Sunday, August 30, 2015

शीना हत्या कांड :एक अदृश्य राष्ट्रीय समस्या

दोस्तों,

पिछले चार-पांच दिनों से शीना हत्या कांड अख़बार और टेलेविज़न के माध्यम से देश में जन -जन की जुबान पर है। हर कोई इस हत्या कांड के भेद जल्दी से जल्दी समझ कर मानो किसी प्रतियोगता का इनाम जीत कर देश के इतिहास में अपनी जगह बना लेना चाहता है। फेस बुक और व्हाट्स अप भी इस प्रतियोगिता में बाजी मार लेना चाहते है। लोग तरह -तरह के अनुमान लगा कर एक दूसरे से चर्चा कर सभी सम्भावनो पर विचार कर लेना चाहते है और केस है की इसमें रोज  नई -नई कड़ियाँ जुड़ती चली जा रही है और केस की सही व्याख्या हो पाने के बजाय उलझता जा रहा है।


इस हत्या कांड के समाचार ने "हार्दिक पटेल के गुजरात आंदोलन " को जनता की निगाहो से ओझल कर दिया है। यहाँ तक की देश की जनता को में १९६५ के हिंदुस्तान -पाकिस्तान के युद्ध के इतिहास को जानने से भी महरूम कर दिया है। क्योंकी टीवी और अखबारों में आने वाले समाचारों की दिशा बदली हुई है। इस बात को देश के रक्षा मंत्री ने एक बयान देकर स्वीकार किया है। और इस तरह हम भारत वासिओं ने अपने गौरवशाली  इतिहास को जानने और समझने का एक अद्भुत अवसर खो दिया है। 

इस केस में तो शायद अभी कुछ और दिन रहस्य खुलते रहेंगे फिर मुजरिमो पर लोअर कोर्ट , हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक मुकदमा चलेगा और फिर रेअर ऑफ थे रेयरेस्ट केस मान कर अपराधियो को देश  के कानून के हिसाब से फांसी की सजा भी हो जाये, किन्तु इस घटना ने जो देश में रह रहे परिवारों के मन पर माँ जो केवल एक शब्द नहीं असीम सम्मान का सूचक है जिसके प्यार और बलिदान के किस्से कहानिया सुन सुन कर हम बड़े हुए है उसका क्या परिणाम हमारे परिवारोँ और रिस्तो पर पड़ सकता है इसकी कल्पना करना भी मुश्किल काम है। समाज में हुये इस नुकसान का ऑकलन मनोवैज्ञानिकों और सोशल इंजीनयरिंग समझने वाले लोगो को शीघ्र करना चाहिये तथा परिवारिक  रिश्तों में पैदा हुए अविश्वाश को कैसे पुनः स्थापित किया जाये इस प्रश्न का उत्तर भी देना चाहिए ताकि इस  नुकसान की भरपाई शीघ्र हो सके।  

मेरी उपरोक्त व्याख्या कुछ लोगो को शायद कुछ अव्यहारिक लगे  किन्तु कच्चे दिमाग के नौनिहाल जिन्हे अभी दुनियादारी की समझ मिलनी शुरू ही हुई है जब वह अपने पिता या माता से यह प्रश्न पूछता है की इद्राणी ने अपनी बेटी का क़त्ल क्यों किया तो इसका सही जवाब शायद ही कोई देना चाहेगा और फिर जब बाल मन यह पूछता है की आप तो हमें नहीं मारोगे तो फिर अपने प्यार का विश्वास दिलाना थोड़ा मुश्किल तो होगा। यदि आप सोचते है की दस पांच दिनों में बच्चों के मन से यह भय और अविश्वास निकल जायेगा तो मेरा विश्वास है की केस में जैसे-जैसे  आगे बढ़ेगा तो मिडिया अपना कर्त्तव्य समझ कर पुरे केस को री  कैप करेगा फिर लोअर कोर्ट ने क्या निर्णय दिया उस पर जनता की क्या प्रतिक्रिया है और विशेषज्ञों से पूछेगा की अब आगे क्या होगा और इस तरह  आज तीन साल का बच्चा २५ साल का होते -होते कम १०-१५ बार अलग अलग कारणों से देखेगा। 

