम्पति, हथियारों एवं अव्वल दर्जे  की तकनीकी  जान कारी होने के बावजूद जहर के घूँट पीता रहा और अंत में उसी के घर में घुस कर मार गिराया .इस साल ओसामा के अलावा हुसैन मुबारक को गद्दी छोडनी पड़ी और कर्नल गद्दाफी को उसी की सेना ने मार गिराया और ये एक बार फिर सिद्ध हो गया की दुनिया में आने पर स्वागत तो सबका होता है लेकिन जाने पर दुनिया रोती केवल उसी के लिए है जिसने अपनी जिन्दगी अपनी प्रजा के लिए जी हो जैसे किम जोंग इल जिसने दुनिया से दुश्मनी ले कर उत्तरी कोरिया की जनता के लिए काम किया और उसकी मृत्यु पर जनता ऐसे फूट फूट कर रोई मानो  उनका सगा सम्बन्धी दुनिया छोड़ गया हो .इस घटना ने दुनिया के शासको को अच्छे संकेत दिए .चलो अच्छा हुआ  किम की मौत लोगो को सबक सिखा गयी.

रूस की एक  अदालत में गीता पर प्रतिबन्ध लगाने का मुकदमा आया , बहुत से लोग जिन्होंने पहले नाम भी नहीं सुना था खरीद कर पढ़  डाला  . निर्णय देने वाले जज को भी प्रभु ने सद्बुधी दी और उसने प्रतिबन्ध लगाने से माना कर दिया .चलो अच्छा हुआ इस बहाने गीता के कुछ नए पाठक भी पैदा हुए और प्रसंशक भी

चलते चलते साल के अंत में अन्ना के आन्दोलन में भीड़ नहीं जुट सकी और जिसके डर से सरकार लोकपाल का बिल बना कर पास करवाने के लिए  सच्ची -झूंठी कोशिश करती दिखी वोह भी न बन सका .चलो अच्छा हुआ अन्ना को समझ आ गया की माजरा क्या है कौन किसके साथ मिला हुआ है और यह भी सारे राजनीतिज्ञ और राजनैतिक दल एक ही जैसे है  और सरकार को भी समझ आ गया की उसके  अपने साथी जो सत्ता का मजा तो ले रहे है पर जब सरकार की जरुरत आन पड़ी तो वोह दुसरे पाले में खड़े दिखाई दिए. चलो अच्छा हुआ कुछ के मनसूबे पुरे हुए बाक़िओं के पूरे करने को आ गया नया साल. यही तो है गीता का सन्देश "जो हुआ अच्छा हुआ,"

तो जिनके मनसूबे पूरे हो  गए उनको बधाई  और वोह अब नए मनसूबे बनाने के लिए तैआर हो जाएँ,   जिनके रह गए वोह जोर अजमाए  और उनके मनसूबे आने वाले साल में पूरे हो ,   नए वर्ष की  इस  शुभ  कामना के साथ ,

अजय सिंह "एकल"


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Sunday, December 18, 2011

पहचान कौन ?

प्रिय दोस्तों,

जी जनाब, सबसे मुश्किल काम है पहचानना .फिर चाहे वो अपने को पहचानना हो या  दूसरे  को .कभी -कभी तो ऐसा होता है की आदमी जिन्दगी भर जिनके साथ रहता है, अंत समय पता चलता है की एक दूसरे के साथ रहने के बावजूद पहचान नहीं हो पाई.और कभी आप को कोई एक मिनट के लिए मिलता है और आप उसको पहचान जाते है. जिन्दगी की पहेली ऐसी ही है.

कभी सोने की चिड़िया  कहा जाने वाला  भारत देश भिक्षुओ अर्थात भिखारिओ के लिए भी दुनिया में जाना जाता है .बौद्ध धर्म जो इस देश से प्रारंभ हुआ था ,  उसके प्रचारक विश्व में बौद्ध भिक्षु कहलाये .तथापि  इस शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर नकरात्मक  प्रतीक के तौर पर किया जाता है किन्तु  गुडं एवं दोष के आधार पर  इस शब्द की विवेचना करने पर पता चलेगा की यह उतना ख़राब नहीं है जितना आम तौर पर समझा जाता है.

