Thursday, November 26, 2015

आमिर खान के बयान पर भावना व्यक्त करती दो भाव पूर्ण कवितायेँ


दोस्तों ,
अभिनेता आमिर खान के हालिया बयान पर भारतीयों के मन की भावना व्यक्त करती दो भाव पूर्ण कवितायेँ।  यह कवितायेँ मुझे व्हाटस अप पर प्राप्त हुई है।


 
शाहरुख़ का मुँह बन्द हुआ था फिर से आमिर बोल गया ।
भारत माँ के शीतल चन्दन पर वो अपना विष घोल गया ।।
सत्यमेव के नायक का जब कर्म घिनौना होता है ।
इन पर लिखने से कवीता का स्तर भी बौना होता है ।।


पर तटस्थ रहना कब सीखा दिनकर की संतानों ने ।
भारत का ठेका ले रखा है बॉलीवुड के इन दो खानों ने ।।


श्री राम की पावन भूमि पर जिनको डर लगता है ।

पाक सीरिया यमन क्या इन्हें मनमानस का घर लगता है ।।

इनसे कह दो भारत में खुशहाल मवेशी भी रहते हैं ।
कश्मीरी पण्डित से ज्यादा बंग्लादेशी रहते हैं ।।


बचपन में खेले जिस पर उस माटी से मतभेद किया ।
जिस थाली में खाया आमिर तुमने उसमे छेद किया ।।


भारत ही बस मौन रहा है शिव जी के अपमान में ।
पी के जैसी फ़िल्म बनाते यदि जो पाकिस्तान में ।।


जीवन रक्षा की खातिर हाफिज को मना रहे होते ।
अभिनेता न बन पाते बस काम के लिए रो रहे होते ।।


जितना भारत से पाया अब देते  हुए लगान चलो ।
बोरिया बिस्तर बाँधो आमिरजल्दी तुम पाकिस्तान चलो ।।


अभिनेता आमीर खान के बढ़ती 'असहिष्णुता' के बयान पर जयपुर
के कवि अब्दुल गफ्फार की ताजा रचना

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"तूने कहा,सुना हमने अब मन टटोलकर सुन ले तू,
सुन  ओ आमीर  खान,अब कान खोलकर सुन ले तू,"
तुमको शायद इस हरकत पे शरम नहीं आने की,
तुमने हिम्मत कैसे की जोखिम में हमें बताने की ।।

शस्य श्यामला इस धरती के जैसा जग में और नहीं
भारत माता की गोदी से प्यारा कोई ठौर नहीं
घर से बाहर जरा निकल के अकल खुजाकर पूछो
हम कितने हैं यहां सुरक्षित, हम से आकर पूछो ।।

पूछो हमसे गैर मुल्क में मुस्लिम कैसे जीते हैं
पाक, सीरिया, फिलस्तीन में खूं के आंसू पीते हैं
लेबनान, टर्की,इराक में भीषण हाहाकार हुए
अल बगदादी के हाथों मस्जिद में नर संहार हुए।।

इजरायल की गली गली में मुस्लिम मारा जाता है
अफगानी सडकों पर जिंदा शीश उतारा जाता है
यही सिर्फ वह देश जहां सिर गौरव से तन जाता है
यही मुल्क है जहां मुसलमान राष्ट्रपति बन जाता है ।।

इसकी आजादी की खातिर हम भी सबकुछ भूले थे
हम ही अशफाकुल्ला बन फांसी के फंदे झूले थे
हमने ही अंग्रेजों की लाशों से धरा पटा दी थी
खान अजीमुल्ला बन लंदन को धूल चटा दी थी।।

ब्रिगेडियर उस्मान अली इक शोला थे,अंगारे थे
उस सिर्फ अकेले ने सौ पाकिस्तानी मारे थे
हवलदार अब्दुल हमीद बेखौफ रहे आघातों से
जान गई पर नहीं छूटने दिया तिरंगा हाथों से ।।

करगिल में भी हमने बनकर हनीफ हुंकारा था
वहाँ मुसर्रफ के चूहों को खेंच खेंच के मारा था
मिटे मगर मरते दम तक हम में जिंदा ईमान रहा
होठों पे कलमा रसूल का दिल में हिंदुस्तान रहा ।।

इसीलिए कहता हूँ तुझसे,यूँ भड़काना बंद करो
जाकर अपनी फिल्में कर लो हमें लडाना बंद करो
बंद करो नफरत की स्याही से लिक्खी पर्चेबाजी
बंद करो इस हंगामें को, बंद करो ये लफ्फाजी ।।

यहां सभी को राष्ट्र वाद के धारे में बहना होगा
भारत में भारत माता का बनकर ही रहना होगा
भारत माता की बोली भाषा से जिनको प्यार नहीं
उनको भारत में रहने का कोई भी अधिकार नहीं" ।।
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---"कवि अब्दुल गफ्फार(जयपुर) की ताजा रचना"



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