क्या ऐसा नहीं हो सकता की आम जनता के लिए सहज मीडिया में इस तरह के विस्तृति वर्णन के साथ प्रसारण पर नियंत्रण किया जाये। जब तक स्वत: नियंत्रण की स्तिथि न बन जाये। इस पर भी कुछ लोग मीडिया की आजादी का सवाल उठा सकते है ,लेकिन प्रश्न यह है की क्या हमें अपनी सारी व्यस्थाएँ बाजार के हवाले कर के केवल वाद विवाद करके काम चलाना चाहिए या अपने बुरे भले का ध्यान कर के आने वाली पीढ़ी के संस्कारो के लिए वातावरण तैयार करना चाहिये। यह हमने यदि अभी नहीं किया तो शायद बात हाथ  निकल जाएगी और फिर पछताने के शिव कुछ भी हाथ  नहीं लगेगा। 

 

अजय सिंह "जे एस के"








Saturday, August 29, 2015

नाथूराम का अंतिम भाषण “मैंने गांधी को क्यों मारा”

60 साल तक भारत में प्रतिबंधित रहा नाथूराम का अंतिम भाषण “मैंने गांधी को क्यों मारा”

 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी लेकिन नाथूराम गोड़से घटना स्थल से फरार नही हुआ बल्कि उसने आत्मसमर्पण कर दिया | नाथूराम गोड़से समेत 17 अभियुक्तों पर गांधी जी की हत्या का मुकदमा चलाया गया | इस मुकदमे की सुनवाई के दरम्यान न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर जनता को सुनाने की अनुमति माँगी थी जिसे न्यायमूर्ति ने
स्वीकार कर लिया था | हालाँकि सरकार ने नाथूराम के इस वक्तव्य पर प्रतिबन्ध लगा दिया था लेकिन नाथूराम के छोटे भाई और गांधी जी की हत्या के सह-अभियोगी गोपाल गोड़से ने 60 साल की लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट में विजय प्राप्त की और नाथूराम का वक्तव्य प्रकाशित किया गया | नाथूराम गोड़से ने गांधी हत्या के पक्ष में अपनी 150 दलीलें न्यायलय के समक्ष प्रस्तुति की | देसी लुटियंस पेश करते है “नाथूराम गोड़से के वक्तव्य के मुख्य अंश”
1. नाथूराम का विचार था कि गांधी जी की अहिंसा हिन्दुओं को कायर बना देगी |कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी को मुसलमानों ने निर्दयता से मार दिया था महात्मा गांधी सभी हिन्दुओं से गणेश शंकर विद्यार्थी की तरह अहिंसा के मार्ग पर चलकर बलिदान करने की बात करते थे | नाथूराम गोड़से को भय था गांधी जी की ये अहिंसा वाली नीति हिन्दुओं को कमजोर बना देगी और वो अपना अधिकार कभी प्राप्त नहीं कर पायेंगे |

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2.1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोलीकांड के बाद से पुरे देश में ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ आक्रोश उफ़ान पे था | भारतीय जनता इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाने की मंशा लेकर गांधी जी के पास गयी लेकिन गांधी जी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से साफ़ मना कर दिया।

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3. महात्मा गांधी ने खिलाफ़त आन्दोलन का समर्थन करके भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता का जहर घोल दिया | महात्मा गांधी खुद को मुसलमानों का हितैषी की तरह पेश करते थे वो केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के 1500 हिन्दूओं को मारने और 2000 से अधिक हिन्दुओं को मुसलमान बनाये जाने की घटना का विरोध तक नहीं कर सके |

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4. कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से काँग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गांधी जी ने अपने प्रिय सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे | गांधी जी ने सुभाष चन्द्र बोस से जोर जबरदस्ती करके इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया |

