Sunday, October 8, 2017

अभी जमीर में थोड़ी सी जान बाकी है


अभी जमीर में थोड़ी सी जान बाकी है



अभी जमीर में थोड़ी सी जान बाकी है
अभी हमारा कोई इम्तिहान बाकी है
हमारे जेहन की बस्ती में आग लगी ऐसी
की जो था वह खाक हुआ बस एक दुकान बाकी है ll


हमारे घर को उजड़े तो एक जमाना हुआ
मगर सुना है अभी वो मकान  बाकी है
अब आया तीर चलाने का फन तो क्या आया
हमारे हाथ खाली कमान बाकी है II

जरा सी बात फैली तो दास्तान हुई
वो बात खतम हुई सिर्फ दास्तान बाकी है
वो जखम भर गये तो अर्सा हुआ मगर अबतक
जरा सा दर्द और निशान बाकी है II


2nd One


बयाबां हमें इसलिए पूछता है
              की बहारों की दुनिया से हम आ रहे है ,
बताये कोई अपनी नाकामियों को क्या
            की सहारों की दुनिया से हम आ रहे है II

न कलिओं का मजमा , न काटों का सदमा
       खुदा जाने गुलशन को क्या हो गया है
महकने के मौसम को आबाद रखने
        निखारो की दुनियाँ से हम आ रहे हैII

कभी शामे गम में जो खुल के न रोये
            वो क्या मुस्कराएंगे लुत्फे सहर में
हमें चांदनी की चकाचोंध से क्या
              सितारों की दुनियाँ से हम आ रहे है II

हमारे लिए क्या नहीं आबेजमजम
           फ़रिश्तो ने क्या उसका ठेका लिया है
तुम्हारे लिए मैकदा हो मुबारक
           खुमारी की दुनिया से हम आ रहे है II

बी एस रँग



                               


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