Sunday, August 5, 2012

वी दा पीपुल ऑफ़ इंडिया

प्रिय मित्रो ,
पिछले लगभग एक वर्ष से चलाये जा रहे अन्ना आन्दोलन का पटाक्षेप इस तरह से होगा ऐसा किसी ने सोचा  भी ना था. अन्ना आन्दोलन जो एक पवित्र जन आदोलन के रूप में जन मानस को उद्वेलीत करने में सफल रहा था,अब अपनी धार खो कर टीम अन्ना के लोगो की अति महत्वाकांछा का शिकार हो गया है.एक आन्दोलन जिसने पिछले साल सरकार को धर्म संकट में डाला, और एक बार तो ऐसा लगा की सरकार के ऊपर जनमानस का दबाव बन ने लगा है ,धीरे -धीरे आन्दोलन सरकार की राजनीत में उलझ गया और वही नेता लोग जो अभी तक यह कह कर आन्दोलनकारियों को उकसा रहे थे की पहले चुनाव लड़ो और फिर बात करो अन्ना के पार्टी बनाने की घोषणा से बहुत खुश हो गए क्यों की उनके उकसाने से अन्ना के आन्दोलनकारी खेल का मैदान बदलने को तैयार  हो गए. इन नेताओ  को पता है की जन आन्दोलन से वह  जीत नहीं सकते और चुनावी राजनीत में इनसे कौन जीतेगा.

ऐसा नहीं है की यह पहली बार हुआ है ,संघ के संस्थापक डा.हेडगेवार और सर संघ चालक प.पु.गुरु जी को भी संघ के संगठन की ताकत को देखते हुए इस जाल में फसाने की अनेक कोशिशे तत्कालीन कांग्रेस जनों ने की.लेकिन डा.हेडगेवार और गुरु जी की इस विषय पर   स्पष्ट दृष्टि और सोंच ने इसको राजनीत से दूर रख  संघ केवल समाज निर्माण का कार्य  करेगा ऐसा दिशा निर्देश दिया और ना तो खुद और ना ही  अपनी टीम के लोगो को राजनैतिक महत्वाकांछा का शिकार होने दिया. बाद में राजनीत में नैतिकता के नए-नए आयाम रचने हेतु अपने जीवन समर्पित कार्य कर्ता प.दीनदयाल उपाध्याय और नानाजी देशमुख जैसे लोगो को राजनीत में जाने का निर्देश दिया और अपने लिए चुनी हुई  राष्ट्र निर्माण की भूमिका को महत्वपूर्ण लक्ष्य मान पिछले  ८५ से अधिक वर्षो से इस दिशा में कार्य शील है. आश्चर्य, की टीम अन्ना ने इतिहास से कोई सीख नहीं ली इसलिए  शायद ही इन्हें कोई सम्मान जनक स्थान इतिहास में मिलेगा.और इस गलती के लिए वी दा पीपुल  ऑफ़ इंडिया शायद ही इन्हें  माफ़ करे .जिन्होंने जाने-अनजाने आम आदमी को आशा तो दिलाई लेकिन उसपर खरे नहीं उतर सके.       

१५ अगस्त १९३६ को छठे ओलम्पिक का  स्वर्ण मेडल जीत कर  भारतीय हाकी टीम ने बर्लिन में इतिहास रचा था. वहीँ  उसी दिन एक और इतिहास रचा टीम के  कैप्टन ध्यान चन्द ने.जिन्होंने जर्मनी के चांसलर हिटलर जो हाकी  का  मैच देखने आये थे और  जर्मन टीम पर  भारतीय द्वारा किये   गए  ८ गोलों में से ६ गोल  को दागने वाले कप्तान  ध्यान चन्द से प्रभावित हो कर उन्हें जर्मनी में रहने का निमंत्रण दिया.लेकिन  ध्यान चंद  ने बिना किसी द्विधा में पड़े   बड़ी विनम्रता के साथ हिटलर के निमंत्रण को  अश्वीकार कर इतिहास बना दिया. भारतीय हाकी तब से इतिहास ही   बना रही है  ओलम्पिक में मेडल न जीत कर. मगर  भारत सरकार ने भारतीय हाकी का सबसे   सुनहरा इतिहास लिख दिया है आप यदि आश्चर्य में पड़ गए हो तो आप को बता दे की अभी तक भारत का राष्ट्रीय खेल दर्जा प्राप्त हाकी  को भारत सरकार ने ऐसे किसी दर्जे से साफ़ मना कर दिया है.और यह  पता चला   आर.टी.आइ . के तहत पूछे गए एक सवाल के जवाब में. पूरा समाचार पढने के लए यहाँ क्लिक करे .  