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5. 23 मार्च 1931 को भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गयी | पूरा देश इन वीर बालकों की फांसी को टालने के लिए महात्मा गांधी से प्रार्थना कर रहा था लेकिन गांधी जी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए देशवासियों की इस उचित माँग को अस्वीकार कर दिया।

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6. गांधी जी कश्मीर के हिन्दू राजा हरि सिंह से कहा कि कश्मीर मुस्लिम बहुल क्षेत्र है अत: वहां का शासक कोई मुसलमान होना चाहिए | अतएव राजा हरिसिंह को शासन छोड़ कर काशी जाकर प्रायश्चित करने | जबकि  हैदराबाद के निज़ाम के शासन का गांधी जी ने समर्थन किया था जबकि हैदराबाद हिन्दू बहुल क्षेत्र था | गांधी जी की नीतियाँ धर्म के साथ, बदलती रहती थी | उनकी मृत्यु के पश्चात सरदार पटेल ने सशक्त बलों के सहयोग से हैदराबाद को भारत में मिलाने का कार्य किया | गांधी जी के रहते ऐसा करना संभव नहीं होता |

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7. पाकिस्तान में हो रहे भीषण रक्तपात से किसी तरह से अपनी जान बचाकर भारत आने वाले विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली | मुसलमानों ने मस्जिद में रहने वाले हिन्दुओं का विरोध किया जिसके आगे गांधी नतमस्तक हो गये और गांधी ने उन विस्थापित हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।

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8. महात्मा गांधी ने दिल्ली स्थित मंदिर में अपनी प्रार्थना सभा के दौरान नमाज पढ़ी जिसका मंदिर के पुजारी से लेकर तमाम हिन्दुओं ने विरोध किया लेकिन गांधी जी ने इस विरोध को दरकिनार कर दिया | लेकिन महात्मा गांधी एक बार भी किसी मस्जिद में जाकर गीता का पाठ नहीं कर सके |

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9. लाहौर कांग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से विजय प्राप्त हुयी किन्तु गान्धी अपनी जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया | गांधी जी अपनी मांग को मनवाने के लिए अनशन-धरना-रूठना किसी से बात न करने जैसी युक्तियों को अपनाकर अपना काम निकलवाने में माहिर थे | इसके लिए वो नीति-अनीति का लेशमात्र विचार भी नहीं करते थे |

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10. 14 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, लेकिन गांधी जी ने वहाँ पहुँच कर प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि गांधी जी ने  स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा। न सिर्फ देश का विभाजन हुआ बल्कि लाखों निर्दोष लोगों का कत्लेआम भी हुआ लेकिन गांधी जी ने कुछ नहीं किया |

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11. धर्म-निरपेक्षता के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के जन्मदाता महात्मा गाँधी ही थे | जब मुसलमानों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने का विरोध किया तो महात्मा गांधी ने सहर्ष ही इसे स्वीकार कर लिया और हिंदी की जगह हिन्दुस्तानी (हिंदी + उर्दू की खिचड़ी) को बढ़ावा देने लगे | बादशाह राम और बेगम सीता जैसे शब्दों का चलन शुरू हुआ |

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12. कुछ एक मुसलमान द्वारा वंदेमातरम् गाने का विरोध करने पर महात्मा गांधी झुक गये और इस पावन गीत को भारत का राष्ट्र गान नहीं बनने दिया |

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13. गांधी जी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोबिन्द सिंह को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा। वही दूसरी ओर गांधी जी मोहम्मद अली जिन्ना को क़ायदे-आजम कहकर पुकारते थे |

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14. कांग्रेस ने 1931 में स्वतंत्र भारत के राष्ट्र ध्वज बनाने के लिए एक समिति का गठन किया था इस समिति ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र को भारत का राष्ट्र ध्वज के डिजाइन को मान्यता दी किन्तु गांधी जी की जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।

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15. जब सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया तब गांधी जी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।