पिछले कुछ दिनों में इस शब्द की विशेष चर्चा तब शुरू हुई जब राहुल गाँधी ने इलाहबाद   की एक सभा में उत्तर प्रदेश एवं बिहार के लोगो से कहा की वोह कब तक मुंबई जा कर भीख मांगते रहेंगे ? यानि राहुल जिनकी पहचान   कई लोगो ने  राज कुमार की तरह बना रखी है उनको उत्तर भारत के मेहनत कश लोग देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में भिखारी जैसे लगे. हालाँकि   बात जिस तरह से और सन्दर्भ में कही गयी थी उस से लोगो का गुस्सा होना स्वाभाविक ही था ,किन्तु मैंने जब इस बारे में सोचना शुरू किया तो निष्कर्ष बड़े विचित्र निकले और इनको मैं आप से साझा करने की कोशिश कर रहा हूँ.हालाँकि कई बार दिया गया तर्क -कुतर्क भी लग सकता है मेरे विचार से  इसको साधारण  व्यंग की तरह देखना भी उचित रहेगा.

हाल में मैंने यह  चुटकला कहीं पढ़ा था " पूजा स्थलों ( मंदिर ) के अन्दर बड़े आदमी  और बाहर गरीब लोग मांगते हुए मिलते है " अर्थात  मांगना आदमी की फितरत है और हर समय कुछ न कुछ मांगता  मिल जायेगा . दरअसल आम तौर पर यह समझा जाता है की जब आप किसी से कुछ मांगते है और उसके बदले में कुछ देते नहीं है तो उसे भीख कहा जा सकता है . किन्तु जब चौराहे पर खड़ा गरीब आदमी आप से कुछ मांगता है तो उसके बदले दुआ  देता है और दान लेता हुआ पुजारी आशीर्वाद देता है आप के दिए हुए दान  के बदले. तो फिर गली-गली और हर दरवाजे पर जा कर वोट मागने वाले नेता को क्या कहना उचित होगा?क्योंकि  वोट देने वाले को नेता भी कुछ देता तो है नहीं बदले में सिवा  आश्वासन   के और ये तो हर लेने वाला देता है चाहे वोह चौराहे का भिखारी हो या कोई शान से अट्टालिका में बैठा हुआ पुजारी, दर असल बदले में कुछ देना  क्रिया की प्रतिक्रिया है जो होगी ही चाहे वोह तुरंत  दिखाई पड़े या बाद में.  .

पंडित मदन मोहन मालवीय ने जब काशी हिन्दू विश्वविदयालय की शुरुवात की तो सारा धन  लोगो  से दान में ले कर ही इस पवित्र काम को अंजाम देने में सफल हुए.साथ ही मांगने की आदत से जो स्वाभाविक गुंड मनुष्य में  आ जाता है उसके बारे में उनका यह कहना था की इससे आदमी का अहंकार (मैं ) ख़तम हो जाता है ,इसलिए यदि उद्देश्य अच्छा हो तो  मांगने में भी  कोई बुराई नहीं  .

थोड़ा और सोचे तो पता चलेगा की वास्तव में मांगता कौन है जिसके पास वोह चीज कम हो या न हो ,इस बिंदु पर विचार करने पर पता चलेगा की अमीर वह  नहीं है जो   ज्यादा कमाता है बल्कि वोह है जिसे और नहीं चाहिए. इस कसौटी पर देखने पर आम तौर पर हम  सभी लोग धन, शोहरत या ऐसी ही दूसरी चीजो की ओर  भागते नजर आएंगे , कुल मिला कर सुबह से शाम तक और -और कर एक ऐसे बर्तन को भरने में लगे है जिसमे पेंदी (bottom) नहीं है तो फिर ये बर्तन तो भरेगा नहीं और हमारी जिन्दगी ऐसे ही निकल जाने वाली है. इसलिए सावधान राहुल बाबा भिखारी वोह नही है जिन्हें आप समझ रहे है कभी आत्म निरिक्षण करे तो पता लगेगा की आप कौन है.  यह सही है की आदमी अपने को ही पहचान ने में सबसे ज्यादा कठिनाई महसूस करता है.

अजय सिंह "एकल"  

और अंत में एक  जन  कवि को श्रधांजलि   :

देखना सुनना व सच कहना जिन्हें भाता नहीं
कुर्सियों पर फिर वही बापू के बन्दर आ गए l
तथा
काजू भुने प्लेट में ,विह्स्की गिलास में,
उतरा है राम राज, विधायक निवास में.