Sunday, October 9, 2016

सर्जीकल स्ट्राइक



जो नाम तुम्हारा देखा तो अरविंद कमल के मानी है,
पर कीचड भरा नजरिया है,फितरत बिल्कुल शैतानी है,


है बहुत तरस आता मुझको,दिल्ली वालों के जनमत पर,
ये कैसा मुखिया सौंप दिया,जो थूंक रहा है भारत पर,

जब से दिल्ली पर बैठा है,केवल बवाल का पोषक है,
हमले के मांग सबूत रहा,पाकिस्तानी उद्धघोषक है,                                           

 
सेना पर करते हो सवाल,सम्बल को देते झटके हो,
हाफ़िज़ सईद के पैजामे का नाड़ा बनके लटके हो,

सेना का अफसर बोल चुका,सरकार घोषणा कर बैठी,
पर बुद्धि तुम्हारी क्यों ऐसे मौके पर आखिर मर बैठी,
                                                                                                             
माना मोदी से नफरत है,पर सेना से क्या बैर तुम्हे?
आतंकी सगे नज़र आते,फौजी लगते क्यों गैर तुम्हे?

तुम नेता हो या भोंदू हो,ये प्रश्न बहुत उलझाते हैं,
दिल्ली वालों ने चुना तुम्हे,हम शर्म किये मर जाते हैं,

खुद अब तक बता नही पाये,कैसे राशन के पत्र बने,
कैसे सीडी के दृश्य रचे,कैसे मंत्री छल छत्र बने,

किसने तुमको अधिकार दिया,तुम सेनाओं से प्रश्न करो,
सेना सरहद पर मिट जाए,तुम विज्ञापन का जश्न करो,

तुम वोट ढूँढ़ते हो अपना,अब आतंकी आघातों में,
अरविन्द!हमें अब आती है दुर्गन्ध तुम्हारी बातों में,

तुम चाह रहे,सेनाओं का हर प्लान उजागर हो जाए,
जो जो प्रयोग में लाया था,सामान उजागर हो जाए,

तुम चाह रहे,जो गुप्त रहा,अभियान उजागर हो जाए,
हम कैसे बदला लेते हैं,अरमान उजागर हो जाए,

तुम वही सबूत मांगते हो,जो पाकिस्तानी मांग रहे,
वो भी सीमाएँ लाँघ रहा,तुम भी सीमायें लांघ रहे,

आये हैं जबसे "पाक" वचन,अरविन्द तुम्हारे होंठो पर,
कजरी ने मानो नाच दिया हो,पेशावर के कोठों पर,

लो मान लिया अरविन्द,तुम्हे हम सब सबूत दिखलाएंगे,
गर हुआ पुनः स्ट्राइक तो तुमको लड़ने भिजवाएंगे,

ये कवि गौरव चौहान कहे,सारे सबूत मिल जाएंगे,
दो चार धमाके सुनकर ही दोनों गुर्दे छिल जाएंगे

गोली निकलेगी कानो से,तब अम्मा याद करोगे तुम,
रख लो सबूत,घर जाने दो,रोकर फरियाद करोगे तुम,

इन नेताओं की शुद्धी को,गंगाजल बहुत ज़रूरी है,
दुश्मन से पहले इनका ही सर्जीकल बहुत जरूरी है,
-----कवि गौरव चौहान(कृपया मूलरूप में ही शेयर करें,कटिंग एडिटिंग,पेस्टिंग बिल्कुल न करें)

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