Saturday, June 24, 2017

मीरा ने फिर पिया जहर

दोस्तों ,
अगर जीत पक्की हो तो साथ  वाले अनगिनत होते है। क्योंकि जीत के बाद जीते हुये आदमी से कुछ लाभ न भी हो तो कम से  कम इज्जत तो बढ़ती ही  है। लेकिन जब हार पक्की हो तो वोह कौन लोग है जो आपका साथ देंगे ?  अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है, यह वह लोग है जो आपके ऊपर दांव लगाएंगे और दांव लगाने का श्रेय लेकर
जिसके ऊपर दांव लगाएंगे उसे तो छोड़ देंगे जहर पीने के लिए और खुद उसका  चाहे व्यापारिक लाभ हो या सामाजिक लाभ उठाने में न तो गलती करेंगे न देर। ऐसा नहीं है की यह पहली बार हो रहा है।

 महाभारत के युद्ध में दुर्योधन की हार निश्चित जानते हुए भी कर्ण ने उसका साथ नहीं छोड़ा और मृत्युपर्यन्त युद्ध करता रहा। कर्ण  ने अपने वचन को निभाने के लिए अपना सबकुछ त्याग कर दोस्ती की मिसाल कायम की। दूसरी ओर दुर्योधन ने जितने भी एहसान कर्ण  पर किये थे वह सब  चुकता करवा कर ही दम  लिया। 



वैसे ही राष्ट्रपति के चुनाव में राम नाथ कोविंद की जीत सुनिश्चित है जानकार भी मीरा कुमार ने कांग्रेस और अन्य दलों के संगठन यू पी ये के आग्रह पर राष्ट्रपति का चुनाव  लड़ने का आग्रह स्वीकार कर अपने ऊपर कांग्रेस पार्टी और गाँधी परिवार के द्वारा किये गए सभी ऐहसानो का बदला चुका  दिया है। कांग्रेस को
पता है की अगले कुछ सालो सत्ता में वापसी मुश्किल है और जब वापसी होगी तब तक सत्ता में नए दावेदार भी आ चुके होंगे। इसलिए इस समय तो ज्यादा ज्यादा यही हो सकता है की जिन लोगो पर एहसान है उनका हिसाब कर लिया जाये। लेकिन तारीफ करनी होगी मीरा कुमार की जिन्होंने सब जानते समझते एक बार फिर जहर पी लिया ,पिछले जन्म  में गोविन्द के लिए और इस जन्म  में कोविंद के लिए।



                                                                             अंत में 
असली दोस्‍त वे नहीं होते जो कामयाबी में आपके साथ होते हैं, 
बल्कि वे होते हैं, जो मुश्‍किल में आपके साथ  होते हैं।

अजय सिंह "जे एस के "
 

 
 
 

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