Sunday, December 18, 2011

पहचान कौन ?

प्रिय दोस्तों,

जी जनाब, सबसे मुश्किल काम है पहचानना .फिर चाहे वो अपने को पहचानना हो या  दूसरे  को .कभी -कभी तो ऐसा होता है की आदमी जिन्दगी भर जिनके साथ रहता है, अंत समय पता चलता है की एक दूसरे के साथ रहने के बावजूद पहचान नहीं हो पाई.और कभी आप को कोई एक मिनट के लिए मिलता है और आप उसको पहचान जाते है. जिन्दगी की पहेली ऐसी ही है.

कभी सोने की चिड़िया  कहा जाने वाला  भारत देश भिक्षुओ अर्थात भिखारिओ के लिए भी दुनिया में जाना जाता है .बौद्ध धर्म जो इस देश से प्रारंभ हुआ था ,  उसके प्रचारक विश्व में बौद्ध भिक्षु कहलाये .तथापि  इस शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर नकरात्मक  प्रतीक के तौर पर किया जाता है किन्तु  गुडं एवं दोष के आधार पर  इस शब्द की विवेचना करने पर पता चलेगा की यह उतना ख़राब नहीं है जितना आम तौर पर समझा जाता है.

पिछले कुछ दिनों में इस शब्द की विशेष चर्चा तब शुरू हुई जब राहुल गाँधी ने इलाहबाद   की एक सभा में उत्तर प्रदेश एवं बिहार के लोगो से कहा की वोह कब तक मुंबई जा कर भीख मांगते रहेंगे ? यानि राहुल जिनकी पहचान   कई लोगो ने  राज कुमार की तरह बना रखी है उनको उत्तर भारत के मेहनत कश लोग देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में भिखारी जैसे लगे. हालाँकि   बात जिस तरह से और सन्दर्भ में कही गयी थी उस से लोगो का गुस्सा होना स्वाभाविक ही था ,किन्तु मैंने जब इस बारे में सोचना शुरू किया तो निष्कर्ष बड़े विचित्र निकले और इनको मैं आप से साझा करने की कोशिश कर रहा हूँ.हालाँकि कई बार दिया गया तर्क -कुतर्क भी लग सकता है मेरे विचार से  इसको साधारण  व्यंग की तरह देखना भी उचित रहेगा.

हाल में मैंने यह  चुटकला कहीं पढ़ा था " पूजा स्थलों ( मंदिर ) के अन्दर बड़े आदमी  और बाहर गरीब लोग मांगते हुए मिलते है " अर्थात  मांगना आदमी की फितरत है और हर समय कुछ न कुछ मांगता  मिल जायेगा . दरअसल आम तौर पर यह समझा जाता है की जब आप किसी से कुछ मांगते है और उसके बदले में कुछ देते नहीं है तो उसे भीख कहा जा सकता है . किन्तु जब चौराहे पर खड़ा गरीब आदमी आप से कुछ मांगता है तो उसके बदले दुआ  देता है और दान लेता हुआ पुजारी आशीर्वाद देता है आप के दिए हुए दान  के बदले. तो फिर गली-गली और हर दरवाजे पर जा कर वोट मागने वाले नेता को क्या कहना उचित होगा?क्योंकि  वोट देने वाले को नेता भी कुछ देता तो है नहीं बदले में सिवा  आश्वासन   के और ये तो हर लेने वाला देता है चाहे वोह चौराहे का भिखारी हो या कोई शान से अट्टालिका में बैठा हुआ पुजारी, दर असल बदले में कुछ देना  क्रिया की प्रतिक्रिया है जो होगी ही चाहे वोह तुरंत  दिखाई पड़े या बाद में.  .

पंडित मदन मोहन मालवीय ने जब काशी हिन्दू विश्वविदयालय की शुरुवात की तो सारा धन  लोगो  से दान में ले कर ही इस पवित्र काम को अंजाम देने में सफल हुए.साथ ही मांगने की आदत से जो स्वाभाविक गुंड मनुष्य में  आ जाता है उसके बारे में उनका यह कहना था की इससे आदमी का अहंकार (मैं ) ख़तम हो जाता है ,इसलिए यदि उद्देश्य अच्छा हो तो  मांगने में भी  कोई बुराई नहीं  .

थोड़ा और सोचे तो पता चलेगा की वास्तव में मांगता कौन है जिसके पास वोह चीज कम हो या न हो ,इस बिंदु पर विचार करने पर पता चलेगा की अमीर वह  नहीं है जो   ज्यादा कमाता है बल्कि वोह है जिसे और नहीं चाहिए. इस कसौटी पर देखने पर आम तौर पर हम  सभी लोग धन, शोहरत या ऐसी ही दूसरी चीजो की ओर  भागते नजर आएंगे , कुल मिला कर सुबह से शाम तक और -और कर एक ऐसे बर्तन को भरने में लगे है जिसमे पेंदी (bottom) नहीं है तो फिर ये बर्तन तो भरेगा नहीं और हमारी जिन्दगी ऐसे ही निकल जाने वाली है. इसलिए सावधान राहुल बाबा भिखारी वोह नही है जिन्हें आप समझ रहे है कभी आत्म निरिक्षण करे तो पता लगेगा की आप कौन है.  यह सही है की आदमी अपने को ही पहचान ने में सबसे ज्यादा कठिनाई महसूस करता है.

अजय सिंह "एकल"  

और अंत में एक  जन  कवि को श्रधांजलि   :

देखना सुनना व सच कहना जिन्हें भाता नहीं
कुर्सियों पर फिर वही बापू के बन्दर आ गए l
तथा
काजू भुने प्लेट में ,विह्स्की गिलास में,
उतरा है राम राज, विधायक निवास में.
  

1 comment:

Sunil said...

Good post! Ab shayad Rahul baba decide kar payenge k unke aadarsh kaun hai. M. M. Malviya ya Bhikhari!