मैं तो कहता हूँ की सरकार की इस काम के लिए जितनी भी तारीफ़ की जाये कम है. आखिर जब हम पदक जीत नहीं सकते तो खेल में मिल रही  राष्ट्रीय शर्म को तो ख़त्म कर ही सकते है हाकी को राष्ट्रीय खेल श्रेणी से हटाकर  .ऐसा इतिहास पहली बार नहीं लिखा गया है. करीब दो वर्ष पहले दायर   एक जन  हित याचिका के जवाब में सरकार ने बताया था की हिंदी भारत की राष्ट्र भाषा नही है. पूरा समाचार पढने के लिए यहाँ क्लिक,करे.ये तो भला हो सूचना के अधिकार कानून और जन हित याचिका का जिसने हिंदुस्तान की जनता की आखें खोल दी नहीं तो हम इस ज्ञान के भरोसे ही अपने को ज्ञानी समझते रहते.साथ  ही सरकार को   एक सुझाव  भी है की भ्रष्टाचार को राष्ट्रीय खेल और गाली -गलोज को राष्ट्रीय भाषा बनाये जाने पर विचार कर जल्द से जल्द घोषित  किया जाना चाहिए. केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश जब  पर्यावरण मंत्रालय में थे तो उन्होंने आशा व्यक्त की थी भारत भ्रष्टाचार के खेल में गोल्ड का प्रबल दावेदार होगा ,पता नहीं की   सरकार अपने मंत्रियो की क्यों नहीं सुनती.

भारत सरकार ने एक और इतिहास लिखा  एक नाकामयाब  वित्त मंत्री लेकिन कांग्रेस पार्टी के परम  वफादार  प्रणव दादा को भारत का  महामहिम यानि राष्ट्रपति बना कर. लेकिन इतना काफी नहीं था तो नाकामयाब बिजली मंत्री को गृह मंत्रालय देकर एक और इतिहास लिख दिया.राजनीत में अब आगे बढ़ने के लिए अपने काम में कुशल होने से ज्यादा वफादार होना आवश्यक हो गया है.और यदि आप कांग्रेस की राजनीत  में है तो केवल गाँधी परिवार का वफादार होने का पुरष्कार  क्या होगा  यह आपकी वफ़ादारी के वर्षो से तय होगा ना की क़ाबलियत से.प्रणव दा के राष्ट्रपति बनने पर २१ तोप की सलामी और.गृह मंत्री शिंदे का ४ बम धमाको द्वरा पुणे में आतंक वादियो द्वारा स्वागत भी तो इतिहास ही है.



और  अंत में 


 सोंच को बदलो, सितारे बदल जायेंगे 
नजर को बदलो  तो, नज़ारे  बदल जायेंगे 
मंजिले पाना हो तो ,किशतिया मत बदलना
दिशा को बदलो किनारे बदल जायेंगें 

अजय सिंह"एकल" 
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3 comments:

PAWAN said...

very nice !!

Sunil said...

Awesome!! Reality Revealed!!!

Unknown said...

When you see the things happening around you there is a general feeling of absolute non seriousness. Everything appears to ba a farce irrespective of Annaji, RSS, any of the political parties or for that even judicial activities.

Everything requires court directives to be initiated and even then too it is only with efforts to subvert the process by one upmanship to circumvent the law of the land. How hopless even the judges would feel once they find themselves blocked by their limitation to implement only the old outdated laws which have been preserved to circumvent the exposure of the babus.

Public has been seen to also side with the "chalta hai syndrome" and the voice of We the People ofIndia is just a feeble whining of the under nourished malnutrated weakling,it is lost against the blaring speakers of the idiot box which is manipulated by the compulsions of the TRP ratings and common business compulsions.

To end "THE SPIRIT IS WILLING BUT THE FLESH IS WEAK". The pain is to the flesh but injury to the spirit is not be seen and is nurtured within.