Sunday, August 30, 2015

शीना हत्या कांड :एक अदृश्य राष्ट्रीय समस्या

दोस्तों,

पिछले चार-पांच दिनों से शीना हत्या कांड अख़बार और टेलेविज़न के माध्यम से देश में जन -जन की जुबान पर है। हर कोई इस हत्या कांड के भेद जल्दी से जल्दी समझ कर मानो किसी प्रतियोगता का इनाम जीत कर देश के इतिहास में अपनी जगह बना लेना चाहता है। फेस बुक और व्हाट्स अप भी इस प्रतियोगिता में बाजी मार लेना चाहते है। लोग तरह -तरह के अनुमान लगा कर एक दूसरे से चर्चा कर सभी सम्भावनो पर विचार कर लेना चाहते है और केस है की इसमें रोज  नई -नई कड़ियाँ जुड़ती चली जा रही है और केस की सही व्याख्या हो पाने के बजाय उलझता जा रहा है।


इस हत्या कांड के समाचार ने "हार्दिक पटेल के गुजरात आंदोलन " को जनता की निगाहो से ओझल कर दिया है। यहाँ तक की देश की जनता को में १९६५ के हिंदुस्तान -पाकिस्तान के युद्ध के इतिहास को जानने से भी महरूम कर दिया है। क्योंकी टीवी और अखबारों में आने वाले समाचारों की दिशा बदली हुई है। इस बात को देश के रक्षा मंत्री ने एक बयान देकर स्वीकार किया है। और इस तरह हम भारत वासिओं ने अपने गौरवशाली  इतिहास को जानने और समझने का एक अद्भुत अवसर खो दिया है। 

इस केस में तो शायद अभी कुछ और दिन रहस्य खुलते रहेंगे फिर मुजरिमो पर लोअर कोर्ट , हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक मुकदमा चलेगा और फिर रेअर ऑफ थे रेयरेस्ट केस मान कर अपराधियो को देश  के कानून के हिसाब से फांसी की सजा भी हो जाये, किन्तु इस घटना ने जो देश में रह रहे परिवारों के मन पर माँ जो केवल एक शब्द नहीं असीम सम्मान का सूचक है जिसके प्यार और बलिदान के किस्से कहानिया सुन सुन कर हम बड़े हुए है उसका क्या परिणाम हमारे परिवारोँ और रिस्तो पर पड़ सकता है इसकी कल्पना करना भी मुश्किल काम है। समाज में हुये इस नुकसान का ऑकलन मनोवैज्ञानिकों और सोशल इंजीनयरिंग समझने वाले लोगो को शीघ्र करना चाहिये तथा परिवारिक  रिश्तों में पैदा हुए अविश्वाश को कैसे पुनः स्थापित किया जाये इस प्रश्न का उत्तर भी देना चाहिए ताकि इस  नुकसान की भरपाई शीघ्र हो सके।  

मेरी उपरोक्त व्याख्या कुछ लोगो को शायद कुछ अव्यहारिक लगे  किन्तु कच्चे दिमाग के नौनिहाल जिन्हे अभी दुनियादारी की समझ मिलनी शुरू ही हुई है जब वह अपने पिता या माता से यह प्रश्न पूछता है की इद्राणी ने अपनी बेटी का क़त्ल क्यों किया तो इसका सही जवाब शायद ही कोई देना चाहेगा और फिर जब बाल मन यह पूछता है की आप तो हमें नहीं मारोगे तो फिर अपने प्यार का विश्वास दिलाना थोड़ा मुश्किल तो होगा। यदि आप सोचते है की दस पांच दिनों में बच्चों के मन से यह भय और अविश्वास निकल जायेगा तो मेरा विश्वास है की केस में जैसे-जैसे  आगे बढ़ेगा तो मिडिया अपना कर्त्तव्य समझ कर पुरे केस को री  कैप करेगा फिर लोअर कोर्ट ने क्या निर्णय दिया उस पर जनता की क्या प्रतिक्रिया है और विशेषज्ञों से पूछेगा की अब आगे क्या होगा और इस तरह  आज तीन साल का बच्चा २५ साल का होते -होते कम १०-१५ बार अलग अलग कारणों से देखेगा। 

क्या ऐसा नहीं हो सकता की आम जनता के लिए सहज मीडिया में इस तरह के विस्तृति वर्णन के साथ प्रसारण पर नियंत्रण किया जाये। जब तक स्वत: नियंत्रण की स्तिथि न बन जाये। इस पर भी कुछ लोग मीडिया की आजादी का सवाल उठा सकते है ,लेकिन प्रश्न यह है की क्या हमें अपनी सारी व्यस्थाएँ बाजार के हवाले कर के केवल वाद विवाद करके काम चलाना चाहिए या अपने बुरे भले का ध्यान कर के आने वाली पीढ़ी के संस्कारो के लिए वातावरण तैयार करना चाहिये। यह हमने यदि अभी नहीं किया तो शायद बात हाथ  निकल जाएगी और फिर पछताने के शिव कुछ भी हाथ  नहीं लगेगा। 

 

अजय सिंह "जे एस के"








3 comments:

Ajay Singh Ekal said...

You are very true. It was out of all proportions. it throws poor light on the status of our media - so called intellectual class.
By BHIKU VYAS
Bhikhu Vyas

Ajay Singh Ekal said...

अदभुत, पर उम्मीद ही नहीं बल्कि विश्वास है कि मीडिया या सरकार की कान में जूँ भी नहीं रे
Arun Khemka

Ajay Singh Ekal said...

Ajay ji:

I totally agree with your analysis. Degradation of value system, aim at profit and inability to focus at ethical journalism- and you see this garbage at TV and print channels.
Please have a look at NewsGram and do input. We are building it as India's truly public funded nonprofit media organization.
www.NewsGram.com
With warm regards,



Munish K Raizada, MD, FAAP
Board Certified Neonatologist
Chicago, USA
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