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16. भारत को स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को एक समझौते के तहत 75 करोड़ रूपये देने थे भारत ने 20 करोड़ रूपये दे भी दिए थे लेकिन इसी बीच 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया | केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण से क्षुब्ध होकर 55 करोड़ की राशि न देने का निर्णय लिया | जिसका महात्मा गांधी ने विरोध किया और आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप 55 करोड़ की राशि भारत ने पाकिस्तान दे दी ।
महात्मा गांधी भारत के नहीं अपितु पाकिस्तान के राष्ट्रपिता थे जो हर कदम पर पाकिस्तान के पक्ष में खड़े रहे, फिर चाहे पाकिस्तान की मांग जायज हो या नाजायज | गांधी जी ने कदाचित इसकी परवाह नहीं की |
उपरोक्त घटनाओं को देशविरोधी मानते हुए नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की हत्या को न्यायोचित ठहराने का प्रयास किया | नाथूराम ने न्यायालय में स्वीकार किया कि माहात्मा गांधी बहुत बड़े देशभक्त थे उन्होंने निस्वार्थ भाव से देश सेवा की | मैं उनका बहुत आदर करता हूँ लेकिन किसी भी देशभक्त को देश के टुकड़े करने के ,एक समप्रदाय के साथ पक्षपात करने की अनुमति नहीं दे सकता हूँ | गांधी जी की हत्या के सिवा मेरे पास कोई दूसरा उपाय नहीं था |
  🇮🇳   नाथूराम गोडसे(एक देशभक्त)🇮🇳

Thursday, August 27, 2015

आरक्षण की आग

हार्दिक पटेल जैसे प्रतिघातियों द्वारा पुनः आरक्षण की आग लगाने पर टूटते हिन्दू समाज को चेताती  नई कविता

आओ मिलकर आग लगाएं,नित नित नूतन स्वांग करें,
पौरुष की नीलामी कर दें,आरक्षण की मांग करें,
पहले से हम बंटे हुए हैं,और अधिक बंट जाएँ हम,
100 करोड़ हिन्दू है,मिलकर इक दूजे को खाएं हम,

देश मरे भूखा चाहे पर अपना पेट भराओ जी,
शर्माओ मत,भारत माँ के बाल नोचने आओ जी,
तेरा हिस्सा मेरा हिस्सा,किस्सा बहुत पुराना है,
हिस्से की रस्साकसियों में भूल नही ये जाना है,

याद करो ज़मीन के हिस्सों पर जब हम टकराते थे,
गज़नी कासिम बाबर मौका पाते ही घुस आते थे
अब हम लड़ने आये हैं आरक्षण वाली रोटी पर,
जैसे कुत्ते झगड़ रहे हों कटी गाय की बोटी पर,

हमने कलम किताब लगन को दूर बहुत ही फेंका है,
नाकारों को खीर खिलाना संविधान का ठेका है,
मैं भी पिछड़ा,मैं भी पिछड़ा,कह कर बनो भिखारी जी,
ठाकुर पंडित बनिया सब के सब कर लो तैयारी जी,

जब पटेल के कुनबों की थाली खाली हो सकती है,
कई राजपूतों के घर भी कंगाली हो सकती है,
बनिए का बेटा रिक्शे की मज़दूरी कर सकता है,
और किसी वामन का बेटा भूखा भी मर सकता है,

आओ इन्ही बहानों को लेकर,सड़कों पर टूट पड़ो,
अपनी अपनी बिरादरी का झंडा लेकर छूट पड़ो,
शर्म करो,हिन्दू बनते हो,नस्लें तुम पर थूंकेंगी,
बंटे हुए हो जाति पंथ में,ये ज्वालायें फूकेंगी,

मैं पटेल हूँ मैं गुर्जर हूँ,लड़ते रहिये शानों से,
फिर से तुम जूते खाओगे गजनी की संतानो से,
ऐसे ही हिन्दू समाज के कतरे कतरे कर डालो,
संविधान को छलनी कर के,गोबर इसमें भर डालो,

राम राम करते इक दिन तुम अस्सलाम हो जाओगे,
बंटने पर ही अड़े रहे तो फिर गुलाम हो जाओगे,
 साभार 
 रचनाकार- गौरव चौहान ,इटावा 


