Saturday, August 15, 2015

मेरी नागपुर तीर्थ यात्रा


नागपुर रेलवे स्टेशन के बाहर का दृश्य
 दोस्तों ,
आप शायद सोच रहे होंगे की नागपुर  में कौन सा तीर्थ है जिसकी यात्रा का वर्णन मैं करने जा रहा हूँ ,लेकिन संघ के स्वयं सेवक के लिए नागपुर जहाँ से संघ प्रारम्भ हुआ का महत्व निश्चित रूप से किसी तीर्थयात्रा से कम नहीं है। इसलिए जब देश के लिए एक बड़े अनुष्ठान की शुरुवात करने के लिए नागपुर का चुनाव हमारी टीम ने किया तो मैंने भी इसमें आहुति करने के लिए चार दिनों का प्रोग्राम बना लिया।  पूरी यात्रा तीर्थ यात्रा से भी ज्यादा सुखद रही। और जो परिणाम आये  वह भविष्य में मेरे जीवन को एक नई दिशा देंगे ऐसा मेरा विश्वास है। 

अजय सिंह, मा गौ मा बैद्य और श्री राम कृष्ण गोस्वामी
पहले दिन एक विचार गोष्ठी जो  विदर्भ          इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के द्वारा आयोजित की गयी थी में  बायो डाइवर्सिटी को बचाने के लिए प्रयासों की आवश्यकता ,गाव  ,गाय ,गौरी,गंगा ,(जी )पेड़ ,पानी ,पर्यावरण (पी ) के द्वारा सम्पन्नता ,समृद्धि ,स्वालम्बन (एस ) GPS मॉडल पर शुभ लाभ आधारित उद्यम पर चिन्तन किया गया। भगवत गीता में श्री कृष्ण के द्वारा दिया गया मार्ग दर्शन को जीवन में कैसे उतरे भी उपस्थित श्रोताओ के समक्ष रखा गया। शाम को वयो वृद्ध संघ के कार्यकर्ता माननीय गोविन्द माधव वैद्य जी से मिलने और मार्ग दर्शन का शुभ अवसर प्राप्त हुआ तो लगा की जैसे बहुत  दिनों की एक इच्छा की पूर्ति हुई। 


विनोबा के सहयोगी श्री बजाज एवं कमल टावरी
विनोबा की समाधी
अगला दिन बहुत शुभ था जब हम लोगो को गांधी , विनोबा की भूमि वर्धा जाने का अवसर प्राप्त हुआ।इस क्रम में हम लोग पहले विनोबा आश्रम  पहुंचे।  नदी के किनारे अत्यंत रमणीक स्थान में बना विनोबा  आश्रम बरबस मनमोहता है। विनोबा की कर्म भूमि पर बने आश्रम में अब ५०-५५ वर्षो से अधिक आयु की अनेक बहने रहती है जिन्होंने विनोबा के द्वारा शुरू की गयी श्रम के द्वारा स्वालम्बन की परम्परा की जिन्दा रखा है। आश्रम में पुस्तकालय है विनोबा के द्वारा लिखी किताबो की पुस्तकों की एक दुकान है आश्रम के बनते  समय जमीन से निकली मूर्तियों का मंदिर है।

विनोबा जी के द्वारा प्रेरित सर्वोदय कार्यकर्त्ता अभी भी उन्ही नियमो का पालन करते हुए देखे जा सकते है। एक बात जो चिंता की है वह यह की यह परम्परा अगले १०-२० सालो में खत्म हो जाने वाली है क्योंकि अब विनोबा के सिद्धांतो का अभ्यास करने नए लोग नहीं आ रहे है। समय के साथ बहुत कुछ बदलता है इसलीये शायद बापू और विनोबा भी अब भारत के लिए  अप्रासंगिक होते जा रहे है।

यहाँ से हमारा अगला पड़ाव था गांधी आश्रम। जहाँ गांधी जी ने अपने जीवन के कई वर्ष बिताये और जहां  गांधी ने  महात्मा  बनने के लिए आवश्यक अभ्यास किया। १९३६ में गांधी जी के द्वारा लगाया गया एक वृक्ष ,वह कुटिआ जहाँ गांधी जी अंतिम दिनों में रहा करते थे ,वहाँ आने वाले मेहमानों के लिए घर गांधी की याद को ताजा करती है।


