Tuesday, March 1, 2011

शहीदों की चिताओं पर

दोस्तों,
हम कितने खुश  नसीब है  ,हमारा  देश कितना महान है और यहाँ पर  लोगों का क्या पूछना .अरे मरने वाले मर गए अब उनकी याद में क्यों परेशान होना है भाई .रात गई बात गई .आखिर यादों  को लेकर जिन्दगी भर बैठे थोड़ी रहेंगे .हम प्रोग्रेसिव है और इसका प्रमाण भी हम जब तब देते रहते  है . 
अब ये तो कोई बात न हुई की चन्द्र शेखर आजाद को मरे ८० साल हो गए और अब भी हम उन शहीदों की चिताओं  पर मेले  ही लगाते रहे .अरे  उस  ज़माने की बात और थी तब     चिताओं पर   मेले लगते थे  मेले में लोग आते थे शहीदों की याद में कुछ गीत कविताए होती थी आंसू बहते थे ,और अच्छी  खासी दुकानदारी हो जाती थी .पर अब किस के पास इतना टाइम धरा है जो मेले आये और आ कर शहीदों की याद करे .अब तो घर में भी कोई मर जाये तो आदमी १३ दिन के बजाये ३  दिन में ही निपटा देता है ,अरे टाइम कहाँ  है .और फिर कमाई भी तो करनी है .आखिर टाइम के साथ सब चीजे बदलती है अरे इसीको को कहते है मोडर्न होना.
तो भैया ८० साल बाद इलाहबाद में ठीक उसी जगह  और उसी दिन जहाँ चन्द्र शेखर आजाद शहीद हुए थे ,लोगो ने   लगा दिया कुत्तो का मेला (Dog show) .कुछ पुराने सिरफिरे किसिम के लोग आगये नारे वारे लगाते कहते थे यहाँ शहीदों की याद में मेला लगेगा ,पुलिस ने मार पीट के भगा दिया नारा लगाने वालो को .आखिर धंघे का मामला  हो तो सेटिंग तो करनी पड़ती है न, सो  उनका भी धंधा हो गया और हमारा  भी . 

और वैसे भी अब इस देश में आदमी और कुत्ते में ज्यादा फरक भी कहाँ है चाहे लाइफ स्टाइल का मामला हो या वफ़ादारी का ,बराबरी की जाये तो कुत्ता ही अव्वल आयेगा  .फिर आम आदमी की हालत तो गली के कुत्ते के जैसी ही है .इसलिए  अब 

शहीदों की  चिताओं पर लगेंगे  कुत्तो के मेले 
वतन पर मरने वालो का नहीं कोई निशाँ होगा 
                  
                         पूरा समाचार यहाँ पढ़े: 

Dog show organised, activists cry foul



















अजय सिंह "एकल"

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