अंत में 
वक्त और दौलत में इतना ही  अंतर है की आपको हरसमय  पता होता है की आप के पास कितनी दौलत है परन्तु आप यह बिलकुल भी नहीं जानते की आप के पास कितना वक्त है।

अजय सिंह "जे इस के


Sunday, August 23, 2015

दृश्यम फिल्म से मिली शिक्षा

दोस्तों,
कल काफी दिनों के बाद एक बढ़िया पारिवारिक फिल्म दृश्यम देखने का मौका मिला। कुल मिला कर फिल्म अच्छी बनी है ,सभी कलाकारों ने ठीक -ठाक काम किया। परिवार के साथ बैठ कर देखने योग्य फिल्म है। लेकिन यह फिल्म केवल मनोरंजन ही नहीं करती है बल्कि कुछ शिक्षा भी देती है। हालाँकि समय समय दूसरी फिल्में जैसे थ्री इडियट्स  या चक दे इंडिया इत्यादि में भी मनोरंजन और शिक्षा का अच्छा गठ जोड़ था  तो भी इस फिल्म का सन्देश विशेष है जिसका उल्लेख मैं कर रहा हूँ :

१. पहला सन्देश यह की सामान्यतया हम लोग समाज में कानून के शासन की बात करते है और अपेक्षा भी, कि कानून के हिसाब से अपराधी को सजा मिले।  परन्तु यह भूल जाते है  की कानून सबूतों के हिसाब से न्याय की व्यस्था करता है और कानून अँधा भी होता है जिसमे अपराधी के छूटने और निरपराधी को सजा मिलने की भी सम्भावना बनी रहती है। यहाँ भगवत गीता में श्री कृष्णा के द्वारा दिया गया सूत्र  
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृतं ।
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ।। श्लोक ८ 
में स्पष्ट कहा है की स्थापना धर्म की होनी है और इसके लिए भगवन कहते है की साधुओ की रक्षा और दुष्टो का विनाश करके धर्म की सस्थापना के लिए हर युग में जन्म लेता हूँ। तो स्थापना करनी है धर्म की जिसमे कानून सहायक होगा अर्थात कानून का पालन करते हुए अन्ततोगत्या धर्म की स्थापना लक्ष्य है। 
यही दृश्यम फिल्म सन्देश दे रही है जिसमे नायक की बेटी अंजू अपने  साथ हुए दुर्व्यहार के कारण  सैम देशमुख  जो की पुलिस कमिश्नर का बेटा है, की हत्या  कर देती है और फिल्म का नायक विजय अपने पूरे  परिवार को इस घटना के आरोप से बचाने में सफल हो जाता है।  इस तरह हुयी हत्या के लिये कानून की निगाह में तो निश्चित रूप से अंजू ही गुनहगार है किन्तु उसने  यह हत्या अपनी रक्षा के लिए की थी।  हत्या रक्षा करने की प्रक्रिया में हुई इसका न तो इरादा था और न भाव। इसलिए कानून की निगाह में अंजू और उसको बचाने के अपराध में सारा परिवार कानून की  निगाह  में गुनहगार हो जाता जबकि नायक ने अपनी सुबुद्धि का प्रयोग कर योजना बद्ध तरीके से अपने परिवार की रक्षा कर धर्म का पालन किया।
 २. दूसरा सन्देश फिल्म यह दे रही है की हम सुनी हुयी घटनाओँ को आसानी से भूल जाते है जबकि देखी हुई घटनाएँ आपके दिमाग  खास तौर  पर सब कांसस माइंड पर गहरा असर डालती है जिसे आसानी से भूलना संभव नहीं है।  अतः जिन चीजो को आप लेम समय याद रखना चाहे उन्हें दृश्य के रूप में आसानी से याद रखा जा सकता है। यह विधि खास तौर पर विद्यार्थियों के लिये लाभदायक है। लेकिन इस विधि का प्रयोग करने के लिए अभ्यास की आवश्यकता होती है किन्तु एक बार अभ्यास हो जाने पर प्रयोग आसान भी है और प्रभावी भी। 