                                        
गांधी जी द्वारा १९३६ में लगाया वृक्ष
     


डॉ अरबिंद झा को गीता देते हुये
 इसके बाद हमारा  अगला पड़ाव था महत्मा गांधी केंद्रीय हिंदी विश्व विद्यलाय के छात्रों के साथ "भगवत गीता और मानव संसाधन विकास " विषय पर चर्चा। प्रोफेसर एवं डीन श्री अरबिंद झा जी ने कृपा पूर्वक हम लोगो को इसका अवसर उपलब्ध करवाया। श्री राम कृष्णा गोस्वामी जी ने विषय पर अच्छी चर्चा की। एक बात जिसने निराश किया वोह यह थी की लगभग ६० विद्यार्थी एवं १० अध्यापक जो चर्चा में शामिल थे में से किसी ने भी गीता का अध्यन नहीं किया था।  यानि वर्धा की धरती पर बना गांधी के नाम बना विश्वविद्यालय में गीता की चर्चा नहीं होना इस बात की सँका पैदा करता है की कहीं हम भटक  तो नहीं रहे है।  गांधी और विनोबा दोनों महापुरषो ने गीता को अपना मार्गदर्शक ग्रन्थ माना है। गीता पर जो चर्चा वह की गयी उसका विवरण http://newhope2020.blogspot.in/   में किया गया है।

डॉ हेगेवार की समाधी स्थल
अगले दिन का कार्यक्रम नागपुर में था जिसमे माननीय श्री मोहन गोविन्द बैद्य जी मुख्य अतिथि थे और श्री राम कृष्णा गोस्वामी जी प्रमुख वक्ता। विषय था "भगवत गीता की शिक्षा में अनियवार्यता ". कार्यक्रम शाम साढ़े छै बजे होने वाला था अतः योजना यह बानी की मैं तथा श्रीमती शीला टावरी जो हमारी मेजबान भी थी तथा "भारतीय चरतिरा निर्माण संस्थान'" की प्रवक्ता भी हम लोग मा बैद्य जी को लेकर पहले "हेडगेवार भवन" दर्शन करनेजायेंगे ताकि देखने में आने वाली सुरक्षा सम्बन्धी कठनाई न आये। योजना अनुसार हम करीब पौने छै बजे वहां पहुंचे तो पता चला की मा. सरसंघ चालक मोहन भगवत जी वहाँ ठहरे है , मा। बैद्य जी के आग्रह पर मा। सरसंघ चालक जी ने ५ मिनट हम लोगो से मुलाकात की परिचय पूछा और आने के कारण  को जानने के बाद आशीर्वाद देकर विदा किया। भवन में स्थित आद्य सर संघ चालक की प्रदर्शनी जिसमे अपने सभी स्वर्गीय संघचालको के जीवन से सम्बंधित स्मृतियाँ सनजो कर रखी है देखने का अवसर प्राप्त हुआ। तत्पश्चात अपने कार्यक्रम के लिये प्रस्थान किया।
पूज्य गुरु जी का स्मृति
गुरु जी की स्मृति चिन्ह एवं डॉ हेडगेवार
आद्य संघ प्रचारको की स्मृति









प पूज्य डॉ हेडगेवार की समाधी
मोहते बाड़ा जहाँ संघ की पहली शाखा लगी
मा गो मो बैद्य के साथ हेडगेवार भवन में







    

"भगवत गीता की शिक्षा में अनियवार्यता ". कार्यक्रम भारतीय शिक्षण मंडल ने आयोजित किया था ,लगभग १०० लोगों ने इसमें भाग लिया तथा अध्यक्षता  मा. माँ गो बैद्य जी ने की। वहाँ पर चर्चा के बिन्दुओं का विस्तृत वर्णन   http://newhope2020.blogspot.in/   पर उपलब्ध है।

 अगले दिन हम लोगो ने अपने चार दिनों में हुये कार्यक्रमों की समीक्षा श्री कमल टावरी जो की नागपुर के सभी कार्यकर्मो को आयोजित करने एवं करवाने में मुख्य सूत्र धार थे के घर पर ही बैठ कर की तथा आगे की योजनाओं में नागपुर को केंद्र बना कर मा।  बैद्य जी के दिशा निर्देशन में काम किया जाये यह निर्णय लेकर वापस दिल्ली पहुचने के लिए प्रस्थान किया। और इस तरह चार दिनों के कार्यक्रम सफलता पूर्वक संपन्न कर नागपुर की तीर्थ यात्रा जिसमे अनायास ही भगवत कृपा से सर संघ चालक जी के दर्शन भी हुए की समाप्ति हुयी। 



                                                               अन्त में

जिंदगी का सफर मैंने कुछ यूँ आसान कर कर लिया 
कुछ से माफ़ी मांग ली और कुछ को माफ़ कर दिया 

अजय सिंह "जे एस के " 














No comments: