Sunday, April 26, 2020

अब तूही बता तुझे क्या कहूं


अब तूही बता तुझे क्या कहूं
बीमारी कहूं कि बहार कहूं
पीड़ा कहूं कि त्यौहार कहूं
संतुलन कहूं कि संहार कहूं
अब तूही बता तुझे क्या कहूं

मानव जो उदंड था
पाप का प्रचंड था
सामर्थ का घमंड था
मानवता को कर रहा खंड खंड था
नदियां सारी त्रस्त थी
सड़के सारी व्यस्त थी
जंगलों में आग थी
हवाओं में राख थी
कोलाहल का स्वर था
खतरे में जीवो का घर था
चांद पर पहरे थे
वसुधा के दर्द बड़े गहरे थे

फिर अचानक तू आई
मृत्यु का खौफ लाई
संसार को डराई
विज्ञान भी घबराई
लोग यूं मरने लगे
खुद को घरों में भरने लगे
इच्छाओं को सीमित करने लगे
प्रकृति से डरने लगे

अब लोग सारे बंद हैं
नदिया स्वच्छंद हैं
हवाओं में सुगंध है
वनों में आनंद है
जीव सारे मस्त हैं
वातावरण भी स्वस्थ हैं
पक्षी स्वरों में गा रहे
तितलियां भी इतरा रही

अब तूही बता तुझे क्या कहूं

Taken from NBT

Thursday, April 23, 2020

मैंने सोचा न था

मैंने सोचा न था
एक दिन करोना यूँ आ जायेगा 
सब  लाक डाउन करा जायेगा 
मैंने सोचा न था मैंने सोचा ना था
मैंने पैसे कमाए मजे के लिए 
बंगले भी बनवाये मजे के लिए 
सब के सब धरे रह जायँगे 
न  मेरे न तेरे ये काम आएंगे 
मैंने सोचा न था मैंने सोचा ना था
करोना यूँ सबको सताएगा खुब 
दूरियाँ  शरीरों की बढ़ाएगा खुब 
कारे  सब खड़ी रहेंगी गैराज में
रहना  होगा सभी को औकात में  
मैंने सोचा न था मैंने सोचा ना था
जो चाहे वो  ना  खा पाएंगे 
होटलो में भी न जा पाएंगे 
एक दिन हम यूँ  मोहताज हो जायेंगे
मैंने सोचा न था मैंने सोचा ना था
बैंक में पड़े पैसे न काम आएंगे 
बंधू बान्धव भी न शकल दिखाएंगे 
रिश्ते नाते सभी बिखर जायेंगे  
मैंने सोचा न था मैंने सोचा ना था
ये करोना सभी को समझायेगा 
तब आदमी को आदमी समझ पायेगा 
नहीं तो ऐसी चोट दे जायेगा 
जिंदगी में पछतावा ही रह जाएगा 
मैंने सोचा न था मैंने सोचा ना था  

अजय सिंह