३. तीसरा सन्देश जो फिल्म देती है वह यह की अचानक आई किसी  भी समस्या का समाधान शांत और निश्छल मन से प्रयास करके निकाला जा सकता है यदि आप अपना संतुलन न खोये। यह भी अभ्यास से सीखा जा सकता है की अपने मन को अकम्प अर्थात किसी भी घटना में मन के हिले बिना कैसे घटना का सफल प्रबंधन किया जाये।  
४. फिल्म से मिली चौथी शिक्षा भी काम महत्व पूर्ण नहीं है।  यह है की बुद्धिमान होना और साक्षर होना दो अलग अलग चीजे है।  कोई जरुरी नहीं की यदि आदमी साक्षर नहीं हो तो बुद्धिमान भी न हो। जैसा की फिल्म के नायक के साथ होता है जो चौथी पास है लेकिन बुद्धिमान इतना की पूरे पुलिस महकमे को पता ही नहीं चला की किस सफाई के साथ नायक ने योजना बद्ध तरीके से कानून के दायरे में ऐसा ताना -बाना बन दिया की सब सैम की माँ जो सूबे की सबसे बड़ी पोलिस ऑफिसर इंस्पेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस होने के बावजूद नायक और उसके परिवार का बाल भी बांका नहीं कर सकी। 
५.   पांचवी शिक्षा केवल इतनी की नायक ने इतना सबकुछ सफलता पूर्वक करने के बाद भी अपनी सरलता और सहजता को अंत तक खतम नहीं होने दिया। यह सब नायक स्वाभाविक रूप से इसलिए कर पाया की उसका प्रयोजन केवल परिवार की सुरक्षा तक ही सीमित रहा। किसी भी मौके पर नायक ने अपने मनोभावों में कोई परिवर्तन अथवा लेश मात्र भी अहंकार नहीं  आने दिया और अपने लक्ष्य को प्राप्त किया।  
६ . एक और बात जो मुझे सिद्धांत रूप में बहुत अच्छी लगी की यदि आप कोई भेद सुरक्षित रखना चाहते है तो उसे किसी के साथ भी शेयर न करे और हर हल में इस नियम का पालन कड़ाई के साथ करे चाहे वोह अपनी पत्नी के साथ ही क्यों न हो ,जैसा फिल्म के नायक ने सैम की लाश को ठिकाने लगाने के स्थान के बारे में किया।  पत्नी अंजू के यह पूछने पर की उसने लाश को कहाँ छुपाया है केवल इतना कहा की यह राज मेरे पास ही रहने दो और यह राज  अब मेरे सीने में ही दफ़न होगा। क्योंकि जो बात या राज आप नहीं छुपा सकते है वह किसी और से शेयर करने के बाद छुपेगा इसका कोई कारण नहीं।
अजय सिंह "जे एस के "

Saturday, August 15, 2015

मेरी नागपुर तीर्थ यात्रा


नागपुर रेलवे स्टेशन के बाहर का दृश्य
 दोस्तों ,
आप शायद सोच रहे होंगे की नागपुर  में कौन सा तीर्थ है जिसकी यात्रा का वर्णन मैं करने जा रहा हूँ ,लेकिन संघ के स्वयं सेवक के लिए नागपुर जहाँ से संघ प्रारम्भ हुआ का महत्व निश्चित रूप से किसी तीर्थयात्रा से कम नहीं है। इसलिए जब देश के लिए एक बड़े अनुष्ठान की शुरुवात करने के लिए नागपुर का चुनाव हमारी टीम ने किया तो मैंने भी इसमें आहुति करने के लिए चार दिनों का प्रोग्राम बना लिया।  पूरी यात्रा तीर्थ यात्रा से भी ज्यादा सुखद रही। और जो परिणाम आये  वह भविष्य में मेरे जीवन को एक नई दिशा देंगे ऐसा मेरा विश्वास है। 

