Monday, November 11, 2019

भारत की नई शिक्षा निति :सब अच्छा नहीं


दोस्तों,
मोदी सरकार के पहले सत्र में जिस नई शिक्षा निति का आगाज किया गया था आखिरकार उस निति की घोषणा मोदी सरकार  के द्वितीय  सत्र में सत्ता सँभालते ही हो गयी है।  इस नीति को बनाने और घोषणा करने में चार वर्षो से ज्यादा का समय लगा। इस वर्ष जून- जुलाई में   घोषणा होने के बाद १०० से ज्यादा गोष्ठियां देश बाहर में आयोजित की जा चुकी है और दो लाख लोगो से ज्यादा लोगो ने इस पर अपने सुझाव दिए गए है। अब इन सुझावों को मसौदे में शामिल कर मंत्री परिषद् के सामने पेश किया जायेगा। इसके बाद नई शिक्षा नीति को लागु करने का रास्ता प्रशस्त हो जायेगा।

वास्तव में किसी भी देश की शिक्षा नीति से ही यह तय होता है की हम भविष्य में कैसे नागरिक चाहते है। इस शिक्षा नीति में पिछली नीतियों से सबक लेते  हुए उनको बहुत हद तक दूर करने की ईमानदार  कोशिश भी की गयी है।  लेकिन कुछ ऐसी कमियाँ जिनका जिक्र अभी तक ठीक से नहीं हो पाया है उनको इंगित करने और उन्हें ठीक करने की भी कोशिश की जानी चाहिए ताकि इसे और बेहतर बनाया जा सके। प्रस्तावित  शिक्षा नीति की कमियों को दूर कर के ही नए भारत के निर्माण का रास्ता सुनिश्चित किया जा सकेगा।

दुनिया में जिस तरह से मशीनी करण और स्वचालित यंत्रो का उपयोग बढ़ रहा है ऐसा लगता है बहुत से रोजगारो को करने लिए आवश्यक कुशलता में तेजी से परिवर्तन आएगा। इसलिए आवश्यक है की इसको ध्यान में रख कर रोजगार पूरक पाठ्यक्रम बनाया जाये। रचनात्मक कुशलता एवं एवं व्यहारिक कौशल के गुण केवल मनुष्यो में हो सकते है। यन्त्र तो केवल जिस काम के लिए  बने है उसी को सकते है।  इसलिए इन गुणों को विकसित करने की युति शुरू से इस तरह से की जानी चाहिए ताकि यह वयक्ति की प्रकृति बन  जाये चेतना बन जाये।  इन गुणों को प्रयोग में लाने या  ना  लाने का विकल्प ही उपलब्ध न रहे।

दूसरी महत्व पूर्ण बात है की नव युवको  के सामने जब जीवन   वृत्ति के लिए  चुनाव करने का प्रश्न आता है तो केवल उन्ही पेशों के बीच चुनाव करने की सलाह दोस्त और परिवार जनो से मिलती है जिसमे धन कमाने की पर्याप्त सम्भावनाएं हों जैसे डॉक्टर,इंजीनियर या इसी तरह के कुछ और जो अच्छी तरह से जांचे परखे हुए काम है जिससे समाज में सम्मान और पर्याप्त धन मिल सके। जबकि कोई भी व्यक्ति केवल उसी काम को शानदार और सर्वश्रेष्ठ  तरीके से कर सकेगा जिसमे उसकी रूचि हो। अब नवयुवकों के पास  ज्ञान और अनुभव की कमी  होने के कारण अधिकांश मामलों में उन्हें मार्गदर्शन परिवार के बड़े बूढ़ो और मित्रो से मिलता है जो बिना उसकी रूचि जाने हुए अपने अनुभवों के आधार पर सुझाव देते है। पर्याप्त जानकारी के आभाव में उपलब्ध विकल्पों में से चुनाव करने की मज़बूरी होती है। परिवार की आर्थिक स्थिति का भी इसमें गंभीर योगदान होता है।

उदाहरण के लिए यदि कोई युवक जिसे प्रकृति  और  पोधो के साथ काम करना अच्छा लगता है और इसे वह जीवन यापन के लिए चुनना चाहे तो इस बात की सम्भवाना अधिक है की उसे इस विकल्प को चुनने की स्वतंत्रता ही न मिले और मज़बूरी में उसे वह विकल्प स्वीकार करना पड़े जिसमे अधिक धन और सम्मान की सम्भावना हो। इस कठिनाई को दूर करने का केवल एक ही तरीका है हमें ऐसा  पारिस्थितिकी तंत्र   विकसित करना पड़ेगा जिसमे वैकल्पिक व्यवसाओं के बारे में विस्तृत जानकारी आसानी से उपलब्ध हो। और इस ज्ञान को  युवक के पास जब वह छोटी कक्षा का छात्र हो पहुंचाने की व्यस्था करनी चाहिए।  साथ ही युवको की रूचि जानने के लिए मुफ्त परिक्षण की व्यस्था भी स्कूल के स्तर पर होनी चाहिए ताकि समय समय पर इसकी जाँच करना संभव हो सके। और नवयुवक पहले तो अपनी रूचि के बारे में जान सके और फिर सम्बद्ध  व्यसायों के बारे में जान कर कैसे अपनी सारी संभावनाओं का पूरा उपयोग कर सके इसकी योजना भी बना सके।  इस चुनाव को पूरा करने में आर्थिक परिस्थितयो से कैसे निपटा जाना है इसकी योजना भी शिक्षा नीति का ही हिस्सा होना चाहिए।

अजय सिंह "एकल"  




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