Sunday, August 14, 2016

स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर भारत की पुकार




बेबस हूँ बिखरी हूँ उलझी हूँ सत्ता के जालो में,
एक दिवस को छोड़ बरस भर बंद रही हूँ तालों में,
बस केवल पंद्रह अगस्त को मुस्काने की आदी हूँ,
लालकिले से चीख रही मैं भारत की आज़ादी हूँ,
जन्म हुआ सन सैतालिस में,बचपन मेरा बाँट दिया,
मेरे ही अपनों ने मेरा दायाँ बाजू काट दिया,
जब मेरे पोषण के दिन थे तब मुझको कंगाल किया
मस्तक पर तलवार चला दी,और अलग बंगाल किया
मुझको जीवनदान दिया था लाल बहादुर नाहर ने,
वर्ना मुझको मार दिया था जिन्ना और जवाहर ने,
मैंने अपना यौवन काटा था काँटों की सेजों पर,
और बहुत नीलाम हुयी हूँ ताशकंद की मेजों पर,
नरम सुपाड़ी बनी रही मैं,कटती रही सरौतों से,
मेरी अस्मत बहुत लुटी है उन शिमला समझौतों से,                
मुझको सौ सौ बार डसा है,कायर दहशतगर्दी ने,
सदा झुकायीं मेरी नज़रे,दिल्ली की नामर्दी ने,
मेरा नाता टूट चूका है,पायल कंगन रोली से,
छलनी पड़ा हुआ है सीना नक्सलियों की गोली से,
तीन रंग की मेरी चूनर रोज़ जलायी जाती है,
मुझको नंगा करके मुझमे आग लगाई जाती है
मेरी चमड़ी तक बेची है मेरे राजदुलारों ने,
मुझको ही अँधा कर डाला मेरे श्रवण कुमारों ने
उजड़ चुकी हूँ बिना रंग के फगवा जैसी दिखती हूँ,
भारत तो ज़िंदा है पर मैं विधवा जैसी दिखती हूँ,
मेरे सारे ज़ख्मों पर ये नमक लगाने आये हैं,
लालकिले पर एक दिवस का जश्न मनाने आये हैं
जो मुझसे हो लूट चुके वो पाई पाई कब दोगे,
मैं कब से बीमार पड़ी हूँ मुझे दवाई कब दोगे,
सत्य न्याय ईमान धरम का पहले उचित प्रबंध करो,
तब तक ऐसे लालकिले का नाटक बिलकुल बंद करो,



देवालय की घंटी टूटी,घायल कलश पताका है,
गायत्री के स्वर शोषित हैं,आरतियों  पर डाका है,
राम राम के अभिनन्दन पर वालेकुम का वार हुआ,
तिलक कलावा,पैजामी हुड़दंगों से लाचार हुआ,

होली दीवाली को लूटा रमजानी अफ्तारों ने,
देवनागरी नंगी कर दी,उर्दू के अखबारों ने,
सतिया-चौक-रंगोली,आँगन की तुलसी भी रोई है,
कायरता की चादर ओढ़े कौम सनातन सोई है,

हुआ बताओ क्या उन गंगा जमुनी वाले नारों का?
कैराना से हुआ पलायन क्यों हिन्दू परिवारों का,
अब ये शोर नमाज़ी हमको हमलावर सा लगता है,
कैराना का आलम पूरा पेशावर सा लगता है,

कादिर,अली,मुहम्मद,हाफ़िज़,पूरा शहर संभाले हैं,
शर्मा,यादव,जाटव,गुर्जर के घर लटके ताले हैं,
ताले नही कहो इनको ये कायरता की ताली है,
सौ करोड़ हिन्दू पुत्रों के स्वाभिमान को गाली है,

नेताओं को नहीं दिखा अब तक रोना कैराना का,
काश्मीर सा तड़प रहा है हर कौना कैराना का,
कितने हिन्दू क़त्ल हुए,बस गुमनामी के किस्से हैं,
केरल से कैराना तक,गहरी साज़िश के हिस्से हैं,

बंटे रहो तुम माया और मुलायम की परछाईं में,
बंटे रहो तुम जाटव यादव बनिया या ठकुराई में,
कैराना पर आँख मूंदकर बैठे हो,पछताओगे,
आने वाली नस्लों को फिर कैसे मुँह दिखलाओगे,

कवि बोले,पुरखों के बलिदानो को याद करो,
कैराना में फिर से धर्म सनातन को आबाद करों,
हम हिन्दू हैं माना सबको गले लगाने वाले हैं,
सदियों से सीने पर कितने हमले सहने वाले हैं,

लेकिन अब भी मौन रहे तो,सिर्फ लाश हो जाएंगे,
अमन अमन रटते रटते सब वंश नाश हो जायँगे,
राम कृष्ण की छाती पर चढ़कर पैगम्बर आएंगे,
कैराना तो एक झलक है,सबके नंबर आएंगे ।  


(यह दोनों कविताये मुझे व्हाट्स अप पर प्राप्त हुई है ,लेखक का नाम नहीं दिया है )

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