अजय सिंह, मा गौ मा बैद्य और श्री राम कृष्ण गोस्वामी
पहले दिन एक विचार गोष्ठी जो  विदर्भ          इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के द्वारा आयोजित की गयी थी में  बायो डाइवर्सिटी को बचाने के लिए प्रयासों की आवश्यकता ,गाव  ,गाय ,गौरी,गंगा ,(जी )पेड़ ,पानी ,पर्यावरण (पी ) के द्वारा सम्पन्नता ,समृद्धि ,स्वालम्बन (एस ) GPS मॉडल पर शुभ लाभ आधारित उद्यम पर चिन्तन किया गया। भगवत गीता में श्री कृष्ण के द्वारा दिया गया मार्ग दर्शन को जीवन में कैसे उतरे भी उपस्थित श्रोताओ के समक्ष रखा गया। शाम को वयो वृद्ध संघ के कार्यकर्ता माननीय गोविन्द माधव वैद्य जी से मिलने और मार्ग दर्शन का शुभ अवसर प्राप्त हुआ तो लगा की जैसे बहुत  दिनों की एक इच्छा की पूर्ति हुई। 


विनोबा के सहयोगी श्री बजाज एवं कमल टावरी
विनोबा की समाधी
अगला दिन बहुत शुभ था जब हम लोगो को गांधी , विनोबा की भूमि वर्धा जाने का अवसर प्राप्त हुआ।इस क्रम में हम लोग पहले विनोबा आश्रम  पहुंचे।  नदी के किनारे अत्यंत रमणीक स्थान में बना विनोबा  आश्रम बरबस मनमोहता है। विनोबा की कर्म भूमि पर बने आश्रम में अब ५०-५५ वर्षो से अधिक आयु की अनेक बहने रहती है जिन्होंने विनोबा के द्वारा शुरू की गयी श्रम के द्वारा स्वालम्बन की परम्परा की जिन्दा रखा है। आश्रम में पुस्तकालय है विनोबा के द्वारा लिखी किताबो की पुस्तकों की एक दुकान है आश्रम के बनते  समय जमीन से निकली मूर्तियों का मंदिर है।

विनोबा जी के द्वारा प्रेरित सर्वोदय कार्यकर्त्ता अभी भी उन्ही नियमो का पालन करते हुए देखे जा सकते है। एक बात जो चिंता की है वह यह की यह परम्परा अगले १०-२० सालो में खत्म हो जाने वाली है क्योंकि अब विनोबा के सिद्धांतो का अभ्यास करने नए लोग नहीं आ रहे है। समय के साथ बहुत कुछ बदलता है इसलीये शायद बापू और विनोबा भी अब भारत के लिए  अप्रासंगिक होते जा रहे है।

यहाँ से हमारा अगला पड़ाव था गांधी आश्रम। जहाँ गांधी जी ने अपने जीवन के कई वर्ष बिताये और जहां  गांधी ने  महात्मा  बनने के लिए आवश्यक अभ्यास किया। १९३६ में गांधी जी के द्वारा लगाया गया एक वृक्ष ,वह कुटिआ जहाँ गांधी जी अंतिम दिनों में रहा करते थे ,वहाँ आने वाले मेहमानों के लिए घर गांधी की याद को ताजा करती है।


                                        
गांधी जी द्वारा १९३६ में लगाया वृक्ष
     


डॉ अरबिंद झा को गीता देते हुये
 इसके बाद हमारा  अगला पड़ाव था महत्मा गांधी केंद्रीय हिंदी विश्व विद्यलाय के छात्रों के साथ "भगवत गीता और मानव संसाधन विकास " विषय पर चर्चा। प्रोफेसर एवं डीन श्री अरबिंद झा जी ने कृपा पूर्वक हम लोगो को इसका अवसर उपलब्ध करवाया। श्री राम कृष्णा गोस्वामी जी ने विषय पर अच्छी चर्चा की। एक बात जिसने निराश किया वोह यह थी की लगभग ६० विद्यार्थी एवं १० अध्यापक जो चर्चा में शामिल थे में से किसी ने भी गीता का अध्यन नहीं किया था।  यानि वर्धा की धरती पर बना गांधी के नाम बना विश्वविद्यालय में गीता की चर्चा नहीं होना इस बात की सँका पैदा करता है की कहीं हम भटक  तो नहीं रहे है।  गांधी और विनोबा दोनों महापुरषो ने गीता को अपना मार्गदर्शक ग्रन्थ माना है। गीता पर जो चर्चा वह की गयी उसका विवरण http://newhope2020.blogspot.in/   में किया गया है।

