Sunday, June 5, 2016

मथुरा का दर्द


 दोस्तों ,
जय गुरुदेव के कथित शिष्य राम वृक्ष यादव ने पिछले दो वर्षो से ज्यादा समय तक मथुरा के २८० एकड़ में फैले जवाहर मैदान में अपने अंध अनुनाईयो के साथ डेरा दाल रखा था। राम वृक्ष यादव के अनुनायी किस लालच और भ्र्म में थे उन्हें कैसे बरगलाया गया यह जाँच का विषय है। लेकिन उससे भी बड़ी बात यह की मथुरा एक अंतर्राष्टीय ख्याति प्राप्त तीर्थ एवं पर्यटक स्थल है वहां पुलिस प्रशासन की नाक के नीचे लम्बे समय तकबिना प्रशासनिक इजाजत के इतने लोगो का गैरकानूनी ढंग से सरकारी सम्पत्ति पर कब्ज़ा करके बैठना बिना राजनीतिज्ञों की मिली भगत के संभव ही नहीं है। राजनैतिक कारणों से  भाजपा के लोग इसे प्रदेश की सरकार की असफलता बता सकते है ,हो सकता है की क़ानूनी रूप से या संवैधानिक रूप से यह सही भी हो तो भी केंद्र सरकार और खास तोर पर गृह मंत्रालय को यह समाचार नहीं मिला हो ऐसा असम्भव है। इस जगह से करीब बीस किलोमीटर दूर फरह नाम की जगह है जो जनसंघ के पूर्व अध्यक्ष पंडित दीनदयाल जी की जन्म स्थली है।  पंडित जी के जन्म दिन २५ सितम्बर २०१४ में प्रधान मंत्री जी और २०१५ गृह मंत्री जी का कार्यक्रम हुआ था। इन लोगो की सुरक्षा की दृस्टि से पूरे  इलाके की जाँच और उपयुक्त व्यस्था केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है  अतः केंद्र भी अपनी नाकामी से पीछे है नहीं सकता। 

इस घटना की समुचित जाँच सभी तरह की मिलीभगत को सामने लायेगी। किन कारणों से बिना तैयारी पुलिस दल वहाँ कार्यवाही को  वहाँ पहुँचा जिसमे शहर के एस पी और एक इंस्पेक्टर की जान भी चली गयी। यह भी किसी साजिश की तरफ इशारा कर रहा है। स्थानीय सांसद हेमा मालनी को वहाँ जाने से किन कारणों से रोका  गया यह भी जाँच करके सामने लाया जाना चाहिये। 

इस घटना पर जनता की भावनाओं को व्यक्त  करती इटावा के श्री गौरव चौहान की एक कविता व्हाटस अप पर प्राप्त हुई है जिसमे इन बातों  को बहुत अच्छी तरह बताया गया है।

मैं मथुरा नगरी हूँ,घायल हूँ सत्ता की चोटों से,
कैसे कहूँ वेदना अपनी इन झुलसाये होठों से,
मैं तो प्रेम रंग में डूबी मदमस्तों की नगरी थी,
होली के रंगों में छायी प्रेम सुधा की बदरी थी,
वंशीवट पर बजी बांसुरी,मैं खुल कर इठलाई थी,
मैं कान्हा के बाल रूप पर मंद मंद मुस्काई थी,
मैं मीरा का प्रेम ग्रन्थ थी,सूर दास की स्याही थी,
वासुदेव की लीलाओं की पावन एक गवाही थी,
मैं यमुना के निर्मल तट पर ग्वालों के संग झूमी थी,
गोवर्धन से वृन्दावन तक कृष्णप्रेम मे घूमी थी,
लेकिन आज बहुत घायल हूँ,ह्रदय कष्ट में रोया है,
कांधों पर अपने मैंने चौबिस लाशों को ढोया है,
लुटी पिटी हूँ,पूछ रही हूँ लखनऊ के सरपंचो से,
मेरा सीना क्यों घायल है कट्टों और तमंचो से,
मोहन की मुरली को आखिर किसने चकनाचूर किया,
किसने दो सालों तक गुंडों को सहना मंजूर किया,
लगता है अपने ही कुत्ते पाल रहे थे नेता जी,
रामवृक्ष की जड़ में पानी डाल रहे थे नेता जी,
क्या कारण था,मथुरा की रखवाली नही करा पाये,
दो सालों से बाग़ जवाहर खाली नही करा पाये,
जिस में सारी खीर पकी है,बोलो बर्तन किसका था,
दो सालों तक इसके पीछे मौन समर्थन किसका था,
20 लाख में दो वर्दी वालों का मरण भुलाया है,
गौ भक्षी अख़लाक मरा तो,पूरा कोष लुटाया है,
ना तो ख़ान,हुसैन,अली,ना वोट बैंक के बिंदू थे,
जो कुर्बान हुए वर्दी वाले दोनों ही हिन्दू थे,
मुस्लिम होते तो सत्ता की अंतड़ियां तक फट जातीं,
चार फ़्लैट,रुपये करोड़,नौकरियां तक भी बंट जातीं,
अब ,वर्दी की यही कहानी है,
खुद नेता का हुक्म बजाएं,खुद देनी कुर्बानी है,
कब तक खेल चलेगा भईया,अब जवाब देना होगा,
आने वाले हैं चुनाव सबका हिसाब देना होगा,

अजय सिंह "जे एस के "

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