Sunday, August 23, 2015

दृश्यम फिल्म से मिली शिक्षा

दोस्तों,
कल काफी दिनों के बाद एक बढ़िया पारिवारिक फिल्म दृश्यम देखने का मौका मिला। कुल मिला कर फिल्म अच्छी बनी है ,सभी कलाकारों ने ठीक -ठाक काम किया। परिवार के साथ बैठ कर देखने योग्य फिल्म है। लेकिन यह फिल्म केवल मनोरंजन ही नहीं करती है बल्कि कुछ शिक्षा भी देती है। हालाँकि समय समय दूसरी फिल्में जैसे थ्री इडियट्स  या चक दे इंडिया इत्यादि में भी मनोरंजन और शिक्षा का अच्छा गठ जोड़ था  तो भी इस फिल्म का सन्देश विशेष है जिसका उल्लेख मैं कर रहा हूँ :

१. पहला सन्देश यह की सामान्यतया हम लोग समाज में कानून के शासन की बात करते है और अपेक्षा भी, कि कानून के हिसाब से अपराधी को सजा मिले।  परन्तु यह भूल जाते है  की कानून सबूतों के हिसाब से न्याय की व्यस्था करता है और कानून अँधा भी होता है जिसमे अपराधी के छूटने और निरपराधी को सजा मिलने की भी सम्भावना बनी रहती है। यहाँ भगवत गीता में श्री कृष्णा के द्वारा दिया गया सूत्र  
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृतं ।
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ।। श्लोक ८ 
में स्पष्ट कहा है की स्थापना धर्म की होनी है और इसके लिए भगवन कहते है की साधुओ की रक्षा और दुष्टो का विनाश करके धर्म की सस्थापना के लिए हर युग में जन्म लेता हूँ। तो स्थापना करनी है धर्म की जिसमे कानून सहायक होगा अर्थात कानून का पालन करते हुए अन्ततोगत्या धर्म की स्थापना लक्ष्य है। 
यही दृश्यम फिल्म सन्देश दे रही है जिसमे नायक की बेटी अंजू अपने  साथ हुए दुर्व्यहार के कारण  सैम देशमुख  जो की पुलिस कमिश्नर का बेटा है, की हत्या  कर देती है और फिल्म का नायक विजय अपने पूरे  परिवार को इस घटना के आरोप से बचाने में सफल हो जाता है।  इस तरह हुयी हत्या के लिये कानून की निगाह में तो निश्चित रूप से अंजू ही गुनहगार है किन्तु उसने  यह हत्या अपनी रक्षा के लिए की थी।  हत्या रक्षा करने की प्रक्रिया में हुई इसका न तो इरादा था और न भाव। इसलिए कानून की निगाह में अंजू और उसको बचाने के अपराध में सारा परिवार कानून की  निगाह  में गुनहगार हो जाता जबकि नायक ने अपनी सुबुद्धि का प्रयोग कर योजना बद्ध तरीके से अपने परिवार की रक्षा कर धर्म का पालन किया।
 २. दूसरा सन्देश फिल्म यह दे रही है की हम सुनी हुयी घटनाओँ को आसानी से भूल जाते है जबकि देखी हुई घटनाएँ आपके दिमाग  खास तौर  पर सब कांसस माइंड पर गहरा असर डालती है जिसे आसानी से भूलना संभव नहीं है।  अतः जिन चीजो को आप लेम समय याद रखना चाहे उन्हें दृश्य के रूप में आसानी से याद रखा जा सकता है। यह विधि खास तौर पर विद्यार्थियों के लिये लाभदायक है। लेकिन इस विधि का प्रयोग करने के लिए अभ्यास की आवश्यकता होती है किन्तु एक बार अभ्यास हो जाने पर प्रयोग आसान भी है और प्रभावी भी। 
३. तीसरा सन्देश जो फिल्म देती है वह यह की अचानक आई किसी  भी समस्या का समाधान शांत और निश्छल मन से प्रयास करके निकाला जा सकता है यदि आप अपना संतुलन न खोये। यह भी अभ्यास से सीखा जा सकता है की अपने मन को अकम्प अर्थात किसी भी घटना में मन के हिले बिना कैसे घटना का सफल प्रबंधन किया जाये।  
४. फिल्म से मिली चौथी शिक्षा भी काम महत्व पूर्ण नहीं है।  यह है की बुद्धिमान होना और साक्षर होना दो अलग अलग चीजे है।  कोई जरुरी नहीं की यदि आदमी साक्षर नहीं हो तो बुद्धिमान भी न हो। जैसा की फिल्म के नायक के साथ होता है जो चौथी पास है लेकिन बुद्धिमान इतना की पूरे पुलिस महकमे को पता ही नहीं चला की किस सफाई के साथ नायक ने योजना बद्ध तरीके से कानून के दायरे में ऐसा ताना -बाना बन दिया की सब सैम की माँ जो सूबे की सबसे बड़ी पोलिस ऑफिसर इंस्पेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस होने के बावजूद नायक और उसके परिवार का बाल भी बांका नहीं कर सकी। 
५.   पांचवी शिक्षा केवल इतनी की नायक ने इतना सबकुछ सफलता पूर्वक करने के बाद भी अपनी सरलता और सहजता को अंत तक खतम नहीं होने दिया। यह सब नायक स्वाभाविक रूप से इसलिए कर पाया की उसका प्रयोजन केवल परिवार की सुरक्षा तक ही सीमित रहा। किसी भी मौके पर नायक ने अपने मनोभावों में कोई परिवर्तन अथवा लेश मात्र भी अहंकार नहीं  आने दिया और अपने लक्ष्य को प्राप्त किया।  
६ . एक और बात जो मुझे सिद्धांत रूप में बहुत अच्छी लगी की यदि आप कोई भेद सुरक्षित रखना चाहते है तो उसे किसी के साथ भी शेयर न करे और हर हल में इस नियम का पालन कड़ाई के साथ करे चाहे वोह अपनी पत्नी के साथ ही क्यों न हो ,जैसा फिल्म के नायक ने सैम की लाश को ठिकाने लगाने के स्थान के बारे में किया।  पत्नी अंजू के यह पूछने पर की उसने लाश को कहाँ छुपाया है केवल इतना कहा की यह राज मेरे पास ही रहने दो और यह राज  अब मेरे सीने में ही दफ़न होगा। क्योंकि जो बात या राज आप नहीं छुपा सकते है वह किसी और से शेयर करने के बाद छुपेगा इसका कोई कारण नहीं।
अजय सिंह "जे एस के "

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