डॉ हेगेवार की समाधी स्थल
अगले दिन का कार्यक्रम नागपुर में था जिसमे माननीय श्री मोहन गोविन्द बैद्य जी मुख्य अतिथि थे और श्री राम कृष्णा गोस्वामी जी प्रमुख वक्ता। विषय था "भगवत गीता की शिक्षा में अनियवार्यता ". कार्यक्रम शाम साढ़े छै बजे होने वाला था अतः योजना यह बानी की मैं तथा श्रीमती शीला टावरी जो हमारी मेजबान भी थी तथा "भारतीय चरतिरा निर्माण संस्थान'" की प्रवक्ता भी हम लोग मा बैद्य जी को लेकर पहले "हेडगेवार भवन" दर्शन करनेजायेंगे ताकि देखने में आने वाली सुरक्षा सम्बन्धी कठनाई न आये। योजना अनुसार हम करीब पौने छै बजे वहां पहुंचे तो पता चला की मा. सरसंघ चालक मोहन भगवत जी वहाँ ठहरे है , मा। बैद्य जी के आग्रह पर मा। सरसंघ चालक जी ने ५ मिनट हम लोगो से मुलाकात की परिचय पूछा और आने के कारण  को जानने के बाद आशीर्वाद देकर विदा किया। भवन में स्थित आद्य सर संघ चालक की प्रदर्शनी जिसमे अपने सभी स्वर्गीय संघचालको के जीवन से सम्बंधित स्मृतियाँ सनजो कर रखी है देखने का अवसर प्राप्त हुआ। तत्पश्चात अपने कार्यक्रम के लिये प्रस्थान किया।
पूज्य गुरु जी का स्मृति
गुरु जी की स्मृति चिन्ह एवं डॉ हेडगेवार
आद्य संघ प्रचारको की स्मृति









प पूज्य डॉ हेडगेवार की समाधी
मोहते बाड़ा जहाँ संघ की पहली शाखा लगी
मा गो मो बैद्य के साथ हेडगेवार भवन में







    

"भगवत गीता की शिक्षा में अनियवार्यता ". कार्यक्रम भारतीय शिक्षण मंडल ने आयोजित किया था ,लगभग १०० लोगों ने इसमें भाग लिया तथा अध्यक्षता  मा. माँ गो बैद्य जी ने की। वहाँ पर चर्चा के बिन्दुओं का विस्तृत वर्णन   http://newhope2020.blogspot.in/   पर उपलब्ध है।

 अगले दिन हम लोगो ने अपने चार दिनों में हुये कार्यक्रमों की समीक्षा श्री कमल टावरी जो की नागपुर के सभी कार्यकर्मो को आयोजित करने एवं करवाने में मुख्य सूत्र धार थे के घर पर ही बैठ कर की तथा आगे की योजनाओं में नागपुर को केंद्र बना कर मा।  बैद्य जी के दिशा निर्देशन में काम किया जाये यह निर्णय लेकर वापस दिल्ली पहुचने के लिए प्रस्थान किया। और इस तरह चार दिनों के कार्यक्रम सफलता पूर्वक संपन्न कर नागपुर की तीर्थ यात्रा जिसमे अनायास ही भगवत कृपा से सर संघ चालक जी के दर्शन भी हुए की समाप्ति हुयी। 



                                                               अन्त में

जिंदगी का सफर मैंने कुछ यूँ आसान कर कर लिया 
कुछ से माफ़ी मांग ली और कुछ को माफ़ कर दिया 

अजय सिंह "जे एस के "